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20 अगस्त 2010

काजू की घरेलू मांग तेज, निर्यात स्थिर

बेंगलुरु August 19, 2010
दुनिया के दूसरे सबसे बड़े काजू निर्यातक देश भारत का काजू निर्यात चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में स्थिर रहा है। देश ने 25,962 टन काजू का निर्यात किया है जो पिछले साल समान तिमाही के मुकालबे महज 1.6 फीसदी ज्यादा है। इसकी मुख्य वजह घरेलू उपभोग मांग में तेजी और इस साल कम आपूर्ति है।अप्रैल-जुलाई में काजू का निर्यात मात्रा के हिसाब से करीब सपाट रहा है, जबकि मूल्य के हिसाब से 2.1 फीसदी की मामूली बढ़त दर्ज हुई है। इस तिमाही में 713 करोड़ रुपये के काजू का निर्यात किया गया है जबकि पिछले साल निर्यात 698 करोड़ रुपये का रहा था। निर्यातकों को घरेलू मांग पूरा करने के लिए निर्यात घटाना पड़ रहा है।उद्योग सूत्रों के मुताबिक घरेलू काजू उपभोग सालाना करीब 1,90,000 टन है। वहीं, 1,10,000 टन काजू का निर्यात किया जाता है। कोच्चि स्थित भारतीय काजू निर्यात संवद्र्घन परिषद्ï (सीईपीसीआई) के मुताबिक इस तिमाही निर्यात से कमाई में 4 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है जहां भाव 276 रुपये प्रति किलो है। यह घरेलू बाजार के मुकाबले 26 फीसदी कम है जहां भाव 375 रुपये प्रति किलो चल रहे हैं।मुंबई के निर्यातक पंकज संपत का कहना है, 'दो वजहों से निर्यातकों को घरेलू बाजार में माल बेचना फायदेमंद लग रहा है। पहली वजह यहां उन्हें अच्छा दाम मिल रहा है और दूसरी वजह कच्चे काजू की कमी के चलते निर्यातकों को प्रसंस्करण का काम सीमित करना पड़ रहा है।'उन्होंने कहा कि परंपरागत रूप से भारत में काजू का ज्यादातर इस्तेमाल मिठाइयां बनाने में किया जाता है, लेकिन पिछले 5 सालों में इसका इस्तेमाल कंफेशनरी उद्योग, आइसक्रीम और स्नैैक नट में मुख्य कच्चेमाल के रूप में बढ़ा है। मौजूदा समय में भारत में 50,000 टन कच्चे काजू गिरी का उत्पादन होता है, वहीं, 70,000 टन का आयात किया जाता है जिसके प्रसंस्करण के बाद काजू बीजों का निर्यात किया जाता है।प्रसंस्करण के बाद कुल 30,000 टन काजू बीज बचते हैं जिसमें से 1,10,000 टन का निर्यात किया जाता है। सीईपीसीआई के अनुमान के मुताबिक चालू वित्त वर्ष में निर्यात में 5 फीसदी की बढ़ोतरी हो सकती है।मंगलोर के निर्यातक जी गिरिधर प्रभु ने कहा, 'खरीदारों को मंदी का डर और भारतीय निर्यातकों के लिए समता के अभाव की वजह से पिछले पूरे साल निर्यात को प्रोत्साहन नहीं मिल सका। अंतरराष्ट्रीय बाजार में वियतनाम के आक्रामक रुख की वजह से भी भारतीय निर्यात कमजोर रहा।'संपत का कहना है कि देश से निर्यात बढ़ाने के लिए यहां कच्चे काजू के उत्पादन को बढ़ावा देना होगा। फिलहाल देश में काजू की बुआई के लिए कोई वैज्ञानिक और व्यवस्थित तरीका नहीं है। ज्यादातर राज्यों में यह जंगली फसल की तरह बोया जाता है।बढ़ती घरेलू और निर्यात मांग को देखते हुए अगले 5-7 सालों में देश को कम से कम 10 लाख टन सालाना काजू उत्पादन की जरूरत है। पहली तिमाही के दौरान काजू प्रसंस्करण करने वालों ने 2,31,804 टन काजू का आयात किया था। पिछले साल के मुकाबले यह 5 फीसदी कम है। मूल्य के हिसाब से यह 15.5 फीसदी ज्यादा है। इस तिमाही 208 करोड़ रुपये के काजू का आयात किया गया। चालू साल में घरेलू फसल 450,000 टन रही है जो 10 फीसदी कम है। संपत का कहना है कि इसका मतलब है कि प्रसंस्करण उद्योग को इस साल ज्यादा कच्चे काजू का आयात करना होगा। (BS Hindi)

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