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01 जनवरी 2009

जिंसों के वायदा व्यापार में संभावनाएं होंगी

कमोडिटी एक्सचेंज में वर्ष 2009 के दौरान वायदा कारोबार का भविष्य क्या होगा और उसका क्या प्रभाव पड़ेगा, इसे जानने के लिए हमें सबसे पहले बीते वर्ष की समीक्षा करनी होगी क्योंकि 2008 में ही 2009 का भविष्य छुपा हुआ है। पिछले वर्ष की दूसरी छमाही ने लोगों को अंदर एक भय समा दिया। इस दौरान वैश्विक आर्थिक संकट के कारण जहां दुनिया भर में लोगों की नौकरियां गई हैं वहीं लोगों को वर्ष 2009 में भी नौकरियां छिनने का भय सताने लगा है। कंपनियों ने अपने नए निवेश पर विराम लगा दिया है। वहीं लागत कम करने के लिए भी कदम उठाने शुरू कर दिए हैं। कर्ज देने वाले नकदी होने के बावजूद कर्ज देने से डर रहे हैं। वर्ष 2008 की पहली छमाही में कमोडिटी चर्चा में रहा है। इस दौरान जिसने भी बाजार में कमोडिटी फ्यूचर के खराब प्रदर्शन की भविष्यवाणी की, वह विशेषज्ञ बन गया। कमोडिटी एक्सचेंज निश्चित तौर पर वह जगह है जहां पैसा बनाया जाता है। जितना ही बाजार उदार रहेगा, उतना ही पैसा बनेगा। इस दौरान जब पूरे बाजार के खराब रहने की आशंका है उसमें केवल हेज फंड ही है जो भविष्य की दिशा तय करेंगे। भविष्य की रूपरेखा कयासों पर ही टिकी रहेगी। भारत में बहुत से लोगों ने यह आरोप लगाया था कि बढ़ी ब्याज दरों और महंगाई की वजह कमोडिटी ही रही है।लेकिन वास्तव में इसकी प्रमुख वजह उत्पादन में कमी रही है। अभिजीत सेन समिति की रिपोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि वर्तमान संकट के लिए कमोडिटी फ्यूचर जिम्मेदार नहीं है। रिपोर्ट के मुताबिक जब कमोडिटी की कीमतें बढ़ रही थी उस समय उत्पादकों और किसानों को तो फायदा हुआ लेकिन उसकी मार उपभोक्ताओं पर पड़ी। महंगाई ने रबर, सोयाबीन, चना और आलू के वायदा कारोबार पर बुरा प्रभाव डाला। जिसकी वजह से मई 2008 में वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगा दिया। यह पूरी तरह से कयासों द्वारा उठाया गया कदम था। दूसरी छमाही में आर्थिक संकट ने फ्यूचर कारोबार पर बुरा प्रभाव डाला। जिसकी वजह से ज्यादातर कंपनियों ने अपने मूल कारोबार से किनारा कर लिया। इस दौरान जोखिम से बचने के लिए उठाए गए सारे कदम काफी जटिल हो गए हैं क्योंकि वे उपाय किसी और तंत्र पर आधारित थे। जब बाजार लुढ़का तो दुनिया की बड़ी-बड़ी कंपनियां एक के बाद एक, धराशाई होती गईं। जब उनकी उपस्थिति और प्रभाव पूरी दुनिया में था तो जाहिर है कि इसका असर भी पूरी दुनिया पर हुआ। अमेरिका इस संकट का जनक था जिसने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया। सबने अपनी बातों को पलट यह कहना शुरू किया है कि संकट आगे भी बना रहेगा। किसी में इससे इंकार करने की कुव्वत नहीं है। कमोडिटी फ्यूचर की स्थिति 2009 में बदल सकती है और यह उतनी खराब नहीं होगी जैसी संभावना अभी जताई जा रही है। कृषि जिंस जो वास्तविक खपत के लिए जरूरी हैं, में गिरावट नहीं होगी और यह पारंपरिक रूप से मांग और वितरण पर निर्भर करगी। उत्पादन की लगात कम नहीं हुई है और सरकार ने भी एमएसपी के द्वारा खासा समर्थन किया है। इसलिए बड़ी गिरावट के आसार नहीं है। काली मिर्च और कॉफी जैसी कमोडिटी में अंतरराष्ट्रीय स्तर आपूर्ति में कमी देखी जा सकती है और आपूर्ति मांग के अनुरूप नहीं होने से इनकी कीमतें स्थिर बनी रह सकती है या फिर मजबूत हो सकती है। रबर की कीमतों में तेज गिरावट हुई और इसका कारण क्रूड की गिरावट और ऑटोमोबाइल उद्योग में मांग की कमी रहा। लेकिन रबर में वायदा कारोबार शुरू होते ही इसकी कीमते थमीं और फिर बढ़ने भी लगी हैं जिससे रबर उत्पादकों को राहत मिली। बाजार को बनने में समय लगता है। लेकिन महज एक प्रतिबंध से वर्षो की मेहनत खत्म हो सकती है। कमोडिटी वायदा एक नई कल्पना है और बहुत कम ही लोग इसे तरह समझते हैं और इसका लाभ उठा पाते हैं। अधिकांश लोग खबरें और अनुशंसा के झांसे में आकर सट्टेबाजी करते हैं। जब बाजार तेजड़ियों का हो तो भीड़ का हिस्सा नहीं बनना चाहिए क्योंकि इसके गिरने की संभावना अधिक होती है। जब बाजार मंदड़ियों का हो, कमोडिटी कारोबार में घुसने की संभावना बनी रही है क्योंक िकमोडिटी की उत्पादन लागत ज्यादा समय तक इसके नीचे नही रह सकतीं । आगे चलकर सप्लाई में कमी होगी और दामों में उछाल आएगा। केरल जैसे राज्यों में एक्सचेंजों का फायदा किसानों तक पहुंचा हैं जहां पर इनका प्रयोग हेजिंग के लिए किया जाता है। यदि इसी तरह का मॉडल पूरे भारत में लागू किया जाए तो यह लाभ सभी को मिल पाएगा।कमोडिटी एक्सचेंज और वायदा बाजार आयोग लगातार एक्चेंजों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का प्रयास कर रहे है। एक्सचेंजों के कारोबार में धीरे-धीरे ही सही, पर वृद्धि जरूर होगी किंतु किसानों तक सही फायदे को देखने के लिए भारत में एग्री बिजनेस की बढ़त पर नजर रखनी होगी। गैर कृषि कमोडिटी के कारोबार में बढ़ोतरी इसलिए हुई है क्योंकि उनके कारोबार पर रोक लगने की आशंका नहीं है। कमोडिटी एक्सचेंजों का भविष्य निश्चित तौर पर उज्ज्वल है। इसके लिए जरूरी है कि सरकार इसको कुचलने की बजाय सहारा दे। सरकार द्वारा हाल में लगाई गई रोक के चलते एक्सचेंजों और उसके सदस्यों को भारी नुकसान हुआ है। साल 2009 में कमोडिटी एक्सचेंजों के विकास के लिए जरूरी है कि इसके लिए जागरूकता बढ़ाई जाए। ज्यादा लोगों तक पहुंच हो, डिलीवरी प्रणाली बेहतर हो, वेयर हाउसों का विस्तार और उसकी रसीदों पर कर्ज मिल सके, तरलता को बढ़ाया जाए, म्यूचुअल फंड और बैंको की भागीदारी बढ़ाई जाए। सरकार इन सभी उपायों पर काम करती है तभी कमोडिटी एक्सचेंजों का वास्तविक लाभ सभी सदस्यों तक पहुंचे। (नोट: लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के हैं, कमोडिटी एक्सचेंज के नहीं।) (Business Bhaskar)

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