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31 अक्तूबर 2008

फेडरल रिजर्व की कटौती के बाद कच्चे तेल में तेजी

सिंगापुर October 30, 2008
अमेरिकी ब्याज दरों में कटौती और वैश्विक शेयर बाजारों में आई तेजी के चलते एशियाई बाजार में गुरुवार को कच्चे तेल में तेजी देखी गई।
इसके चलते बीते एक हफ्ते में पहली बार कच्चे तेल की कीमत 70 डॉलर प्रति बैरल के पार चली गई। हालांकि बाद में इसमें थोड़ी नरमी रही। खबर मिलने तक न्यूयॉर्क मर्केंटाइल एक्सचेंज में कच्चे तेल का नवंबर महीने का वायदा 68.45 डॉलर प्रति बैरल तक जा चुका था। कल के मुकाबले भाव में 1.41 फीसदी यानाी 95 सेंट की मजबूती आई। वहीं ब्रेंट कच्चे तेल के हाजिर भाव में 1.62 फीसदी यानी 1.04 डॉलर की तेजी हुई और भाव 65.28 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए। बुधवार को कच्चे तेल में 4.77 डॉलर यानी 7.6 फीसदी की तेजी हुई थी और भाव 67.5 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गए थे। याद दिला दें कि 11 जुलाई को कच्चा तेल 147 डॉलर तक पहुंच गया था तब से इसकी कीमत में अब तक करीब 52 फीसदी की गिरावट हो चुकी है। साल भर पहले की तुलना में तेल के भाव में अब तक 22 फीसदी की नरमी आ चुकी है। गौरतलब है कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से ब्याज दर में और 0.5 फीसदी की कटौती करने के बाद वैश्विक स्टॉक बाजार में फिर से तेजी लौट आई। इसके चलते कच्चे तेल की कीमतों में मजबूती आई। इस तरह, बीते एक महीने में कच्चे तेल में दो दिनों की सबसे बड़ी तेजी देखी गई। यही नहीं चीन और ताईवान ने भी अपनी ब्याज दरों में कटौती कर ली है। जापान के बारे में अनुमान लगाया जा रहा है कि वह कल अपनी बेंचमार्क ब्याज दर में कटौती कर सकता है। यूरोपीय केंद्रीय बैंक के बारे में भी अनुमान लगाया जा रहा है कि वह बहुत ही जल्द अपनी ब्याज दरें घटा सकता है। अमेरिका के साथ-साथ चीन द्वारा ब्याज दरों में कटौती किए जाने से सट्टेबाजी हलकों में इस बात की अटकलें हैं कि कच्चे तेल की मांग में तेजी आएगी। सिडनी स्थित एक संस्था के सलाहकार टोबी हसेल ने बताया कि अमेरिकी फेडरल ने अनुमान के मुताबिक ही ब्याज दरों में कटौती की है। संकटग्रस्त अर्थव्यवस्था के लिए यह उपाय निश्चित तौर पर गति देने वाला है। एक विश्लेषक ने बताया कि लोग इक्विटी बाजार के सतह तक जाने का इंतजार कर रहे हैं लिहाजा अमेरिकी और विश्व अर्थव्यवस्था में स्थिरता आने के संकेत मिल रहे हैं। इस विश्लेषक के मुताबिक, शेयर बाजार में एक बार फिर से हो रहा उछाल एक अच्छा संकेत है जबकि इससे बाजार थोड़ा स्थिर हो रहा है। निवेशकों को लग रहा है कि वित्तीय संकट के चलते पैदा हुई नगदी की समस्या के चलते निकट भविष्य में तेल उत्पादन पर असर पड़ सकता है। इससे तेल के महंगे होने के आसार हैं जबकि ओपेक पहले ही तेल उत्पादन में कटौती का निर्णय ले चुका है। गौरतलब है कि ओपेक के सदस्य देशों की हाल में हुई बैठक में तय हुआ कि 1 नवंबर से कच्चे तेल के उत्पादन में 15 लाख बैरल प्रतिदिन की कटौती की जाएगी। ऐसे में कच्चे तेल की कीमतों का बढ़ना स्वाभाविक माना जा रहा है।जानकारों के अनुसार, कच्चे तेल में कटौती की एक अन्य वजह डॉलर में हुई कमजोरी भी है। उल्लेखनीय है कि कल के गिरावट के साथ ही अमेरिकी डॉलर यूरो की तुलना में पिछले एक हफ्ते के निचले स्तर तक चला गया है। फिलहाल एक यूरो का भाव 1.3170 अमेरिकी डॉलर चल रहा है। निवेशकों के मुताबिक, डॉलर में गिरावट होने से कच्चा तेल सहित उन सभी जिंसों की खरीदारी तेज हो जाती है। इसकी वजह यह कि सुरक्षित निवेश के लिहाज से इन जिंसों की मांग बढ़ जाती है। (BS Hindi)

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