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30 जुलाई 2011

हाईकोर्ट ने लगाई गैर बासमती के निर्यात पर रोक

सरकारी नीति - ईजीओएम के फैसले के बाद दस लाख टन निर्यात की तैयारी थीनिर्यातकों का सुझाव:- सरकार को एमईपी 400 डॉलर से बढ़ाकर 550 डॉलर प्रति टन तय करना चाहिए। इससे प्रीमियम किस्मों का गैर बासमती चावल निर्यात होगा। निर्यात के संबंध में गलत शर्तों को हटाया जाए।वाणिज्य मंत्रालय द्वारा हाल में 10 लाख गैर-बासमती चावल निर्यात करने के फैसले और इसकी विदेश में सप्लाई की समूची प्रक्रिया को दिल्ली हाईकोर्ट ने रोक दिया है। इस आदेश के बाद गैर बासमती चावल निर्यात का काम रुक गया है।
उधर निर्यातकों ने सरकार ने एमईपी बढ़ाने और निर्यात की गलत शर्तों को हटाने की मांग की है। विदेशी व्यापार का महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने कहा कि 27 जुलाई के ट्रेड नोटिस के अनुसार गैर बासमती चावल के निर्यात के लिए आवंटन और इसकी विदेश को सप्लाई की पूरी प्रक्रिया को हाईकोर्ट के आदेश से रोक दिया गया है।
अनाज की महंगाई नियंत्रण में होने और घरेलू आपूर्ति ठीक रहने की वजह से सरकार ने गैर-बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी थी। अप्रैल 2008 से ही चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया था।
चालू वित्त वर्ष में स्थितियों में सुधार होने के बाद उच्च अधिकार प्राप्त मंत्री समूह (ईजीओएम) ने निर्यात कोटा खोलते हुए 10 लाख टन की अनुमति दी। डीजएफटी ने सरकार के चावल निर्यात के निर्णय पर 19 जुलाई को अधिसूचना जारी किया और 82 निर्यातकों को चावल निर्यात के लिए 27 जुलाई को आवंटन किया था।
लेकिन दिल्ली हाई कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया कि अगली सुनवाई की तारीख तक कोई खेप नहीं भेजी जाए। आवंटन पर अदालती रोक लगने से डीजीएफटी की निर्यात संबंधी समूची प्रक्रिया रुक गई है। डीजीएफटी ने चावल निर्यात के लिए आवंटन कर दिया था। डीजीएफटी ने चावल निर्यात की प्रक्रिया पर लगी रोक के बारे में कानून मंत्रालय से सलाह मांगी है।
दिल्ली हाईकोर्ट के आदेश के बाद चावल निर्यातकों ने सरकार से चावल निर्यात की नीति में विसंगतियों को दूर करने की मांग की है। निर्यातकों ने न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) कम रखने की विसंगति को भी दूर करने का अनुरोध किया है। अखिल भारत चावल निर्यातक संघ (एआईआरईए) के अध्यक्ष विजय सेतिया ने कहा कि यह पहल स्वागत योग्य है।
उम्मीद है कि डीजीएफटी निर्यात नीति की समीक्षा करेगा और इसकी खामियों को दूर करेगा। उन्होंने कहा कि सरकार को एमईपी 550 डॉलर प्रति टन तय करना चाहिए। इससे गैर बासमती चावल की सिर्फ उन किस्मों का निर्यात सुनिश्चित होगा, जिनका विदेश में अच्छा मूल्य मिलता है। उन्होंने निर्यात के संबंध में गलत शर्तों को हटाने की भी मांग की है।
उधर श्री लाल महल कंपनी के प्रबंध निदेशक प्रेम गर्ग ने कहा कि याचिका दायर करने वाली एक निजी कंपनी मुकदमा वापस ले लेगी, अगर इस मसले पर वाणिज्य मंत्रालय अपनी निर्यात नीति में बदलाव करने की पहल करे और इस बारे में नई अधिसूचना जारी करे। (Business Bhaskar)

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