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26 मार्च 2009

गेहूं की रोग प्रतिरोधक दो नई किस्में विकसित

गेहूं अनुसंधान निदेशालय करनाल ने उत्तरी पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के लिए गेंहू की अधिक उपज देने वाली नई किस्म डीबी डब्ल्यू-ख्त्त विकसित की है। वही पंजाब विश्वविद्यालय ने भी मैदानी क्षेत्रों के लिए गेहूं की नई किस्म पीबी डब्ल्यू म्म्क् जारी की है। इन किस्मों को लेकर यहां के वैज्ञानिकों का दावा है कि इनमें रोगप्रतिरोधक क्षमता अन्य किस्मांे से कहीं अधिक है। पिछले कई सालों से पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और उत्तर प्रदेश के 80 फीसदी से अधिक किसानों द्वारा पीबी डब्ल्यू ब्भ्ब् और पीबीडब्लयू 502 की बुवाई की जा रही है। लेकिन पिछले ब्-भ् सालों में इन किस्मों में रोगरोधक क्षमता कम होने से इन पर तेला रोग और पीला रतुआ जैसी बीमारियों का प्रकोप बढ़ता जा रहा है। जिससे गेहूं क ी गुणवत्ता और उपज में कमी आई है। गेहूं अनुसंधान निदेशालय करनाल के परियोजना निदेशक डा. चग शोरन ने बिजनेस भास्कर को बताया कि गेंहू की इस समस्या से निपटने के लिए पिछले कुछ समय से निदेशालय गेहूं की नई किस्म को विकसित करने की कोशिश कर रहा था। उन्होंने बताया कि निदेशालय द्वारा किसानों के लिए जारी की गई गेहूं की नई किस्म डीबीडब्ल्यू -ख्त्त समय से बोई जाने वाली व सिंचित क्षेत्रों के लिए है। इसकी औसत पैदावार लगभग 50 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। जबकि अब तक बोई जाने वाली किस्मों की औसतन पैदावार प्रति हैक्टेयर 42 क्विंटल रही है।और इस नई किस्म में प्रोटीन की मात्रा ख्ख्.भ्9 फीसदी हैं। गेहूं अनुसंधान निदेशालय करनाल के फसल संरक्षण विभाग के प्रधान वैज्ञानिक डा. डी पी सिंह ने बताया कि डीबी डब्ल्यू-ख्त्त किस्म पीला रतुवा, करनाल बंट, ब्राउन रतुवा, तना बेधक व झुलसा रोग आदि बीमारी के प्रति पूरी तरह रोगरोधक हैं। परीक्षण में देखा गया है कि इन बीमारियों का इस किस्म पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। उन्होंने बताया कि पीबी डब्ल्यू म्म्क् की औसत उपज लगभग भ्त्त क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। जोकि अभी तक बोई जानी वाली किस्मों के मुकाबले ज्यादा है। (Business Bhaskar)

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