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23 अप्रैल 2009

जूट की ऊंची कीमतों ने छुड़ाए उद्योग जगत के पसीने

कोलकाता 04 23, 2009
रबर के बाद जूट एक और ऐसा जिंस बन गया है, जिसे खरीदने में इसका उपभोग करने वाले जूट उद्योग के पसीने छूट रहे हैं।
कीमतों में बढ़ोतरी होती जा रही है और मिलें हेजिंग में सक्षम नहीं हो रही हैं। जूट की कीमतें पिछले सीजन की तुलना में 63 प्रतिशत बढ़ी हैं, क्योंकि इस फसल के उत्पादन में कमी आई है।
पिछले एक साल के दौरान कच्चे जूट की कीमतों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है। हालांकि इस दौरान जूट की मांग स्थिर बनी रही। पश्चिम बंगाल में कच्चे जूट की कीमतें (टीडी-5 किस्म) वर्तमान में 2370 रुपये प्रति क्विंटल हैं, जबकि पिछले साल इस दौरान कीमतें 1,395 रुपये प्रति क्विंटल थीं। इसके साथ ही कच्चे जूट की आपूर्ति में भी कमी आई है।
इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) के चेयरमैन संजय कजरिया के मुताबिक मिलों का स्टॉक अप्रैल माह में कम होकर 12 लाख गांठ रह गया है, जो खपत को देखते हुए मात्र 6 हफ्ते के लिए ही है।
इस दौरान जूट के उत्पादन में भी खासी गिरावट आई है। लगातार कई सालों के दौरान मुनाफा कम होते देख, जूट की खेती करने वाले किसानों ने अन्य फसलों की खेती करने में ही भलाई समझी, जिसके चलते उत्पादन में गिरावट आई है।
जूट की खेती करने वाले ज्यादातर किसानों ने तिलहन और खाद्यान्न के उत्पादन की ओर आकर्षित हो गए। उम्मीद की जा रही है कि कच्चे जूट के उत्पादन में 1.3 लाख गांठ की कमी आएगी और उत्पादन पिछले साल के 95 लाख टन से गिरकर 2008-09 के जूट सीजन में 82 लाख टन रह जाएगा।
जूट कमिश्नर कार्यालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कम आपूर्ति की वजह से कीमतों में कमी आई है। पिछले कुछ सालों से किसानों को बहुत सस्ती दरों पर कपास बेचना पड़ता था। 'इसका परिणाम यह हुआ कि जब किसानों को उनकी फसल का उचित मूल्य मिलने लगा तो मिल मालिकों को खरीदने में कठिनाई होने लगी।'
बहरहाल सरकार भी इस बात की कोशिश कर रही है कि जूट की मांग में सुधार हो, जिसका असर कीमतों पर पड़ रहा है। टेक्सटाइल मंत्रालय ने चीनी उद्योग को पैकेजिंग सामग्री के रूप में पॉलीएथेलीन और पॉलीप्रोपलीन के 20 प्रतिशत प्रयोग की अनुमति 1 मई तक के लिए दे दी है, क्योंकि जूट की कमी हो गई है।
उधर जूट मिल मालिकों का मानना है कि कच्चे जूट की कीमतों में अप्रत्याशित बढ़ोतरी की प्रमुख वजह जमाखोरी है, सट्टेबाज कारोबारियों ने 20 लाख गांठ कपास जमा कर रखी है, जो कमोडिटी एक्सचेंजों द्वारा संचालित है।
कजरिया ने कहा, 'कीमतों में बढ़ोतरी की प्रमुख वजह यह है कि सट्टेबाजी के माध्यम से कारोबार करने वालों ने कीमतों में बढ़ोतरी की उम्मीद से कमोडिटी एक्सचेंजों में 20 लाख गांठ कपास जमा कर लिया है। मिलें स्टॉक बनाने के लिए खरीद करने में सक्षम नहीं हो रही हैं, जिसके चलते उनके स्टॉक में कमी आ गई है।'
जून 2008 से कपास की कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है। जूट वर्ष की शुरुआत में कीमतें 14,00 रुपये प्रति क्विंटल थीं। फरवरी 2009 में कीमतें बढ़कर 2000 रुपये प्रति क्विंटल हो गई हैं। 30 अप्रैल 2009 की डिलिवरी में कच्चे जूट की कीमतें एमसीएक्स में 2,400 रुपये प्रति क्विंटल रहीं।
इस साल जूट की कुल आपूर्ति 106 लाख गांठों (एक गांठ 180 किलो की) की रही। इसमें 82 लाख गांठ ताजा फसलों की और 22 लाख गांठ अग्रिम स्टॉक की थी। इशके अलावा 2 लाख गांठ जूट का आयात किया गया। पिछले साल जूट की कुल आपूर्ति 110 लाख गांठ की थी और फसल का उत्पादन 95 लाख गांठ था, जिसमें पिछले साल की तुलना में 5 प्रतिशत की गिरावट आई थी।
हाल ही में कजरिया ने केंद्रीय टेक्सटाइल मंत्रालय को पत्र लिखा था, जिसमें अनुरोध किया गया था कि सरकार इस जिंस के वायदा कारोबार पर प्रतिबंध लगाए। पत्र में कहा गया था कि वायदा बाजार आयोग ने इस जिंस के वायदा कारोबार की अनुमति दे दी है इसलिए जरूरी है कि सरकार इस पर नजर रखे। (BS Hindi)

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