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25 मार्च 2009

चाय की बागवानी को मार रहा है सूखा

गुवाहाटी March 25, 2009
भारत के प्रमुख चाय उत्पादक राज्य असम के चाय उत्पादन में फरवरी और मार्च महीने के दौरान बहुत ज्यादा कमी आई है। इसकी प्रमुख वजह है कि सूखा के चलते फसल पर बुरा असर पड़ा।
अब इससे यह भय हो गया है कि अगले वित्त वर्ष में चाय के कुल उत्पादन में कमी की वजह से कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। भारत के कुल चाय उत्पादन में असम का योगदान 51 प्रतिशत है। वहां इस समय सूखे जैसी स्थिति है। अक्टूबर 2008 के बाद से यहां नाम मात्र की बारिश हुई है।
चाय उद्योग से जुड़े सूत्रों के मुताबिक इसका परिणाम यह हुआ है कि इस साल के फरवरी और मार्च महीने में चाय के उत्पादन में 75 प्रतिशत की कमी आ गई है। पिछले साल मार्च महीने में असम में चाय का कुल उत्पादन 2 करोड़ किलोग्राम के करीब हुआ था।
इस साल के फरवरी और मार्च महीने के उत्पादन के आधिकारिक आंकड़े अभी नहीं आए हैं। इस समय सूखे का प्रभाव बहुत ज्यादा है इसलिए इस समय चाय उद्योग उत्पादन की बजाय पौधों को बचाने पर ज्यादा ध्यान दे रहा है।
टी एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सेक्रेटरी दीपांजल डेका ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा कि इस समय हमारे लोगों का मुख्य उद्देश्य यह हो गया है कि पौधों को किस तरह बचाया जाए, उत्पादन के मसले को तो इस समय छोड़ ही दिया गया है।
डेका ने कहा कि दक्षिणी असम के बराक वैली और ब्रह्मपुत्र नदी के उत्तरी तट के इलाकों में सूखे का प्रभाव बहुत ज्यादा है, जहां पौधों को बचाना ही हमारी प्राथमिकता है, जहां हमने इस पर काम करना शुरू भी कर दिया है।
यहां हालत यह है कि बड़े चाय बागानों में भी सिंचाई की व्यवस्था इतनी पर्याप्त नहीं है कि चाय बागानों में पौधों को बचाया जा सके, जिससे चाय की नई पत्तियां आ सकें। डेका ने कहा कि पहली बात तो यह है कि हमारे चाय क्लोन्स सूखे को झेलने में सक्षम नहीं हैं। इसके साथ ही चाय उद्योग के पास सिंचाई की कोई सुविधा नहीं है, जिससे बडे पैमाने पर फसलों को बचाने की दिशा में काम किया जा सके।
इस समय सूखे का असर इतना व्यापक है कि हाल के वर्षों में ऐसी स्थिति नहीं देखी गई थी। हमारे पास सिंचाई की जो भी सुविधा है, उसका भरपूर इस्तेमाल कर हम कोशिश कर रहे हैं कि पौधों को बचा लिया जाए और जब बारिश आए तो हमें चाय की हरी पत्तियां मिलने लगें।
हालांकि मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि अप्रैल के पहले हफ्ते से सामान्य बारिश शुरू हो जाएगी। चाय उद्योग का मानना है कि अगर ऐसा होता है तो ताजी हरी पत्तियों को तैयार होने में 15-20 दिन और लग जाएंगे।
गुवाहाटी टी ऑक्शन सेंटर (जीटीएसी) द्वारा दिए गए आंकडों के मुताबिक मार्च में ताजी आवक पिछले साल की तुलना में नहीं के बराबर रहेगी। उदाहरण के लिए हाल के दिनों में नीलामी के लिए सीटीसी चाय की आवक केवल 5,000 किलो के करीब रही। जबकि सामान्य परिस्थितियों में इतनी आवक करीब हर दिन होती है।
उद्योग जगत के मुताबिक, इस साल उत्पादन में कमी की वजह से चाय की कीमतों की बोली में तेजी आ सकती है। पिछले साल जीटीएसी में चाय नीलामी के लिए औसत कीमत 94.99 रुपये प्रति किलो रही थी, जो 2007 की तुलना में 23 रुपये प्रति किलो ज्यादा थी।
असम का चाय उद्योग इस साल मंदी से उबर चुका था, जो 1999 के बाद से ही मंदी की चपेट में था। चाय की कीमतों में 23 रुपये प्रति किलो की तेजी के साथ ही उद्योग जगत ने उत्पादन और निर्यात में अच्छी खासी बढ़त दर्ज की थी। (BS HIndi)

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