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28 दिसंबर 2008

जनवरी में महंगाई के दांत खट्टे करेंगे आटा-दाल

नई दिल्ली: लगातार सातवें हफ्ते में महंगाई दर के घटने का असर दिल्ली में भी खाद्यान्न की कीमतों पर नजर आ रहा है। गेहूं, दाल, चावल आटा और बेसन जैसी खाने की प्रमुख चीजों के दाम दिल्ली की थोक मंडियों में पिछले एक महीने में 10 से 20 फीसदी तक घटे हैं। मंडी के सूत्रों का कहना है कि सर्दियों में सब्जियों का अच्छा उत्पादन होने से दालों पर दबाव कम हुआ है। इसके अलावा जनवरी में शादियों का सीजन नहीं होने से कीमतें और नीचे आएंगी। वहीं अगली फसल की उपज आने और सरकार की तरफ से गेहूं का कोटा दिए जाने से आम चुनाव तक कीमतें नीचे आने का ढर्रा जारी रहने का अनुमान भी कारोबारी लगा रहे हैं। थोक मूल्य सूचकांक आधारित महंगाई दर 13 दिसंबर को खत्म हफ्ते में घट कर 6.61 फीसदी रह गई। यह इस साल के 12.91 फीसदी के उच्चतम स्तर से तकरीबन आधी होकर पिछले नौ महीनों के निमन्तम स्तर पर आ गई है। दिल्ली दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक गुप्ता ने ईटी को बताया, 'दालों की कीमतें लगातार नीचे आ रही हैं। पिछले एक महीने में ही थोक बाजार में अरहर 47 रुपए से 42 रुपए किलो, मूंग 47 रुपए से 40 रुपए और चना 27 रुपए से 23 रुपए किलो के स्तर पर आ गया है। दिसंबर का मौजूदा ट्रेंड 15 जनवरी तक आसानी से जारी रह सकता है। इस दौरान शादी का सीजन नहीं होने से मांग में कमी ही आएगी।' दिल्ली में रोजाना एक से सवा लाख क्विंटल खाद्यान्न की खपत होती है। गुप्ता ने कहा, 'बेसन की कीमतें भी 30 रुपए किलो से घटकर 27-28 रुपए किलो के स्तर पर आ गई हैं। दालों और चने की कीमतों में इस मौसम में कमी आना इसलिए भी स्वाभाविक है क्योंकि सब्जियों की भरमार है और आमतौर पर लोग दाल पर ज्यादा जोर नहीं दे रहे हैं। इसके अलावा गेहूं और आटा की कीमतें भी कम होंगी। इस समय सरकार भी गेहूं का पर्याप्त कोटा रोलर मिलों को दे रही है।' दिल्ली ग्रेन मर्चेंट एसोसिएशन के अध्यक्ष ओमप्रकाश जैन ने बताया, 'आटा-दाल के साथ चावल की कीमतें भी नीचे आ रही हैं। इस साल बासमती चावल ने 95 रुपए, चावल 11-31 ने 75 रुपए और सुगंधा चावल ने 55 रुपए किलो तक के उच्चतम स्तर देखे हैं। लेकिन इन चावलों की कीमतें इस समय क्रमश: 65, 45 और 22-24 रुपए किलो के स्तर पर आ गई हैं। धान की फसल अच्छी रहने आने वाले समय में भी चावल में किसी तरह की तेजी का अनुमान नहीं है।' खुदरा बाजार में दालों की कीमतों में उतनी कमी नहीं दिखने के सवाल पर गुप्ता ने कहा, 'एक किलो दाल की ढुलाई वगैरह पर रीटेलर को औसतन पांच रुपए का खर्च आता है। इसके अलावा दिल्ली में महंगे किराए पर दुकान चला रहे दुकानदार 20 से 25 फीसदी तक मार्जिन पर काम कर रहे हैं। ऐसे में थोक में 40 रुपए प्रति किलो की दाल आम उपभोक्ता तक पहुंचते-पहुंचते 47 से 48 रुपए किलो तक हो जाती है। लेकिन इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि तुलनात्मक रूप से वहां भी कीमतें कम हो रही हैं।' बाजार के सूत्रों ने बताया कि सरकार ने पिछले साल तीन लाख बोरी गेहूं का कोटा जारी किया था। इस बार कोटे को बढ़ाकर चार लाख बोरी से अधिक कर दिया गया है। हालांकि कीमतों में आ रही गिरावट के कारण व्यापारी सरकारी गेहूं खरीदने में खास दिलचस्पी नहीं दिखा रहा है। लेकिन अच्छी फसल और सरकार की तरफ से गेहूं की उपलब्धता से कीमतों में वृद्धि कोई गुंजाइश नहीं है। कारोबारियों का मानना है कि अगले साल होने वाले आम चुनाव तक सरकार किसी भी स्थिति में खाद्यान्न की कमी नहीं होने देगी और खाने की सभी चीजों की कीमतों में गिरावट का रुख बना रह सकता है। (ET Hindi)

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