कुल पेज दृश्य

12 नवंबर 2010

बंपर पैदावार से काबू में रहेंगी कीमतें

मुंबई November 11, 2010
देश में इस साल अनाज की बंपर पैदावार होने का अनुमान है। इसके अलावा सरकारी गोदामों में भी पहले से ही अनाज के ढेर लगे हुए हैं। इसके चलते खाद्यान्न के भाव इस साल सीमित दायरे में रहने की संभावना है। चालू फसल सत्र के दौरान भारत में चावल उत्पादन करीब 9 फीसदी बढ़कर 9.60 से 9.70 करोड़ टन रह सकता सकता है। पिछले सत्र के दौरान चावल उत्पादन 8.90 टन रहा था। देश के कुल चावल उत्पादन में लगभग 90 फीसदी हिस्से का उत्पादन खरीफ सत्र के दौरान होता है। इस साल खरीफ सत्र में चावल उत्पादन 7.59 करोड़ टन से बढ़कर 8.04 करोड़ टन हो जाने का अनुमान है। अच्छे मॉनसून की वजह से इस साल जमकर बारिश हुई। इससे खेतों में अभी भी पर्याप्त नमी है। जिसका असर रबी की बुआई पर भी पड़ेगा। यानी अनुकूल मौसम से रबी सीजन में दलहल, तिलहन समेत सभी तरह के अनाज की उपज भी पिछले साल की तुलना में बेहतर रहने का अनुमान है। सरकारी अनुमान के मुताबिक चालू फसल वर्ष में गेहूं उत्पादन में भारी बढ़ोतरी होगी। वर्ष 2010-11 के रबी सीजन में गेहूं उत्पादन बढ़कर 8.2 करोड़ टन हो जाने की संभावना है जबकि पिछले साल इसी सत्र में गेहूं का उत्पादन 8.07 करोड़ टन रहा था। नैशनल कोलैटरल मैनेजमेंट सर्विस लिमिटेड (एनसीएमएसएल) के प्रबंध निदेशक संजय कौल कहते हैं, 'देश में खाद्यान्न के ज्यादा उत्पादन से इस साल इसके दामों पर दबाव रह सकता है। कीमतों में गिरावट की संभावना से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। लेकिन यह देखना होगा कि खुले बाजार में अनाज की आपूर्ति कितनी हो पाती है।'देश के कुल 23.40 करोड़ टन अनाज उत्पादन का करीब आधा हिस्सा तो यहां के किसान खुद के उपभोग के लिए अपने पास ही रख लेते हैं। इसके अलावा सरकारी खरीद एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) उपज का एक बड़ा हिस्सा सालाना लगभग 6.50 करोड़ टन अनाज खरीदकर सरकारी गोदामों में रख देती है। इसके बाद जो शेष अनाज बचता है, यानी लगभग 3.50 से 4.0 करोड़ टन अनाज ही खुले बाजार में खरीद-बिक्री के लिए उपलब्ध हो पाता है। ऐसे में यह कह पाना मुश्किल है कि देश में बंपर अनाज उत्पादन का कीमतों पर कितना असर पड़ेगा। कमोडिटी इयरबुक 2011 के लॉन्चिंग के मौके पर कौल ने कहा, कीमतों में तेज उतारचढ़ाव होने पर अक्सर कारोबारियों पर आरोप लगते हैं। पर एफसीआई ही वह एजेंसी है जिसे जिंस बाजार में दखल की इजाजत देनी चाहिए। ठीक उसी तरह जैसे भारतीय जीवन बीमा निगम शेयर बाजार में निभाता है। खाद्य सुरक्षा विधेयक के कानून बनने के बाद एफसीआई पर निर्भरता और बढ़ जाएगी।खाद्य सुरक्षा विधेयक (एफएसबी) लागू होने की स्थिति में केंद्रीय खरीद एजेंसी एफसीआई की भूमिका और बढ़ जाएगी। क्योंकि तब उन्हें और ज्यादा अनाज खरीद की जरूरत होगी। इस आधार पर कहें कि देश के खुले अनाज बाजार में खाद्यान्नों की आपूर्ति में एफसीआई की भूमिका और अहम हो जाएगी। पिछले साल एफसीआई ने चावल और गेहूं सेमत कुल 5.50 करोड़ टन अनाज की खरीद की थी। लेकिन एफएसबी लागू होने से हर साल करीब 6.50 करोड़ टन खाद्यान्न की जरूरत होगी। यानी एफसीआई को और ज्यादा मात्रा में अनाज खरीदना होगा। इससे खुले बाजार में अनाज की आपूर्ति पर असर पडऩा तय है। इस बीच केंद्रीय पूल में 30 सितंबर 2010 तक कुल 4.62 करोड़ टन अनाज का सुरक्षित भंडारण किया जा चुका है। जबकि बफर नार्म केवल 1.62 करोड़ टन है। कॉल ने आगे कहा कि एफएसबी लागू होने से सरकार प्राथमिकता श्रेणी के लोगों को रियायती दर पर 35 किलोग्राम अनाज मुहैया कराएगी। इसके तहत गेहूं 2 रुपये और चावल 3 रुपये प्रति किलाग्राम की दर से उपलब्ध करायी जाएगी। सरकार ने यह भी कहा है कि इसके अतिरिक्त खाद्यान्न 10 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से उपलब्ध होगा। यानी सरकारी खरीद एजेंसी द्वारा बाजार से भारी मात्रा में अनाज खरीदा जाएगा और इसे रियायती दरों पर गरीब लोगों के बीच वितरित किया जाएगा। ऐसे में खुले बाजार के लिए जगह काफी सीमित हो जाती है और यहां कीमतों में ज्यादा उतार-चढ़ाव की गुंजाइश भी कम बचती है। हालांकि कौल ने जोर देकर कहा कि खाद्यान्न बाजार में सरकारी एजेंसी को अपनी भूमिका कुछ सीमित करनी चाहिए और निजी क्षेत्र की भूमिका और बढऩी चाहिए। (BS Hindi)

कोई टिप्पणी नहीं: