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14 जनवरी 2010

जागी सरकार, 15 दिन में महंगाई कम करने का वादा

नई दिल्ली : खाद्य उत्पादों की बढ़ती कीमतों के मुद्दे पर चौतरफा आलोचना की शिकार बनी केंद्र सरकार ने बुधवार को इनके दाम कम करने के लिए एक साथ कई उपायों का एलान किया। कृषि मंत्री शरद पवार ने भी वादा किया 10 से 15 दिनों में खाद्य पदार्थों की कीमतों में नरमी आ जाएगी। कीमतों से जुड़ी कैबिनेट समिति (सीसीपी) ने एक बैठक में कच्ची चीनी के आयात की मियाद 31 दिसंबर 2010 तक बढ़ाने का फैसला किया। इसके अलावा, सीमा और उत्पाद शुल्क के एक अहम नियम में संशोधन करने का निर्णय हुआ, ताकि उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों द्वारा आयातित और दो महीने से ज्यादा वक्त से बंदरगाहों पर पड़ी 10 लाख टन कच्ची चीनी का देश में कहीं भी प्रसंस्करण किया जा सके। सीसीपी ने राज्यों में सस्ते खाद्य तेलों और दालों के वितरण वाली योजनाओं के लिए जरूरत पड़ने पर सब्सिडी बढ़ाने की भी मंजूरी दी।खाद्य उत्पादों की मुद्रास्फीति की वार्षिक दर 26 दिसंबर को खत्म सप्ताह के लिए 18।22 फीसदी रही। पवार ने जोर दिया कि कीमतों पर काबू पाने से जुड़ी रणनीति लागू करने की जिम्मेदारी काफी हद तक राज्यों पर है, जिनसे ज्यादा सक्रिय भूमिका अदा करने की उम्मीद है। कीमत प्रबंधन योजनाएं लागू करने का जिम्मा राज्यों पर ज्यादा है। इस महीने के अंत में प्रधानमंत्री से मुलाकात करने जा रहे मुख्यमंत्रियों पर केंद्र सरकार दबाव डालेगी कि जमाखोरों के खिलाफ उपायों को सख्त बनाया जाए और गेंहू, चावल, दाल तथा चीनी का भंडार रखने की सीमा तय की जाए। इसके अलावा आवश्यक कमोडिटी अधिनियम (ईसीए) का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ कड़े कदम उठाने की हिदायत भी दी जाएगी। राज्यों को चीनी पर वैट और मंडी के भारी टैक्स से रियायत देनी होगी और कल्याण कार्यक्रमों के लिए गेंहू और चावल की उठान अधिक से अधिक करनी होगी जो फिलहाल काफी कम रही है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने स्वीकार किया, 'इस बात की संभावना भी कम है कि राज्य सरकारें चुप्पी साधकर सीसीपी की ओर से रेखांकित किए गए सुझावों को स्वीकार कर लेंगी। वैट और मंडी के ऊंचे टैक्स (पंजाब में 12 फीसदी से ज्यादा, जहां से केंद्र सरकार अपनी कल्याणकारी योजनाओं के लिए सबसे ज्यादा खाद्यान्न खरीदती है) उनके लिए काफी आमदनी जुटाते हैं। ये मांगें भले ही राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण हों, लेकिन कीमतों पर बाजार की प्रतिक्रिया पर नकारात्मक असर डालती है।'बीते कुछ सप्ताहों में चीनी की कीमत अभूतपूर्व रफ्तार दिखाते हुए 50 रुपए प्रति किलोग्राम के करीब पहुंच गई है और इसकी खुदरा कीमतों का नीचे जाना केंद्र सरकार के लिए काफी जरूरी होता जा रहा है। जुलाई 2009 की उस एक्साइज अधिसूचना में संशोधन अहम है, जिसके तहत आयात होने वाली कच्ची चीनी को देश में कहीं भी प्रोसेस करने पर रोक लगाई गई थी। हालांकि, कच्ची चीनी के आयात पर फैसले से कुछ ठोस नतीजे हासिल होंगे, इसकी उम्मीद कम ही है। निजी सेक्टर ने शून्य ड्यूटी पर भी अप्रैल 2009 से अब तक 2 लाख टन कच्ची चीनी खरीदी है, जिसकी वजह अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी ऊंची कीमत बताई जा रही है। (ई टी हिन्दी)

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