कुल पेज दृश्य

24 दिसंबर 2009

कर संहिता में बदलाव की मांग

मुंबई December 22, 2009
घरेलू रत्न एवं जवाहरात उद्योग ने सरकार से प्रस्तावित प्रत्यक्ष कर संहिता (डीटीसी) में टीडीएस यानी स्रोत पर कर में कटौती की संरचना में बदलाव करने की गुजारिश की है।
सरकार ने जुलाई में डीटीसी मसौदा तैयार किया था और उद्योग से इस पर राय मांगी थी। डीटीसी के जरिए सरकार पूरे देश में एक समान कर व्यवस्था लागू करना चाहती है। देश में घरेलू रत्न एवं जवाहरात उद्योग 112,000 करोड़ रुपये का है।
मौजूदा व्यवस्था में जौहरी को 10 फीसदी का टीडीएस देना होता है, चाहे उसे कारोबारी मार्जिन मिले या न मिले। यह उद्योग बहुत ही कम मुनाफे के साथ चल रहा है। सोना व्यवसायी 0.25 फीसदी, गहने बनाने वाले 5-6 फीसदी और खुदरा विक्रेता 15-20 फीसदी के मुनाफे पर काम कर रहे हैं।
अखिल भारत रत्न एवं जवाहरात व्यापार संघ (जीजेएफ) के पूर्व प्रधान अशोक मीनावाला का कहना है कि,'अगर सरकार टीडीएस के तौर पर 10 फीसदी पूंजी ले और व्यवसायी कई जौहरियों से सौदा करता है, तो उसकी सारी पूंजी कर के रूप में ही चली जाती है।'
आभूषणों में 90 फीसदी मूल्य कच्चेमाल का होता है और 10 फीसदी ऊपरी लागत होती है। डीटीसी की अभी की संरचना में मौजूदा भाव पर एक किलो सोने के लिए 1.70 लाख रुपये टीडीएस के तौर पर चुकाने होंगे। इस तरह 1.70 लाख रुपये के फंसने पर आपूर्तिकर्ता का लाभ महज 4,000 रुपये आएगा।
जीजेएफ ने वित्त मंत्रालय से जांच और जब्ती की व्यवस्था में भी कुछ नरमी बरतने को कहा है। मीनावाला का कहना है कि गलत तरीके से व्यापार की स्थिति में पूरा स्टॉक जब्त हो जाने से बाजार पर बुरा असर पड़ता है। जीजेएफ कुल पूंजी पर 2 फीसदी के समान कर को भी सही नहीं मानता।
मीनावाला कहते हैं कि ,'कोई कंपनी सिर्फ 2 फीसदी का मुनाफा कमाए और दूसरी कंपनी 8 फीसदी का मुनाफा कमाए, तो दोनों के लिए 2 फीसदी का कर जायज नहीं है।' बतौर स्टॉक रखे गए माल से कोई मुनाफा नहीं होता। ऐसे में इसे किसी भी कर से मुक्त रखा जाना चाहिए।
मीनावाला कहते हैं कि अगर टीडीएस की संरचना में जरूरी बदलाव नहीं हुआ तो यह उद्योग के लिए काफी अहितकर होगा और इसके बंद होने के हालात पैदा हो सकते हैं। उद्योग का इस साल 12-15 फीसदी विकास का लक्ष्य है। पिछले साल 10-12 फीसदी वृध्दि दर्ज की गई थी। (बीएस हिन्दी)

कोई टिप्पणी नहीं: