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22 जुलाई 2009

खाद्य उत्पादों की कीमतों पर लगाम लगाने की तैयारी

नई दिल्ली : खाद्य उत्पादों की कीमतों में उछाल और दक्षिण-पश्चिमी मानसून की बेवफाई से सतर्क हुई सरकार कई आपातकालीन उपायों पर विचार कर रही है। इनमें चावल और गेहूं की खुले बाजार में बिक्री और निजी कंपनियों को ड्यूटी से राहत देते हुए चीनी आयात करने की मंजूरी देना शामिल है। एक सरकारी अधिकारी ने इकनॉमिक टाइम्स को बताया कि सरकार निजी कंपनियों की ओर से उत्पादित बीजों पर सब्सिडी दे सकती है और साथ ही राष्ट्रीय खाद्य भंडार में सबसे ज्यादा योगदान देने वाले पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में पानी को तरसती फसलों की सिंचाई के लिए अतिरिक्त बिजली मुहैया कराई जा सकती है।
अधिकारी ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर बताया कि गेहूं और चावल पर अंतिम फैसला त्योहारों का मौसम शुरू होने से ठीक पहले अगले महीने के अंत में किया जा सकता है, जबकि चीनी के बारे में निर्णय पहले लिया जाएगा। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के स्टोरहाउस में रखा चावल सितंबर से खुले बाजार में उपलब्ध कराया जा सकता है। इसकी कीमत, न्यूनतम समर्थन मूल्य में माल-ढुलाई जोड़ने के बाद सामने आने वाली रकम होगी, जो किसी भी सूरत में किराना स्टोर में बिक रहे चावल की तुलना में सस्ती होगी। चावल के दाम बीते एक साल के दौरान 20 फीसदी बढ़े हैं और चिंता जताई जा रही है कि अगर उत्तर प्रदेश तथा बिहार जैसे राज्यों में धान की फसल नाकाम होती है, तो हालात बदतर हो सकते हैं। मौजूदा आधिकारिक अनुमानों के मुताबिक इस खरीफ सीजन में चावल का नुकसान अब तक 50 लाख टन है। इस बीच गेहूं की कीमतें भी धीरे-धीरे बढ़ रही हैं, क्योंकि निजी मिलों से सप्लाई सूख रही है। उम्मीद जताई जा रही है कि मंत्रियों का उच्चाधिकार प्राप्त समूह एफसीआई के गेहूं की बिक्री मिलों और बेकरियों को बहाल करने पर फैसला कर सकता है। एफसीआई के पास फिलहाल 3.8 करोड़ टन गेहूं हैं, जो पूरे साल में राशन की दुकानों से भारतीयों की ओर से खरीदे जाने वाले गेहूं से भी ज्यादा है। इसके अलावा कैबिनेट यह निर्णय ले सकता है कि निजी खिलाडि़यों को शुल्क रहित चीनी आयात करने की इजाजत देनी है या नहीं। सरकार खुद रिफाइंड चीनी का आयात करने का फैसला भी कर सकती है, क्योंकि एमएमटीसी, एसटीसी और पीईसी जैसी सरकारी कंपनियां ज्यादा कारोबार करने में नाकाम रही हैं। इस साल घरेलू उत्पाद चीनी की मांग का 25 फीसदी पूरा नहीं कर पाया है और देश काफी हद तक आयात पर निर्भर कर रहा है। खुदरा कीमतों में उछाल के बावजूद दालों की सप्लाई को लेकर कम ही चिंता है, क्योंकि किसान सामान्य फसल में हुए घाटे की खानापूर्ति के लिए तूर, मूंग और मोठ जैसी दालों पर फोकस बढ़ा रहे हैं। इससे भरोसा हुआ है कि कुछ महीने बाद जब फसल कटेगी, तो दामों में नरमी आनी शुरू हो जाएगी। और तब तक आयात अपनी भूमिका निभाएगा। इस बीच, खाद्यान्न का सबसे बड़ा हिस्सा देने वाले हरियाणा और पंजाब को अगले 15 दिन तक फसलों की सिंचाई के लिए 100 मेगावाट बिजली दी जाएगी। (ET Hindi)

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