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28 सितंबर 2009

बासमती किसानों पर अब रसायन विवाद की मार

डीजल फूंक कर इस बार बासमती धान बचाने में कामयाब रहे किसान अब एक और परेशानी से घिर गए हैं। नई फसल की आवक के ऐन मौके पर ऐसा विवाद उठा है जिसका खमियाजा किसानों को भुगतना पड़ सकता है। देश के बासमती उत्पादक इस बार ईरान में भारतीय बासमती चावल को लेकर उठे विवाद से परेशान हैं। भारतीय बासमती चावल में आर्सेनिक और लेड के अंश पाए जाने के ईरान के आरोप ने यहां के उन किसानों की परेशानी बढ़ा दी है जिन्होंने ऊंचे दाम की आस में इस बार बासमती का रकबा बढ़ाया है। पंजाब और हरियाणा में इस साल बासमती धान का रकबा पिछले साल की तुलना में 50 फीसदी बढ़ाने वाले किसान इस बात को लेकर परशान हैं कि एक अक्टूबर से शुरू हो रही धान खरीद में उन्हें वाजिब दाम न मिलने से नुकसान होगा। पंजाब में इस साल किसानों ने 6 लाख हेक्टेयर और हरियाणा में 5 लाख हेक्टेयर में बासमती किस्मों की बुवाई की है जिनमें से 80 फीसदी रकबा पूसा 1121 का है। वहीं, पिछले साल पंजाब में बासमती का रकबा 3।5 लाख हेक्टेयर और हरियाणा में 3.8 लाख हेक्टेयर था।बासमती में रसायन प्रकरण को ईरान की राजनीति से प्रेरित बताते हुए ऑल इंडिया राइस एक्सपोर्टर एसोसिएशन का कहना है कि ईरान में इस साल चावल की अच्छी पैदावार के मद्देनजर वहां के स्थानीय किसानों का सरकार पर यह दबाव है कि भारत और पाकिस्तान से बासमती का आयात न हो। चावल की गुणवत्ता को लेकर आश्वस्त होने की खातिर एसोसिएशन ने इसके नमूने श्रीराम लैब और एसजीएस लैब में भेजे हैं। एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष विजय सेतिया ने बताया कि मंगलवार को लैब की जांच रिपोर्ट आ जाएगी। उन्होंने इस बात से इनकार किया कि किसी भारतीय चावल निर्यातक का चावल रसायन के अंश पाए जाने के आरोपों की वजह से बंदरगाह पर रोका गया है।सेतिया ने कहा कि मांग से अधिक चावल का आयात होने के आसार को देखते हुए ही वहां के कुछ आयातक बंदरगाहों से माल उठाने में आनाकानी कर रहे हैं। सालाना प्रति व्यक्ति 45.5 किलो चावल की खपत करने वाले ईरान में वर्ष 2,008 के दौरान सूखे के चलते चावल का उत्पादन घटकर 22 लाख टन रह गया था, जबकि खपत 30 लाख टन की थी। ईरान ने वर्ष 2008 मंे 6.30 लाख टन चावल का आयात यूएई, पाकिस्तान और भारत से किया था। वहीं, वर्ष 2009 में 14 लाख टन चावल आयात के आर्डर ईरान ने भारत, पाकिस्तान और यूएई को दिए हैं। हालांकि, ईरान का उत्पादन भी इस साल बढ़कर 25 लाख टन हो जाने की उम्मीद है। उधर, भारतीय बासमती मंे आर्सेनिक और लेड के अंश पाए जाने के ईरान के आरोप के चलते और आगामी नई फसल की आवक को देखते हुए पिछले 15 दिनों में यहां बासमती चावल की तमाम किस्मों के भावों में 15 से 20 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। 15 दिन पहले 75 रुपये किलो के भाव वाले सेला चावल का भाव गिरकर 55-60 रुपये किलो रह गया है। पंजाब मंडी बोर्ड के चेयरमैन अजमेर सिंह लखोवाल ईरान के इन आरोपों को एक साजिश के रूप में देख रहे हैं। उनका कहना है कि पूसा 1121 का भाव इस बार मंडियों में 3000 रुपये प्रति क्विंटल रहने की उम्मीद थी क्योंकि निर्यातक इसी किस्म की सबसे अधिक खरीदारी करते हैं। उनका कहना है कि पिछले साल भी धान की नई फसल की आवक के समय पूसा 1121 का निर्यात रुकवाने में निर्यातक कंपनियां सफल हो गई थीं। इसके परिणामस्वरूप पूसा 1121 के भाव 3,000 रुपये प्रति क्ंिवटल से गिरकर महज 1,800 रुपये पर आ गए थे। हालांकि, इसके दो महीने बाद इसी किस्म के भाव बढ़कर 3,500 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। (बिज़नस भास्कर)

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