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30 दिसंबर 2009

दाम न मिलने से जूट उद्योग को लगा चूना

भुवनेश्वर December 29, 2009
बी टि्वल जूट बोरियों की कीमत के पुराने फॉर्मूले के चलते जूट उद्योग को 2001 से अब तक 300 करोड़ रुपये का नुकसान हो चुका है।
इस फॉर्मूले को ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्रियल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज (अब टैरिफ कमीशन) ने 2001 में मंजूर किया था। कपड़ा मंत्रालय ने भी बी इंडियन जूट मिल्स एसोसिएशन (आईजेएमए) की टि्वल जूट बोरियों के उचित मूल्य की मांग का समर्थन किया है।
इस मसले पर जून 2009 में पेश टैरिफ कमीशन की रिपोर्ट अभी कपड़ा मंत्रालय के विचाराधीन है। बाजार की स्थितियों के मुताबिक बदलाव लाने और मौजूदा नीति को दुरुस्त करने के लिए आईजेएमए के पास अभी मौका है। वह केंद्रीय कपड़ा मंत्रालय और जूट आयुक्त से जरूरी हस्तक्षेप के लिए दोबारा अपील कर सकता है।
टैरिफ कमीशन की जून 2009 में पेश रिपोर्ट में आईजेएमए की बी टि्वल बोरियों के उचित और संशोधित मूल्य की चिर प्रतीक्षित मांग का पुरजोर समर्थन किया गया है। इस कमीशन ने मई 2007 से अध्ययन किया था। उल्लेखनीय है कि बी टि्वल बोरियों की मूल्य का निर्धारण अभी जूट आयुक्त कार्यालय करता है।
इसका निर्धारण ब्यूरो ऑफ इंडस्ट्रियल कॉस्ट्स ऐंड प्राइसेज की 2001 रिपोर्ट के आधार पर किया जाता है। इस रिपोर्ट के आधार पर जूट आयुक्त कार्यालय केवल जूट की लागत, पैक शीट, जूट बैचिंग ऑयल, खरीदे गए ऊर्जा की लागत और महंगाई भत्ते में परिवर्तन का ख्याल रखता है।
जूट आयुक्त द्वारा तय बी टि्वल बोरियों का पुराना मूल्य फॉर्म्यूला लागत में इजाफे (स्टोर सामग्री, पैकिंग सामग्री, मरम्मत खर्च आदि) का ख्याल रख पाने में विफल रहा है। जूट उद्योग पिछले 8 सालों से इस अतिरिक्त लागत को कपड़ा मंत्रालय से वापस दिला पाने में विफल रहा है।
2001 से उद्योग को उचित और वाजिब कीमत नहीं दी गई है। बी टि्वल बोरियों की कीमतों का निर्धारण टैरिफ कमीशन के 2001 के पुराने फर्ॉम्यूले के आधार पर किया गया है। यही नहीं स्टोरों और पैकिंग की लागत में जोरदार वृद्धि के बावजूद जूट उद्योग को बोरियों की कीमत बढ़ाने से रोका गया है।
पुराना नियम
कीमत के पुराने फॉर्मूले के चलते जूट उद्योग को 2001 से अब तक 300 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ हैआईजेएमए कर रहा है टि्वल जूट की बोरियों के वाजिब दाम की मांगकपड़ा मंत्रालय ने भी किया जूट उद्योग का समर्थनटैरिफ कमीशन की रिपोर्ट कपड़ा मंत्रालय में लंबित (बीएस हिन्दी)

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