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20 जनवरी 2010

इस हफ्ते से सस्ता होगा खाद्य तेल...!

नई दिल्ली : इस हफ्ते से खाद्य तेल प्रति किलो 2 रुपए सस्ता होगा। इतना ही नहीं कीमत में लगातार गिरावट बनी रहेगी। खाद्य तेल ज्यादा मांग को देखते हुए कई खिलाड़ी इस कारोबार में शामिल हो गए हैं, जिसका असर कीमतों पर पड़ा है। लगातार बढ़ती महंगाई के दौर में आखिर यह कैसे मुमकिन हुआ? इसका श्रेय सरकार को नहीं जाता है। इससे उलट, खाद्य तेल के मामले में किसी भी मंत्री या पार्टी की कोई रुचि नहीं है क्योंकि आमतौर पर इससे उन्हें कोई राजनीतिक फायदा नहीं होता है। रसोईघर के लिए खाद्य तेल काफी महत्वपूर्ण है लेकिन इसके प्रति नेताओं की बेरुखी आम लोगों के लिए वरदान साबित हो गई है। इस सेक्टर में सत्ताधारियों के लिए 'वोट और नोट' बटोरने की क्षमता नहीं है। यही वजह है कि इसमें किसी नेता की दिलचस्पी कम है। बिना किसी अनुकूल कर और सरकारी मदद के बिना भारत आज खाद्य तेल का इस्तेमाल करने वाला दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश है। छोटे किसान मूंगफली, सोयाबीन, सरसों, सूरजमुखी जैसे तिलहनों की खेती कर रहे हैं। पानी की कमी वाले वैसे इलाके जो हर साल मौसम की मार सहते हैं और जिससे किसानों की लागत, कर्ज और कटाई का खर्च बढ़ जाता है। यहां तक कि जब तेल मिल मालिक उन्हें सही कीमत देने से इनकार कर देते हैं तो उन्हें गन्ना किसानों की तरह सरकारी पुचकार नसीब नहीं होती है। भारत में इंटरनेट की शुरुआत होने के बाद इन्हीं किसानों ने अपने पुराने तरीके छोड़कर यह जानने का प्रयास किया कि नेट पर टेड कैसे किया जाता है। इन किसानों ने विदेश में बीन की कीमतों का पता लगाया और एक जैसी दिलचस्पी वाले लोगों का एक समुदाय विकसित किया। आज कोई बेवकूफ नहीं है। उन्हें भविष्य की समझ है। हालांकि, वे खुद एक्सचेंज पर ट्रेड नहीं कर सकते हैं। लेकिन वे इस सेक्टर की चाल को भांप कर मौके का सही फायदा जरूर उठा सकते हैं। सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण यह है कि संसाधनों की कमी से जूझ रहे सोयाबीन किसान विदेश के पाम ऑयल की खेती को कड़ी टक्कर दे रहे हैं। देश में सोयाबीन किसान करीब 400 लीटर तेल का उत्पादन करते हैं वहीं, विदेश में 6,000 लीटर पाम ऑयल का उत्पादन होता है। बिना किसी सीमा शुल्क के खाद्य तेल का बाजार पूरी तरह खुला हुआ है। पिछली बार आपने कब सुना था कि कोई मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर बिना किसी शिकायत के मुश्किलों से निपट रहा है। प्रोसेसिंग इंडस्ट्री भी देश भर में बिखरी हुई है, क्योंकि तिलहन के खेतों के आसपास कोल्हू का होना बेहद जरूरी है। इस सेक्टर में 15,000 से ज्यादा तेल मिल, 700 सॉल्वेंट एक्सट्रैक्शन यूनिट, 260 वनस्पति प्लांट और 1,000 से भी ज्यादा रिफाइनरी में करीब 10 लाख से ज्यादा लोग काम करते हैं। ये रिफाइनरी न सिर्फ एक दूसरे को बल्कि मलेशिया, इंडोनेशिया, ब्राजील और अर्जेंटीना की कंपनियों को भी कड़ी टक्कर दे रही हैं। विदेश की कंपनियों को वहां की सरकार से सस्ता कर्ज, नई तकनीकी और सस्ता कच्चा माल उपलब्ध कराया जाता है। भारत में इस सेक्टर को कोई सरकारी मदद नहीं दी जाती है। नई फैक्ट्री के आकार और लोकेशन पर किसी भी तरह का सरकारी नियंत्रण नहीं है। हर फैक्ट्री के लिए कोई तिलहन 'जोन' नहीं बनाया गया है जैसा की उत्तर प्रदेश के चीनी मिलो के लिए है। (ई टी हिन्दी)

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