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20 मई 2009

डॉलर गिरने पर भी अरहर, उड़द सस्ती होने की संभावना कम

रुपये के मुकाबले डॉलर कमजोर होने के बावजूद घरेलू पैदावार में कमी से अरहर और उड़द की कीमतों में भारी गिरावट की संभावना नहीं है। मंगलवार को डॉलर के मुकाबले रुपया बढ़कर 47.36 के स्तर पर पहुंच गया। डॉलर कमजोर होने से आयातित अरहर और उड़द के भाव मुंबई पोर्ट पर घटकर क्रमश: 3850 रुपये व 2950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए। हालांकि मंगलवार को इनके भावों में 50 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट देखी गई लेकिन घरेलू पैदावार में कमी की आशंका से भारी गिरावट के आसार नहीं है।दलहन आयातक संतोष उपाध्याय ने बिजनेस भास्कर को बताया कि रुपये के मुकाबले डॉलर में गिरावट से अरहर और उड़द की कीमतों पर आंशिक प्रभाव पड़ सकता है। इस समय म्यांमार के निर्यातकों द्वारा अरहर के भाव 800-820 डॉलर और उड़द के भाव 600-611 डॉलर प्रति टन बोले जा रहे हैं लेकिन इन भावों में भारतीय आयातक सीमित मात्रा में ही सौदे कर रहे थे। अब चूंकि डॉलर के भाव घट रहे है। अगर आगामी दिनों में डॉलर में और गिरावट आती है तो फिर भारतीय आयातकों की खरीद बढ़ सकती है। हालांकि आयात में बढ़ोतरी होने के बावजूद घरेलू बाजार में अरहर और उड़द के मौजूदा भावों में भारी गिरावट की संभावना नहीं है।कृषि मंत्रालय द्वारा हाल ही में जारी तीसरे आरंभिक अनुमान के मुताबिक दालों का उत्पादन 147 लाख टन के मुकाबले घटकर 141 लाख टन रहने की संभावना है। अरहर की पैदावार में इस साल भारी कमी आई है। अरहर की पैदावार पिछले साल के 30 लाख टन के मुकाबले घटकर मात्र 23 लाख टन ही होने की संभावना है। उड़द में रबी फसल की पैदावार भी पिछले साल के 3.4 लाख टन के मुकाबले 2.9 लाख टन होने का अनुमान है। सरकारी एजेंसियों ने वित्त वर्ष 2008-09 के दौरान 95,140 टन अरहर और 125,000 टन उड़द का आयात किया है।जलगांव दाल मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रेम कोगता ने बताया कि गुलबर्गा मंडी में अरहर के भाव 4000 रुपये और लातूर में 4025 रुपये तथा जलगांव में 4050 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। उड़द के भाव इन मंडियों में 3200 से 3300 रुपये प्रति क्विंटल चल रहे हैं। डॉलर कमजोर होने से आयातित अरहर और उड़द के भाव में 50 रुपये की गिरावट आकर मुंबई में भाव क्रमश: 3850 रुपये और 2950 रुपये प्रति क्विंटल रह गए लेकिन देसी माल के भाव ज्यों के त्यों बने रहे।दाल मिलर्स सुनील बंदवार ने बताया कि अरहर और उड़द की बुवाई जून के आखिर में शुरू हो जाएगी तथा जुलाई के मध्य तक चलेगी। मौजूदा भावों को देखते हुए इनके बुवाई क्षेत्रफल में अच्छी बढ़ोतरी की संभावना तो है लेकिन बुवाई का सारा दारोमदार मौसम पर निर्भर करेगा। प्रमुख उत्पादक राज्यों महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्रप्रदेश में मानसून ठीक-ठाक रहा तो बुवाई क्षेत्रफल में अच्छी बढ़ोतरी हो सकती है। अरहर की नई फसल आने में करीब छह-सात महीने और उड़द की नई फसल आने में तीन-चार महीने का समय है। घरेलू बाजार में स्टॉक कम होने से आयात बढ़ने के बावजूद भारी गिरावट के आसार कम ही हैं। (Buinsess Bhaskar...R S Rana)

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