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28 मार्च 2009

भारत में बीटी कपास की बढ़ी हुई उपज ने बदल दी है किसानों की जिंदगी

नई दिल्ली March 28, 2009
लगभग 27 साल के हितेश कुमार जगदीश भाई पटेल जो गुजरात के मणिनगर कांपा के एक खुशहाल किसान हैं।
उन्होंने बीटी क पास की खेती की, उससे उनकी जिंदगी में पूरी तरह से बदलाव आ गया। पांच साल पहले पटेल एक एकड़ में कपास के सामान्य बीज से 700 किलोग्राम कपास का उत्पादन करते थे।
लेकिन जब से उन्होंने बीटी कपास हाइब्रिड का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया तब से पैदावार दोगुनी से ज्यादा बढ़कर 1,800 किलोग्राम प्रति एकड़ हो चुकी है। पटेल की आय पिछले पांच सालों में अनुमानत: दोगुनी हो चुकी है हालांकि वह सही आंकड़े देने से मना कर देते हैं।
उनके पास कपास की खेती के लिए 25 एकड़ खेत है। बीटी कपास, पटेल की तरह ही देश के हजारों कपास किसानों की जिंदगी में एक बदलाव लेकर आई है। इसी वजह से भारत वर्ष 2006-07 में चीन के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा कपास उत्पादक देश बन गया। बीटी कपास एक आनुवांशिक परिवर्द्धित कपास है।
यह देश का पहला ऐसा बायोटेक उत्पाद है जिसे देश में व्यावसायिक खेती के लिए नियामक द्वारा स्वीकृति मिली है। बीटी कपास की खेती करने वाले किसानों की संख्या कुछ हजार से बढ़कर वर्ष 2002 में 38 लाख और फिर वर्ष 2007 में बढ़कर 50 लाख तक हो गई।
दरअसल यह देश के कुल कपास किसानों का दो तिहाई हिस्सा है। बीटी कपास तकनीक से राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 2002-2007 के बीच किसानों ने अपनी आय में लगभग 3 अरब डॉलर का इजाफा किया। उद्योग से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि वर्ष 2002 जो बीटी कपास का पहला साल था वह भारतीय कपास उत्पादन के हिस्सा का एक खास मोड़ था।
पिछले सात सालों के दौरान बीटी कपास को अपनाए जाने से कीट-पतंगों पर नियंत्रण का फायदा तो मिला ही साथ ही कीटनाशकों के छिड़काव में भी कमी आई। इससे आखिरकार किसानों को ही फायदा मिला। वर्ष 2002 में बीटी कपास की खेती 50,000 हेक्टेयर जमीन पर की गई जो वर्ष 2008 तक बढ़कर 76 लाख हेक्टेयर तक हो गई।
आज 93 लाख हेक्टेयर कपास की खेती की जमीन के 82 फीसदी हिस्से पर बीटी कपास की खेती होती है। दिलचस्प बात यह है कि भारत का कपास क्षेत्र दुनिया के कपास क्षेत्र का 25 फीसदी हिस्सा है। पहले भी दुनिया के कुल कपास उत्पादन में भी भारत की हिस्सेदारी 12 फीसदी थी क्योंकि मुल्क की पैदावार दुनिया भर में सबसे कम थी।
तस्वीर का दूसरा पहलू
कपास के उत्पादन में बढ़ोतरी से किसानों को जरूर फायदा हुआ लेकिन इसका समान असर देश के कपड़ा उद्योग पर नहीं पड़ा जिसके लिए कपास एक बड़े कच्चे माल के तौर पर इस्तेमाल होता है। दुनिया भर में चल रही आर्थिक मंदी की वजह से भारतीय कपड़ा उद्योग के उत्पाद की मांग में भी कमी आई।
कपड़ा उद्योग को कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य में बढ़ोतरी होने से भी झटका लगा। टेक्सटाइल्स के सेक्टर में भी आर्थिक मंदी की वजह से कई कताई मिलें बंद हो गईं और देश के कपास की मांग भी कम हो गई। उद्योग के एक अनुमान के मुताबिक हाल में कुल कताई क्षमता का 20 फीसदी बंद कर दिया गया है।
सरकार ने मौजूदा कपास वर्ष (सितंबर 2008-09) में कपास के न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 40 फीसदी से ज्यादा बढ़ाकर 2,500 रुपये से 3,000 रुपये प्रति क्विंटल कर दिया और यह अब तक की कीमतों में सबसे ज्यादा है। भारतीय कपड़ा उद्योग परिसंघ के डी. के. नायर के मुताबिक वैश्विक कपास की कीमतों में हाल के महीने में गिरावट आई है लेकिन एमएसपी की वजह से ही बाजार की शक्तियों को देश में सक्रिय होने से रोका गया।
नायर का कहना है, 'इस साल कपास के लिए बेहद अनुचित और ज्यादा एमएसपी की वजह से ही कपास और कपास से बने वस्त्र उत्पादों के लिए निर्यात के मौके खत्म हो गए। इससे हमारे कपास की कीमतों में कृत्रिम तरीके से बढ़ोतरी हो गई और यह अंतरराष्ट्रीय कीमतों से कहीं ज्यादा था।'
कॉटन एडवायजरी बोर्ड (सीएबी) के एक अनुमान के मुताबिक 290 लाख गांठ का उत्पादन किया गया था और खपत 230 लाख गांठ थी लेकिन इस साल स्टॉक खत्म होते-होते केवल 60 लाख गांठ रह जाएगा। इसका मतलब यह हुआ कि स्टॉक का अनुपात लगभग 26 फीसदी होगा और यह दुनिया के औसत 54 फीसदी से भी कम होगा।
नायर का कहना है, 'दुनिया के औसत 54 फीसदी तक पहुंचने के लिए मौजूदा कपास वर्ष में खत्म होने वाला स्टॉक भी 126 लाख गांठ तक होना चाहिए लेकिन सीएबी के अनुमान के मुताबिक यह 60 लाख गांठ है। इसका मतलब यह है कि हमारे पास निर्यात करने के लिए अतिरिक्त स्टॉक होना चाहिए।'
पिछले महीने सरकार ने विशेष कृषि और ग्रामोद्योग योजना के जरिए कच्चे कपास के निर्यात के लिए 5 फीसदी निर्यात इंसेंटिव दिया है जो अप्रैल 2008 से जून 2009 तक के लिए लागू है।
उद्योगों के अधिकारियों के मुताबिक पिछले निर्यात के लिए निर्यात इंसेंटिव से न तो किसानों को और न देश की अर्थव्यवस्था में कोई मदद मिलने वाली है। इससे केवल कुछ कारोबारी और कुछ कंपनियों को ही फायदा मिलेगा जिन्होंने पहले कपास का निर्यात किया है। किसान आज ज्यादा पैदावार और ज्यादा समर्थन मूल्य मिलने से खुश हैं। (BS Hindi)

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