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30 जनवरी 2009

भारतीय बासमती अभी भी होड़ लेने में पीछे

वैश्विक बाजारों में भारतीय बासमती चावल मूल्य के लिहाज से अपने प्रतिस्पर्धियों खासकर पाकिस्तान के आगे होड़ लेने में टिक नहीं पा रहा है। केंद्र सरकार द्वारा न्यूनतम निर्यात मूल्य में कमी और निर्यात शुल्क हटाने के बावजूद वैश्विक बाजारों में भारतीय बासमती की कीमतें तेज हैं। कारोबारी सूत्रों के मुताबिक सरकार के इन फैसलों से भारतीय बासमती का विश्व बाजार में कोई आकर्षण नहीं बढ़ पाया है। केआरबीएल लिमिटेड के अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक अनिल मित्तल ने बताया कि पता नहीं सरकार को इस तरह की नीति बनाने के लिए किसने गुमराह किया है। मौजूदा नीतियों की वजह से भारतीय बासमती उद्योग बुरी तरह से प्रभावित हो रहा है। भारतीय बासमती का निर्यात बढ़ाने के लिए पिछले सप्ताह सरकार ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) को 1200 डॉलर से घटा कर 1100 डॉलर कर दिया था। इसके अलावा 8000 रुपये प्रति टन निर्यात शुल्क हटा दिया गया था।मित्तल ने बताया कि मौजूदा समय में पूसा बासमती नंबर वन की मांग 875-900 डॉलर प्रति टन से ऊपर भाव पर नहीं है। जबकि पूसा 1121 की मांग करीब 1,000 डॉलर प्रति टन पर है। मौजूदा समय में महज सऊदी अरब एक हजार डॉलर प्रति टन पर भारतीय ब्लेंडेड बासमती के लिए दे रहा है। जबकि यूरोपीय आयातक महज 850-900 डॉलर प्रति टन पर ही खरीद को तैयार हैं। ऐसे में भारतीय बासमती की मांग बेहद कम है। वहीं पाकिस्तान नई फसल की बासमती 900 डॉलर प्रति टन और पुरानी बासमती एक हजार डॉलर प्रति टन के भाव पर विश्व बाजार में बेच रहा है।बासमती का ऊंचे एमईपी की वजह से घरेलू बाजारों में नवंबर के बाद से इसके भाव करीब तीस फीसदी तक गिर चुके हैं। ऐसे में किसानों को जहां बेहतर दाम नहीं मिल पा रहा है, वहीं निर्यातकों के सामने आने वाले दिनों में मुश्किलें बढ़ने की आशंका जताई जा रही है। (Business Bhaskar)

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