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10 जनवरी 2011

इस वर्ष भी बनी रहेगी कमोडिटी के दाम में तेजी

नई दिल्ली : नए वर्ष का आरंभ हो चुका है, लेकिन कमोडिटी बाजार में हालात ज्यादा नहीं बदले हैं। कृषि कमोडिटी का मार्केटिंग सीजन अक्टूबर से सितंबर या अप्रैल से मार्च तक चलता है। ऐसे में आपूर्ति की समस्याएं और कीमतों में उतार-चढ़ाव गर्मियों तक जारी रहेगा। इस समय धान, तिलहन, दालों, गन्ने और सब्जियों की दोबारा बुआई होगी। विश्व की बात की जाए तो मौसम 2011 का सबसे बड़ा जुआ होगा। ला नीना की वजह से ब्राजील, मलेशिया, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, अर्जेंटीना और अमेरिका में सूखे ने मक्का, गेहूं, चीनी, पाम ऑयल और सोयाबीन के वैश्विक दाम कई वर्षों के उच्च स्तरों पर पहुंचा दिए हैं। 2009 के सूखे और 2010 में सामान्य से अधिक मानसून और उसके बाद की वर्षा से भारत में फलों, सब्जियों, अनाज, दालों, तिलहन, चीनी, कॉफी, चाय और मसालों की आपूर्ति घट गई है। भारत पाम ऑयल, ड्राई फ्रूट और दालों का आयात करता है और ये सभी महंगे हैं। मेटल, ईंधन, कोयला, रबड़ और कपास जैसी कमोडिटी भी और महंगी होगी। पिछले सप्ताह धातु और कोयला खदानों के साथ ही तेल के कुओं पर काम में काफी तेजी आई है लेकिन इनमें उत्पादन शुरू होने में अभी लंबा समय लगेगा। इसका मतलब यह है कि इस वर्ष भी हमें 2010 की तरह कमोडिटी की सप्लाई की दिक्कतों का सामना करना पड़ेगा। कंपनियां कमोडिटी की ज्यादातर खरीदारी हाजिर बाजार से करेंगी। इससे उनके प्रॉफिट मार्जिन पर दबाव बनेगा। 2011 में भी मुद्रास्फीति सुर्खियों में बनी रहेगी। महंगाई दर बढ़ने से केवल भारत ही नहीं बल्कि अमेरिका, ब्राजील, चीन, रूस जैसे बड़े देश भी चिंता में हैं। इससे लड़ने के लिए मौद्रिक सख्ती करनी पड़ेगी। भारत में गेहूं, चावल, कपास या खनिज उत्पादन को देश में ही रखना होगा और घरेलू कीमतें घटाने के लिए निर्यात पर लगाम लगानी होगी। सरकारें घटते भंडारों को मजबूत करने के लिए खुद के खाते में कच्चे माल का आयात करेंगी। ऐसा करने वालों में चीन प्रमुख होगा। एक बात स्पष्ट है कि महंगे बैंक लोन और कामकाजी पूंजी की कमी की वजह से ज्यादा निजी कंपनियां ऊंची कीमतों पर आयात नहीं कर पाएंगी और इन्हें स्टॉक जमा करने में भी परेशानी होगी। संरक्षणवाद का जोर रहेगा क्योंकि जब अर्थव्यवस्थाएं कमजोर होती हैं तो उपभोक्ता मांग घटती है और बेरोजगारी अधिक होती है। कोई भी देश ऐसी आयातित वस्तुएं नहीं चाहेगा, जिनसे नौकरियों में कटौती हो या फिर मार्जिन पर दबाव बढ़े। इस वर्ष वैश्विक अर्थव्यवस्था उतनी तेजी से नहीं बढ़ेगी जितनी हमने उम्मीद की थी। पिछले सप्ताह जारी संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2011 में वैश्विक आर्थिक वृद्धि दर 3 फीसदी और 2012 में 3.5 फीसदी रह सकती है। इन दरों से उन तीन करोड़ नौकरियों की रिकवरी नहीं हो जाएगी जो आर्थिक मंदी के दौरान खत्म हुई थीं। अमेरिका में आर्थिक वृद्धि 2010 में 2.6 फीसदी थी जो इस वर्ष घटकर 2.2 फीसदी पर आने का अनुमान है। ईयू और जापान के लिए भी हालात बहुत अच्छे नहीं दिख रहे। क्या कुछ अच्छे समाचार भी मिलेंगे? कुछ सेक्टर काफी आकर्षक रहेंगे। इनमें पर्यावरण और सतत ऊर्जा प्रमुख हैं क्योंकि सरकारें प्रदूषण को लेकर मानक कड़े करने के साथ ही निवेश पर सब्सिडी भी देंगी। सोना 2010 में 30 फीसदी चढ़ा है और निराशाजनक आर्थिक समाचारों का प्रवाह बढ़ने से इसमें और तेजी आ सकती है। 2011 उन कंपनियों के लिए आसान होगा जो अनिश्चितता पर कारोबार करती हैं और मुश्किलों में आगे बढ़ने का हुनर जानती हैं। इसके साथ ही, वे ब्रांड सफल रहेंगे जो ग्राहक की बदलती जरूरतों और इच्छाओं के अनुसार खुद को ढाल सकते हैं। 2011 एक आसान वर्ष नहीं होगा। (ET Hindi)

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