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21 नवंबर 2008

जिंस कारोबार के सारे हिस्सों का नियामक एक हो

मुंबई November 19, 2008
वायदा कारोबारों के नियंत्रक वायदा बाजार आयोग (एफएमसी) ने केंद्र सरकार से मांग की है कि उसे हाजिर एक्सचेंजों और गोदामों के नियंत्रण अधिकार दे दिए जाएं।
उपभोक्ता मंत्रालय सहित अन्य संबंधित मंत्रालयों को लिखे पत्र में आयोग ने कहा है कि जिंस कारोबारों की समूची व्यवस्था के बेहतर नियंत्रण और क्रियान्वयन के लिए आयोग को यह अधिकार मिलना बहुत जरूरी है। एफएमसी चेयरमैन बी सी खटुआ ने वेयरहाउसिंग-2008 नाम से आयोजित सेमिनार में बताया कि गोदामों के नियंत्रण के लिए अलग से किसी संस्था के गठन से बढ़िया रहेगा कि इसका नियंत्रण एफएमसी को करने दिया जाए। खटुआ के मुताबिक, गोदाम वायदा बाजार से गहरे जुड़ा होता है इसलिए ऐसा करना उचित होगा। उल्लेखनीय है कि जिंसों के हाजिर कारोबार को राज्य सरकार कृषि उत्पाद विपणन अधिनियम के जरिए नियंत्रित करती है। खटुआ का मानना है कि केंद्रीय स्तर पर एक ऐसी एकीकृत नियंत्रण एजेंसी हो जो पूरी गतिविधि पर नजर रख सके। मालूम हो कि केंद्र सरकार वेयरहाउसिंग विकास और नियामक अधिनियम (डब्ल्यूडीआरए)-2007 के तहत एक पृथक नियामक इकाई गठन करने पर विचार कर रही है। यह इकाई गोदामों में कृषि जिंसों की आवाजाही को नियंत्रित करेगी। उन्होंने कहा कि यदि एफएमसी को स्वायत्तता दी जाए तो वह मानवश्रम तैयार करने के साथ ही अपने सदस्य एक्सचेंजों और दलालों से शुल्क की वसूली करेगा। इतना ही नहीं वह सेबी की तरह जिंसों के शेयरधारकों से अनुबंध भी करेगा। इस तरह खटुआ ने हाजिर, वायदा और गोदामों के नियंत्रण के लिए तीन अलग-अलग नियामक संस्था गठित करने की बजाय एकमात्र संस्था को ही सारे दायित्व सौंपने की वकालत की है। खटुआ ने बताया कि एकमात्र नियामक संस्था जहां भंडारण क्षमता में सुधार करने के प्रयास करेगी, वहीं किसानों को हाजिर और वायदा बाजारों से भी जोड़ेगी। खटुआ ने बताया कि इससे जिंस कारोबार की पूरी व्यवस्था चाहे गोदाम हो या हाजिर और वायदा बाजार सभी बड़ी आसानी से काम करेंगे। साथ ही किसी तरह के विवादों से भी बचना आसान रहेगा।इस बीच सरकार ने तय किया है कि डब्ल्यूडीआरए 1 मार्च '09 से अधिसूचित कर दिया जाएगा। इससे किसी विश्वसनीय संस्था द्वारा जारी 'वेयरहाउस रिसीट' पर विचार किया जा सकता है। इस कानून की सबसे खास बात यही है कि सामानों की बगैर किसी वास्तविक आवाजाही के केवल रिसीट के जरिए लेनदेन मान्य होगा। इसका मतलब कि जिंस कारोबार की समूची अर्थव्यवस्था में किसी दो शेयरधारकों के बीच बेहतर समझदारी विकसित होगी। बैंकों को भी किसानों को कर्ज देने में ज्यादा हिचकिचाहट नहीं होगी, जबकि मांग के वक्त जिंसों की बिकवाली से किसानों को उपज के एवज में बेहतर कीमत मिल सकेगी। यही नहीं एक जगह से दूसरे जगहों पर सामानों की आवाजाही कम होने से उत्पादों की बर्बादी भी रुकेगी। इसके लिए सभी राज्यों को एकमात्र कर प्रणाली जैसे सामान्य बिक्री कर (जीएसटी) या मूल्यवर्द्धित कर (वैट) पर सहमत होना होगा। प्रस्ताव है कि इसे 1 अप्रैल 2010 से लागू करा दिया जाए। (BS Hindi)

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