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25 अक्तूबर 2010

खाद्यान्न ही नहीं, खाद भी मिलावटी

नई दिल्ली October 24, 2010
नाइट्रोजन (एन), फॉस्फोरस (पी) और पोटाश की मिलावट वाले एनपीके मिश्रण में करीब एक चौथाई सामान्यतया कम गुणवत्ता वाले होते हैं। वहीं करीब 12 प्रतिशत सिंगल सुपर फॉस्फेट (एसएसपी) जो फॉस्फेटिक फर्टिलाइजर वाले सल्फर के रूप में जाना जाता है, खराब गुणवत्ता वाला है।ये आंकड़े देश की प्रमुख 71 उर्वरक प्रयोगशालाओं से सामने आए हैं, जिनका उन्होंने पिछले 5 साल के दौरान परीक्षण किया है। 2004-05 से 2008-09 के बीच किए गए इन परीक्षणों के लिए करीब 1 लाख नमूनों का परीक्षण हर साल किया गया।हाल में हुई रबी कान्फ्रेंस 2010 में कृषि मंत्रालय द्वारा जारी एक नोट में कहा गया है कि हर साल करीब 5000-6000 नमूने अलग गुणवत्ता के होते हैं, जो मानकों को पूरा नहीं करते। डाई अमोनियम फॉस्फेट (डीएपी) के मामले में खराब गुणवत्ता के नमूने 3 प्रतिशत हैं, जो प्रमुख फॉस्फेटिक उर्वरक है। वहीं यूरिया के मामले में 0.5 प्रतिशत नमूने खराब गुणवत्ता के मिले, जो नाइट्रोजन वाले उर्वरक के रूप में बड़े पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। वहीं कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट (सीएएन) और म्यूरेट आफ पोटाश (एमओपी) जैसे अन्य उर्वरकों के मामले में 1-2 प्रतिशत मामले खराब गुणवत्ता वाले आए हैं। खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक के प्रसार में महाराष्ट्र अन्य राज्यों को पीछे छोड़कर पहले स्थान पर बरकरार है। इस राज्य में एकत्र किए गए नमूनों में से 17 प्रतिशत उर्वरक नमूने गुणवत्ता मानकों पर खरे नहीं उतरते। इसके बाद महाराष्ट्र आता है, जहां 13 प्रतिशत से ज्यादा नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए हैं। खराब गुणवत्ता वाले उर्वरकों में उत्तराखंड, पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में 8-9 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश और केरल में 5-6 प्रतिशत नमूने खराब गुणवत्ता वाले पाए गए हैं। अन्य राज्यों में खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक के नमूनों का प्रतिशत 0.7 से 5 है। कृ षि मंत्रालय के नोट में कहा गया है कि इससे संकेत मिलता है कि कम गुणवत्ता वाले उर्वरक का प्रसार इससे कहीं ज्यादा हो सकता है, जो इन आंकड़ों में सामने आया है। उर्वरक की गुणवत्ता, कीमतों, कारोबार व वितरण का नियमन फर्टिलाइजर कंट्रोल ऑर्डर 1985 के तहत होता है। मंत्रालय ने अपने नोट में कहा है, 'तमाम राज्य इसके खिलाफ कदम उठाते हैं, लेकिन इसमें से कुछ मामले ही न्यायालय तक पहुंचते हैं। अपराधियों को दंडित किए जाने के मामले तो दुर्लभ हैं।'राज्यों द्वारा केंद्र सरकार को विनिर्माता के आधार पर खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक मुहैया कराने की बाध्यता है। खासकर यूरिया के मामले में अगर कोई खराब गुणवत्ता वाले उर्वरक उपलब्ध कराता है तो उपलब्ध कराई जाने वाली सब्सिडी में से कटौती का प्रावधान है। लेकिन कोई भी राज्य नियमित रूप से यह आंकड़ा नहीं देता है। मंत्रालय के नोट में कहा गया है, 'कई बार इस सिलसिले में निवेदन के बावजूद अभी भी ज्यादातर राज्यों से आंकड़े आने का इंतजार है। इस तरह के राज्यों में बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, केरल, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र, हरियाणा, पंजाब और पूर्वोत्तर के राज्य शामिल हैं। इन राज्यों ने पिछले 3 साल, 2006-07 से आंकड़े उपलब्ध नहीं कराए हैं।' (BS Hindi)

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