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02 मार्च 2011

पैदावार घटने के अनुमान के बाद कपास में उफान

मुंबई March 01, 2011
कपास सलाहकार बोर्ड (सीएबी) द्वारा कपास की पैदावार के अनुमान कम करने के बाद पिछले सप्ताह इसकी कीमतों में देखी गई गिरावट ज्यादा समय तक बरकरार नहीं रह पाई। सीएबी ने चालू कपास वर्ष के लिए कुल उत्पादन के अनुमान को 5 फीसदी कम कर 3.12 करोड़ बेल (1 बेल= 170 किलो) कर दिया है। पिछले दो दिनों में कपास बेंचमार्क शंकर 6 किस्म की कीमतें शनिवार के 55,000 रुपये प्रति कैंडी से 7 फीसदी की तेजी के साथ 59,000 प्रति कैंडी पहुंच गई हैं। कम पैदावार के अनुमान के बाद पिछले दो दिनों में ही नैशनल कमोडिटी एवं डेरिवेटिव एक्सचेंज में कपास वायदा की कीमतों में 5 फीसदी की तेजी आई है। हालांकि कपास की कीमतें 63,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर तक पहुंच चुकी थीं लेकिन सरकार द्वारा इसके निर्यात की सीमा बढ़ाने से इनकार करने के बाद कीमतों में कमी आई। पहले कपास का उत्पादन 55 लाख बेल्स रहने की उम्मीद थी। कपास वर्ष 2010-11 सत्र के आने की अवधि लगभग समाप्त हो गई है लेकिन मिलों की तरफ से मांग अब भी अधिक है जिससे कीमतों में बढ़ोतरी हो रही है। सीबीए ने इस साल मिल खपत 2.32 करोड़ बेल्स रहने का अनुमान व्यक्त किया है, जबकि पिछले साल यह 2.07 करोड़ बेल्स था।भारतीय वस्त्र उद्योग परिसंघ के महासचिव डी के नायर का इस बारे में कहना था, 'छोटी मिलों ने अगले महीनों जबकि बड़ी मिलों ने अगले 3-4 महीनों के लिए कपास का भंडारण कर लिया है। लेकिन कीमतें अधिक रहने से मिलों के लिए उत्पादन जारी रखना मुश्किल होगा।Ó नायर ने कहा कि अधिक कीमतों की वजह से छोटी मिलें बंद भी हो सकती हैं जिससे उत्पादन में कमी आ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि सरकार ने आवश्यकता से अधिक के निर्यात की अनुमति दी है। अब तक पूरे भारत में 2.25 करोड़ बेल्स की आवक हो चुकी है जबकि कुल अनुमान 3.12 करोड़ बेल है। कारोबारियों का कहना है कि ऊंची कीमतों के बावजूद मिलों की कपास की मांग कम होने की संभावनाएं काफी कम हैं, क्योंकि कच्चे तेल की कीमतों में उछाल के साथ ही कपास के लिए वैकल्पिक कच्चे माल यानी संश्लेषित धागे भी महंगे हो रहे है। कुछ महीने पहले ही जब कच्चे तेल की कीमतें कम थीं तो कपास की जगह मानव निर्मित रेशे की मांग बढ़ी थी। हालांकि पिछले तीन महीनों के दौरान इसकी कीमतों में भी तेजी से बढ़ोतरी हुई है। इस बाबत अहमदाबाद के एक कपास कारोबारी अरुण दलाल का कहना था, 'कपास की ऊंची कीमतों से उपभोक्ताओं और मिलों को आने वाले महीनों में राहत नहीं मिलने वाली है जबकि मिलों को परिचालन जानी रखने के लिए सितंबर तक कपास की जरूरत है। कपास की नई फसल अक्टूबर में ही आएगी। (BS Hindi)

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