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03 मई 2011

बैगिंग से पकाए जा रहे हैं आम

लखनऊ May 02, 2011
कमजोर फसल के बावजूद बेहतर मुनाफे की आस में इस साल मलिहाबाद के किसान आमों को पकाने के लिए बैगिंग तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश के फल-पट्टी क्षेत्र मलिहाबाद और काकोरी में बागवान इस हफ्ते से पेड़ों पर बढ़े आमों को पकाने के लिए बैगिंग तकनीक अपना रहे हैं। इस तकनीक के इस्तेमाल से न केवल आम की गुणवत्ता में सुधार आता है बल्कि इसकी शेल्फ लाइफ भी बढ़ जाती है। बैगिंग तकनीक का इस्तेमाल आम में गुठली पडऩे के बाद किया जाता है। इसके तहत आम को अखबारी कागज, विशेष पैकेट या कागजी बैग में लपेट कर पोसा जाता है। पकने के बाद इन आमों के रंग में भी निखार आ जाता है।मलिहाबाद क्षेत्र के बागवान शिवसरन सिंह बताते हैं कि बैगिंग तकनीक के इस्तेमाल से पके आम को 10 से 15 दिन तक बचाया जा सकता है। खासतौर पर विदेश में भेजने के लिए इस तरह से पके आम सबसे मुफीद साबित होंगे। आम का आकार बढ़ाने में भी बैगिंग तकनीक सहायक साबित होती है। सिंह के मुताबिक मलिहाबाद क्षेत्र में कुछ बागवानों ने बीते साल इस तकनीक का इस्तेमाल शुरू किया था और इन आमों को बाजार में हाथों-हाथ लिया गया। बड़े रिटेल स्टोरों पर तो बैगिंग तकनीक से पके आमों की अच्छी मांग रही। बैगिंग की सफलता से उत्साहित हो इस बार मलिहाबाद-काकोरी के आधे से ज्यादा बागवान इस तकनीक का इस्तेमाल करने जा रहे हैं। दशहरी के अलावा इस बार मलिहाबाद में आम्रपाली आम की भी आमद हो रही हैं। मलिहाबाद से कई बागवानों ने 4-5 साल पहले आम्रपाली आम के पौधे लगाए थे। इस बार इन पेड़ों पर भी आम आए हैं और बाजार में दशहरी के अलावा इनकी भी आमद नजर आएगी। कम रेशे ज्यादा खुशबू और भीतर से ठोस आम्रपाली की बाजार में अच्छी मांग रहने की उम्मीद जताई जा रही है। गौरतलब है बौर में ही फंगस लग जाने के चलते इस साल प्रदेश के फल पट्टी क्षेत्र मलिहाबाद ही नहीं बल्कि संडीला, सहारनपुर और मुजफ्फरनगर में भी आम की फसल खराब हुई है। केंद्रीय बागवानी एवं उप्पोषण संस्थान (सीआईएसएच) के अधिकारियों के मुताबिक फंगस लग जाने के चलते इस साल आम के उत्पादन में करीब 40 फीसदी की कमी आएगी। हालांकि फंगस का सबसे ज्यादा असर दशहरी पर पड़ा है पर राज्य के फैजाबाद, सुल्तानपुर और आजमगढ़ में होने वाला चौसा और सफेदा आम भी इससे बच नहीं सका है। (BS Hindi)

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