कुल पेज दृश्य

29 अक्तूबर 2008

खाद सब्सिडी को नियंत्रित करने की तैयारी

नई दिल्ली : सरकार इस समय राजकोषीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) पर लगाम कसने की पुरजोर कोशिश कर रही है। इसके तहत वह आसमान चूमते फर्टिलाइजर सब्सिडी बिलों पर नियंत्रण करने में लगी हुई है, क्योंकि बढ़ते हुए राजकोषीय घाटे में फटिर्लाइजर सेक्टर का बहुत बड़ा योगदान है। दरअसल, सरकार की पूरी सब्सिडी बास्केट में पिछले 3 साल में फर्टिलाइजर सेक्टर में सब्सिडी सबसे तेज बढ़ी है। सब्सिडी बिलों पर काबू पाने के लिए सरकार ने भारत को फर्टिलाइजर बेचने वाले अंतरराष्ट्रीय विक्रेताओं को सख्त इशारा कर दिया है कि अगर उन्होंने वाजिब कीमत पर खाद नहीं दिया तो वह इस साल फर्टिलाइजर आयात नहीं करेगी। भारत यूरिया का सबसे बड़ा खरीदार है। डिपार्टमेंट ऑफ फर्टिलाइजर (डीओएफ) और वित्त मंत्रालय के चालू आकलन के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में गिरावट की वजह से खाद और कच्चे माल की कीमतों में भारी गिरावट आई है, जिसके मद्देनजर सरकार खुद 1,20,000 करोड़ रुपए के सब्सिडी बिल पर लगभग 10,000 करोड़ रुपए बचा चुकी है। इतने सब्सिडी बिल के विरुद्ध बजटीय आवंटन महज 31,000 करोड़ रुपए का है। इससे केवल जून महीने तक की खाद की जरूरत पूरी हो सकती है। हाल ही में सरकार ने एसबीआई कंसोर्टियम से ऊंची ब्याज दरों पर 22,000 करोड़ रुपए का कर्ज लिया है, जिसको कंपनियों के बकाए के हिसाब में लगाया जाएगा। दूसरे और बकायों को चुकाने के लिए इस साल आगे चल कर 14,000 करोड़ रुपए तक के और फर्टिलाइजर बॉन्ड लाने की भी योजना है। एक बड़े सरकारी अधिकारी ने बताया कि अगर अगस्त, सितंबर और अक्टूबर में कच्चे तेल की कीमतें बढ़नी बरकरार रहतीं तो चालू साल में फटिर्लाइजर सब्सिडी 1,50,000 करोड़ रुपए तक हो सकती थी। यहां यह संकेत मिलता है कि कच्चे तेल में गिरावट और खाद बाजार की मंदी से किस तरह सरकार के फर्टिलाइजर सब्सिडी बिल में फायदा हो सकता था। मध्य अगस्त से लेकर मध्य अक्टूबर तक के दो महीनों में सल्फर की कीमत लगभग 850 डॉलर प्रति टन से गिरकर 65 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गई है। सल्फर खाद बनाने में इस्तेमाल होता है। इस दौरान मध्य अक्टूबर तक के 3 महीनों में यूरिया के अंतरराष्ट्रीय दाम भी 30 फीसदी गिर कर 250 डॉलर प्रति टन पर पहुंच गए हैं। इसमें 50 डॉलर प्रति टन का भाड़ा भी जोड़ दिया जाए तो यूरिया की चालू कीमत 280-300 डॉलर प्रति टन पहुंचेगी, जबकि इस साल पहले इसकी कीमत 450 डॉलर प्रति टन चल रही थी। लेकिन दिक्कत की बात कहां है? दरअसल, सरकार इस बात को लेकर आशंकित है कि पिछले सप्ताहों में रुपया जिस कदर डॉलर के मुकाबले कमजोर हुआ है उससे सरकार को फर्टिलाइजर सब्सिडी के मोर्चे पर जो फायदे हो सकते थे वे सब खत्म हो जाएंगे। सूत्रों का कहना है कि अगर रुपया डॉलर के मुकाबले इस रफ्तार से कमजोर नहीं होता तो साल 2008-09 में सब्सिडी बिल एक लाख करोड़ या उससे थोड़ा कम पर रुक सकते थे। (ET Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: