कुल पेज दृश्य

24 अगस्त 2010

कोयले की ई-नीलामी पर हो फिर से विचार

नई दिल्ली August 23, 2010
आपूर्ति में बढ़ती हुई गिरावट की वजह से कोयले की ई-नीलामी के दौरान अपवाद रूप से कीमतों में उछाल महसूस की जा रही है। लिहाजा योजना आयोग ने कोयला क्षेत्र में ई-नीलामी की व्यवस्था पर पुनर्विचार करने की सलाह दी है।केंद्र सरकार ने तकरीबन 4 वर्ष पहले ई-नीलामी के जरिए कोयला आवंटन की व्यवस्था शुरू की थी। यह इंतजाम गैर प्रमुख क्षेत्रों को बाजार भाव पर कोयले की पर्याप्त आपूर्ति सुनिश्चित किए जाने के लिए किया गया था। यह पूछे जाने पर कि क्या इस योजना से कोयले की कीमत निर्धारित करने का घोषित उद्देश्य पूरा हुआ, योजना आयोग के एक अधिकारी ने कहा, 'कीमत बाद में निर्धारित होगी। फिलहाल तो कोयले का उत्पादन स्तर बढ़ाने की जरूरत है।'उन्होंने कहा कि जिस संदर्भ में कोयला आवंटन के लिए ई-नीलामी की प्रक्रिया शुरू की गई थी, वह अब पूरी तरह बदल गया है। उन्होंने विस्तार में न जाते हुए कहा, 'हमें इस (योजना) पर पुनर्विचार करना होगा।'योजना आयोग की ओर से परिकल्पित मूल योजना में एकीकृत ऊर्जा नीति (आईईपी) के तहत ई-नीलामी के माध्यम से कोयले की बिक्री धीरे-धीरे बढ़ाते हुए कुल उत्पादन का 10 फीसदी से 20 फीसदी के स्तर तक ले जाना था। लेकिन फिलहाल यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका है।ई-नीलामी के लिए कोयले की आपूर्ति करने वाली सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी कोल इंडिया लिमिटेड (सीआईएल) इलेक्ट्रॉनिक एक्सचेंज के माध्यम से अपने कुल उत्पादन के 12 फीसदी से अधिक का आवंटन कभी नहीं कर पाई। कारण यह रहा कि देश में कोयले की उपलब्धता पूरे वर्ष जरूरत से कम रही।योजना आयोग के अधिकारी ने बताया, 'हम ई-नीलामी के माध्यम से ज्यादा-से-ज्यादा कोयला आवंटन की मंशा रखते थे, ताकि बाजार मूल्य निर्धारित हो सके। लेकिन हाल के कुछ दिनों से कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर बढ़ा है। आपूर्ति में गिरावट की वजह से अब इस मामले में मुश्किलें पेश आ रही हैं।'उल्लेखनीय है कि भारत में फिलहाल सालाना स्तर पर 45 करोड़ टन कोयले का उत्पादन होता है। उत्पादन का यह स्तर मांग की तुलना में 5 करोड़ टन कम है और यह जरूरत आयात से पूरी की जाती है। मौजूदा पंचवर्षीय योजना के अंत तक देश में कोयला उत्पादन का स्तर 62.9 करोड़ टन तक जा पहुंचने की उम्मीद जताई जा रही है। बावजूद इसके मांग 8.3 करोड़ टन ज्यादा रहेगी। एक मोटे अनुमान के मुताबिक वर्ष 2014 तक कोयले की मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर 20 करोड़ टन के स्तर पर जा पहुंचेगा, जिससे आयात का दबाव बढ़ेगा।दूसरी ओर घरेलू स्तर पर कोयले का थोक उत्पादन करने वाली कंपनी कोल इंडिया का कहना है कि मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर पाटने में रेलवे रैकों एवं बंदरगाह जैसी अपर्याप्त बुनियादी ढांचागत सुविधा से बाधा पहुंच रही है। इस कंपनी ने पिछले वित्त वर्ष के दौरान 43.1 करोड़ टन कोयले का उत्पादन किया और इसका 10 प्रतिशत हिस्सा अधिसूचित मूल्य से 57 फीसदी अधिक भाव पर ई-नीलामी के माध्यम से बेचा। चालू वित्त वर्ष में 10 अप्रैल से 10 जून के दौरान कोल इंडिया ने 9.3 टन कोयला अधिसूचित मूल्य से 67 फीसदी अधिक भाव पर बेचा है।विशेषज्ञों के मुताबिक एक्सचेंज में भाव बढऩे से खरीदार पीछे हट रहे हैं। यह स्थिति पहले भी बन चुकी है। कोयले के इलेक्ट्रॉनिक कारोबार में इसकी ऊंची कीमतें महसूस किए जाने की वजह से इस प्रक्रिया में बाधा पहुंची थी। सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2006 में इस योजना को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसमें कोयला क्षेत्र में सीआईएल के एकाधिकार का नाजायज फायदा उठाया जा रहा है ताकि भाव ऊंचा रखा जा सके। इससे संवैधानिक लक्ष्यों की पूर्ति नहीं होती। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: