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19 मार्च 2009

...नहीं घटीं खाद्यान्न की कीमतें

नई दिल्ली 03 18, 2009
खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमतों से उपभोक्ताओं को फिलहाल राहत नहीं मिलने वाली है।
हालांकि थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित महंगाई दर छह सालों के सबसे निम्नतम स्तर 2.43 फीसदी पर पहुंच चुकी है बावजूद इसके खाद्य पदार्थ की कीमतों में कोई कमी नहीं आई है।
डब्ल्यूपीआई में शामिल खाद्य पदार्थ की कीमतें 8.3 फीसदी तक पहुंच चुकी हैं। यह निर्मित वस्तुओं के सूचकांक में बढ़ोतरी से कहीं ज्यादा है। खनिज पदार्थ और ईंधन सेग्मेंट के डब्ल्यूपीआई में गिरावट देखी गई है इसकी वजह से महंगाई दर में भी गिरावट आई है।
दूसरी चीजों की कीमतों में तेजी के मुकाबले, खाद्य पदार्थ की कीमतों में बढ़ोतरी होने से साधारण लोगों पर बहुत असर पड़ता है। कई किस्म के उत्पादों के लिए खुदरा स्तर पर कीमतों में भी तेजी से उछाल आ रहा है। रोज इस्तेमाल होने वाले खाद्य पदार्थो मसलन चावल, चीनी, दालें और चाय की खुदरा कीमतों में भी एक साल पहले पहले के मुकाबले 22-47 फीसदी के दायरे में बढ़ोतरी हुई है।
विश्लेषकों का कहना है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के ज्यादा होने की वजह से खुदरा कीमतों में बढ़ोतरी हुई है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी. के. जोशी का कहना है, 'साल दर साल एमएसपी में बढ़ोतरी हो रही है। गेहूं और चावल की की खुदरा कीमतें इन कीमतों से ऊंची ही रहेगी। हमलोग प्रमुख रूप से खाद्य तेल का आयात करते हैं लेकिन मुद्रा मूल्य में कमी होने से आयात महंगा हो रहा है।'
उनका कहना है कि भविष्य में महंगाई दर कम होने का फायदा खाद्य पदार्थ क्षेत्र से नहीं बल्कि निर्माण सेक्टर और ईंधन से ही मिलेगा। गोदरेज इंटरनेशल के निदेशक दोराब ई. मिस्त्री ने हाल ही में एक सेमिनार में यह कहा है, 'वर्ष 2008 के मध्य से ही खाद्य पदार्थ की कीमतें रिकॉर्ड स्तर से भी कम हैं लेकिन अब उनमें फिर से तेजी आ रही है। साल की पहली छमाही में पाम तेल की कीमतें में भी तेजी आने की उम्मीद बन रही है लेकिन दूसरी छमाही में यह कमजोर हो सकता है।'
सभी खाद्य पदार्थ में चीनी में सबसे ज्यादा तेजी देखने को मिला है। इस साल अनाज के उत्पादन में भी 1.26 फीसदी की कमी आई और यह 2278.80 लाख टन हो गया है। घरेलू तिलहन फसलों में भी 12 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है इसी वजह से आयात पर निर्भरता बढ़ रही है।
कई बार यह तर्क दिया जाता है कि डब्ल्यूपीआई महंगाई को नहीं दर्शाता है क्योंकि इसमें केवल थोक कीमतों का ही जायजा लिया जाता है। लेकिन वर्ष 2007 और 2008 दिसंबर की अवधि में उपभोक्ता कीमत सूचकांक (सीपीआई) के आंकड़े सही तस्वीर नहीं पेश करते हैं (BS Hindi)

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