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25 फ़रवरी 2010

बजट में खेती पर दिया जा सकता है जोर: विशेषज्ञ

विशेषज्ञों ने सूखे और बाढ़ की मार से त्रस्त कृषि क्षेत्र के लिये इस आम बजट में बारानी खेती और सिंचाई परियोजनाओं पर अधिक ध्यान देने पर बल दिया है। प्रख्यात कृषि वैज्ञानिक और राज्यसभा सदस्य एम एस स्वामीनाथन ने कहा कि भारतीय कृषि के लिये 2010 करो या मरो जैसा है। अगर हमने उचित कदम नहीं उठाये तो खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने और किसानों के आत्महत्या जैसी समस्या को रोकने में गंभीर कठिनाई होगी।
बढ़ती महंगाई के मद्देनजर कृषि क्षेत्र के लिये बजट से उम्मीद के बारे में पर उन्होंने कहा, इस समस्या से निपटने के लिये बजट में बारानी, खेती विशेष रूप से विशेष रूप से दलहन और तिलहन की पैदावार बढ़ाने पर जोर दिया जाना चाहिए। हालांकि खाद्य पदार्थों की बढ़ती कीमत को लेकर कृषि अर्थशास्त्री मानते हैं कि कृषि उपज बढ़ाने के लिए पर्याप्त एवं समुचित कदम उठाने की जरूरत है और इसके लिये विशेष तौर पर सिंचाई सुविधाओं पर बजट में ध्यान पूरा ध्यान दिया जाना चाहिए।
बेंगलूर स्थित इंस्टीट्यूट फार सोशल एंड इकोनामिक चेंज के प्रोफेसर और कृषि अर्थशास्त्री डा प्रमोद कुमार ने कहा कि बढ़ती महंगाई के मद्देनजर बजट में वित्त मंत्री को कृषि उपज बढ़ाने की दिशा में समुचित कदम उठाने चाहिए। डा कुमान ने इसके लिये सूक्ष्म और वृहद सिंचाई परियोजनाओं पर विशेष ध्यान देने की जरूरत पर बल दिया। उल्लेखनीय है कि चालू वित्तीय वर्ष में बाढ़ और सूखे के कारण कृषि उत्पादन में गिरावट आयी है।
अग्रिम आकलनों के अनुसार भारत में अनाज और तिलहन का उत्पादन में 2009-10 के दौरान क्रमश: 8 और 5 फीसदी की गिरावट होगी। इसी तरह चालू वित्त वर्ष में कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्र के उत्पादन में 0.2 फीसदी की गिरावट का अनुमान लगाया गया हैं जबकि 2008-09 में इस क्षेत्र का उत्पादन 1.6 फीसदी बढा़ था। मांग पूर्ति में अंतर के कारण खाद्य वस्तुओं पर आधारित महंगाई दर 6 फरवरी को समाप्त सप्ताह में 17.97 फीसदी रही।
प्रमोद कुमार ने कहा कि सरकार शुष्क कृषि के साथ उन क्षेत्रों में कृषि को बढ़ावा देने के उपाय कर सकती है जहां फिलहाल खेती नहीं हो पा रही है। उन्होंने कहा कि कृषि क्षेत्र में व्यापक स्तर पर सार्वजनिक निवेश बढ़ाने, विशेषकर सिंचाई पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। स्वामीनाथन ने कहा कि मैंने गणतंत्र दिवस की 60वीं वर्षगांठ मनाने के लिये इस साल 60,000 दलहन गांव और प्रयोगशाला से खेत तक कार्यक्रम आयोजित किये जाने का सुझाव दिया है।
एक अन्य सवाल के जवाब में राज्यसभा सदस्य ने कहा कि पिछले कुछ बजटों में कृषि क्षेत्र को विशेष तवज्जो नहीं दी गयी। किसानों की ऋण माफी योजना का क्रियान्वयन जरूर किया गया लेकिन यह उत्पादकता और लाभदायकता बढ़ाने में प्रत्यक्ष रूप से फायदेमंद नहीं रहा। (दैनिक हिंदुस्तान)

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