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27 मई 2009

नई सरकार से चीनी मिलों को है नियमों में बदलाव की ढेरों उम्मीदें

May 26, 2009
केंद्र में नई सरकार के बनने के बाद एक अहम सवाल है कि ज्यादा सुधार की नीति से चीनी मिल उद्योगों का भला होगा?
इस उद्योग की मांग यह है कि सरकार चीनी उत्पादन के 10 फीसदी का वितरण राशन दुकानों के जरिए करने के फैसले को खत्म करे। बिना सुधार के चीनी कारोबार में उतार-चढ़ाव सी स्थिति बनेगी और इससे शेयरधारकों समय-समय पर परेशानी होगी।
कुछ समय पहले देश में रिकॉर्ड स्तर पर 2.83 करोड़ टन चीनी का उत्पादन हुआ। एक दफे तो इस जिंस की एक्स-फैक्टरी कीमत 1,200 रुपये प्रति क्विंटल के नीचे चली गई और वर्ष 2006-07 में औसत कीमत केवल 1,351 रुपये थी।
कीमत के लिहाज से उसके बाद के वर्षों में स्थिति खराब ही होती गई इसकी वजह यह थी कि चीनी का ज्यादा भंडार तैयार होगया और उत्पादन भी जबरदस्त रहा। नतीजतन सभी चीनी उत्पादकों को बड़े घाटे से जूझना पड़ा। लंबे समय तक गन्ना उत्पादकों को 8,000 करोड़ रुपये तक के बकाये की रकम नहीं मिल पाई।
ज्यादा उत्पादन की वजह से सरकार को इस उद्योग के लिए तरलता का प्रबंधन करने के लिए मजबूर होना पड़ा। सरकार ने इसके लिए कर्ज की राशि को ब्याज मुक्त कर दिया जो दो सीजन के लिए भुगतान किए जाने वाले उत्पाद कर के बराबर है ताकि गन्ना किसानों की बकाया राशि का भुगतान किया जा सके।
इसके अलावा विश्व व्यापार संगठन से भी निर्यात पर से सब्सिडी हटाने के लिए शिकायत की गई ताकि अतिरिक्त उत्पादन के बोझ को कम किया जा सके। भारतीय चीनी मिल संगठन के महानिदेशक एस एल जैन के मुताबिक अब गन्ने के कम उत्पादन की वजह से एक नए तरह का संकट पैदा हो रहा और चीनी उत्पादन में गिरावट आ रही है।
इस साल सितंबर को खत्म होने वाले मौजूदा सीजन में देश में कम से कम 25 लाख टन महंगी कच्ची चीनी का आयात किया जा रहा है। पिछले साल के 50 लाख टन निर्यात की वजह से बदलाव नजर आया इस प्रक्रि या में दुनिया के बेहतरीन गुणवत्ता वाली कच्ची चीनी के उत्पादक के तौर पहचान मिली।
चीनी के सीजन के दौरान या उससे पहले के सभी अनुमानों को झटका लगा। वर्ष 2008-09 में देश में कम चीनी का उत्पादन हुआ और यह 1.47 करोड़ टन रहा। गन्ने की फसल में कम से 5 करोड़ टन की कमी देखी गई और यह 29 करोड़ टन रहा। इसके साथ ही चीनी की रिकवरी में भी एक फीसदी तक की गिरावट देखी गई।
इस सीजन में उत्तर प्रदेश की चीनी फैक्टरियों को गन्ना पाने के लिए कड़ी प्रतियोगिता करनी पड़ी। इसकी प्रक्रिया में किसानों को गन्ने की कीमत 260 रुपये प्रति क्विंटल तक मिली। फैक्टरियों को अपने क्षेत्र के गन्ना उत्पादकों के लिए बेहतर पेशकश करनी पड़ी। गुड़ और खांडसारी इकाइयों को गन्ना किसानों को प्रीमियम कीमत का भुगतान करना पड़ा। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि फैक्टरियों की गन्ना आपूर्ति फरवरी के अंत तक खत्म हो गई।
जैन का कहना है कि देश को अतिरिक्त उत्पादन के संकट से अब कम आपूर्ति की दिक्कतों को झेलना पड़ रहा है। इसकी वजह यह है कि इस उद्योग के तार केंद्र के साथ राज्य स्तर पर भी कई कड़ियों से जुड़े हैं।
इस उद्योग के अधिकारी ओम धानुका का कहना है, 'चीनी की कीमतों पर बिना सोचे समझे जो नियंत्रण लगाया उसकी वजह से उगाही कीमतों में कोई बदलाव नहीं आया और यह 1,322 रुपये प्रति क्विंटल पर बना रहा। वहीं चीनी उत्पादन की औसत लागत जो 150 रुपये प्रति क्विंटल गन्ने की कीमत से जुड़ी है और यह 2,100 रुपये प्रति क्विंटल है।'
जैन का कहना है, 'देश में कोई ऐसा उद्योग है जिसे जिंस के सार्वजनिक वितरण को मदद देने के लिए हर साल लगभग 2,000 करोड़ रुपये का बोझ उठाना पड़ता हो? यह सबको पता है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत बेचे जाने वाली चीनी की कीमत और खुले बाजार की कीमत में बहुत बड़ा अंतर है। इसके अलावा बड़े पैमाने पर सार्वजनिक वितरण प्रणाली में धांधली को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।'
यूपीए की नई सरकार सुधारों को ज्यादा आगे नहीं बढ़ाएगी क्योंकि अब ये वाम दलों के समर्थन पर निर्भर नहीं हैं। उम्मीद की जा रहा है कि कृषि मंत्री शरद पवार इस क्षेत्र की समस्याओं को समझेंगे और महाराष्ट्र के बाहर की चीनी मिलों पर भी ध्यान देंगे।
सरकार जल्द ही गन्ने के वैधानिक न्यूनतम कीमत की घोषणा कर सकती है ताकि किसानों ज्यादा से ज्यादा जमीन पर इस नकदी फसल की खेती करने के लिए प्रोत्साहित हों। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग यह चाहती है कि वर्ष 2009-10 के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एसएमपी) 125 रुपये प्रति क्विंटल हो जिसे प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार समिती ने 107.76 रुपये प्रति क्विंटल रखा है।
यह मंत्रीमंडल की ख्वाहिश है कि एसएमपी पर न्यायपूर्ण फैसले लिए जाएं। अगर एसएमपी की नई दर निर्धारित की जाती है तो 10 से 15 फीसदी अतिरिक्त जमीन पर गन्ने की खेती बढ़ सकती है। अगर मानसून सामान्य रहा तो गन्ने की उत्पादकता में बढ़ोतरी होगी और ज्यादा चीनी का उत्पादन भी बढ़ेगा। शायद यही वजह है कि वर्ष 2009-10 के दौरान चीनी का उत्पादन 2.1 करोड़ टन हो सकता है। (BS HIndi)

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