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31 अगस्त 2011

एनएसईएल के ई-गोल्ड में इस साल के पहले चार महीनों म...

फाइनेंशियल टेक्नोलॉजीस (एफटीआईएल) द्वारा प्रोन्नत नेशनल स्पॉट एक्सचेंज (एनएसईएल) में वर्तमान वित्तीय वर्ष के पहले चार महीनों में ई-गोल्ड में उल्लेखनीय कारोबार रिकॉर्ड हुआ। एनएसईएल देश का नंबर-1 राष्ट्रव्यापी इलेक्ट्रॉनिक कमोडिटी स्पॉट एक्सचेंज है। वित्तीय साल 2011 के प्रथम चार महीनों में ई-गोल्ड का औसत मासिक कारोबार बढ़कर 3082.60 करोड़ रुपए हो गया जो गत साल समान अवधि के 436.89 करोड़ रुपए से 605 प्रतिशत अधिक है। वैसे साल 2011 के पहले 8 महीनों में एक्सचेंज पर ई-गोल्ड का कारोबार गत जनवरी महीने के 2377 करोड़ रुपए से 60 प्रतिशत उछलकर अबतक 3823.67 करोड़ रुपए हो चुका है। एक्सचेंज पर 16 अगस्त के दिन ई-गोल्ड में अब तक का सर्वाधिक दैनिक कारोबार 359.67 करोड़ रुपए किया गया और इसमें 1,29,967 ग्राम की रिकॉर्ड डिलीवरी दर्ज की गई। एनएसईएल ने गत साल मार्च 2010 में ई-सिरीज के अंतर्गत खुदरा निवेशकों की भारी मांग पर ई-गोल्ड लांच किया। इस सिरीज में बाद में अप्रैल में ई-सिल्वर, नवंबर में ई-कॉपर और जनवरी में ई-जिंक लांच किया गया।ई-गोल्ड अबतक का सफल उत्पाद रहा है। इस उत्पाद भारतीय खुदरा निवेशकों के निवेश की मांग को पूरा किया है। उन्हें सोने और चांदी जैसे बहुमूल्य धातुओं में छोटी बचत करने का मौका उपलब्ध कराया है। सोने चांदी के वर्तमान तेजी के दौरान ई-गोल्ड निवेशकों का पसंदीदा उत्पाद बन गया है। निवेश में सुरक्षा और उच्च प्रतिलाभ के मद्देनजर खुदरा निवेशक इस उत्पाद को भारी तरजीह दे रहे हैं। लांच के समय से अबतक ई-गोल्ड ने निवेशकों को सोने के दूसरे साधनों से अधिक 57.58 प्रतिशत का प्रतिलाभ दिलाया है।साल 2010 के दौरान जब शेयरों में निफ्टी एक मापक था, ने केवल 11 प्रतिशत का लाभ दिया और कुछ मशहूर गोल्ड ईटीफ ने निवेशकों को केवल 23 प्रतिशत का रिटर्न दिया जबकि ई-गोल्ड ने इनकी तुलना में निवेशकों को सर्वाधिक 26 प्रतिशत का रिटर्न दिलाया।एनएसईएल के प्रबंध निदेशक एवं सीईओ अंजनि सिन्हा ने कहा कि एनएसईएल का ई-गोल्ड आज निवेशकों के लिए निवेश का बेहतर विकल्प सिद्ध हो रहा है, खासकर छोटे निवेशकों और एचएनआई के लिए। ई-गोल्ड अपने निवेशकों को पारदर्शक भाव, व्यवस्थित ट्रेडिंग और जीरो होल्डिंग कॉस्ट की सुïिवधा देता है। आज ई-गोल्ड में निवेशकों में काफी पसंद किया जा रहा है और निवेशक बिना किसी चिंता के इसमें पैसे डाल रहे हैं। इसकी विशुद्धता और फिजिकल सेक्युरिटीज पर उन्हें पूरा भरोसा हो गया है। ई-गोल्ड में निवेश आज अत्यंत आसान और सुविधाजनक है। यह कारोबारियों को सराफा बाजार में बिना किसी फिजिकल गोल्ड के प्रवेश का मौका प्रदान करता है।फिलहाल, ई-गोल्ड का एनएसईएल के साल 2011 के कुल टर्नओवर में 17 प्रतिशत का योगदान है। इस कारोबार के साथ ई-सिरीज के उत्पादों में कारोबार एनएसईएल पर मार्च 2010 के 2301.24 करोड़ रुपए से उछलकर अगस्त 2011 में १२१९३.५६ करोड़ रुपए तक पहुंच चुका है।

दूसरे विकल्पों के मुकाबले ई-गोल्ड का प्रदर्शन बेहतर


मुंबई February 16, 2011
लेनदेन, ब्रोकरेज व डिलिवरी की कम लागत के चलते साल 2010 में सोने में निवेश के अन्य विकल्पों के मुकाबले नैशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) में ई-गोल्ड का प्रदर्शन शानदार रहा। हाजिर बाजार में सोने ने थोड़ा बेहतर रिटर्न दिया, लेकिन सोना रखने से जुड़े खतरों को देखते हुए कई निवेशकों ने ई-गोल्ड में निवेश को प्राथमिकता दी।पिछले साल मार्च महीने में पेश ई-गोल्ड ने अब तक 23.64 फीसदी का रिटर्न दिया है। एमसीएक्स गोल्ड फ्यूचर्स समेत सोने में निवेश के अन्य विकल्पों में रिटर्न इसके मुकाबले कम रहा है। रिलायंस गोल्ड ईटीएफ में 17.82 फीसदी का रिटर्न मिला है। ई-गोल्ड वैसे छोटे निवेशकों के लिए बाजार में पेश किया गया था, जो बड़ी मात्रा में सोना नहीं खरीद सकते। इसमें निवेश में काफी बढ़ोतरी हुई है और एक्सचेंज में रोजाना औसतन टर्नओवर 50 से 100 करोड़ रुपये का रहा है। 19 जनवरी को इसने हालांकि 129.55 करोड़ रुपये का सर्वाधिक टर्नओवर हासिल करने में कामयाबी हासिल की थी।एनएसईएल के प्रबंध निदेशक व सीईओ अंजनी सिन्हा कहते हैं - ई-गोल्ड की खरीद-बिक्री में आसानी, सुरक्षा, शून्य होल्डिंग लागत, डीमैट स्टेटमेंट, हाजिर सोने में आसानी से परिवर्तन आदि कुछ ऐसी चीजें हैं जो निवेशकों को आकर्षित करती हैं। एनएसईएल ने ऐसी ही सुविधा ई-सीरीज के दूसरे उत्पादों मसलन चांदी, तांबा व जस्ते में भी उपलब्ध कराया है। साल 2011 के दौरान यह और उत्पाद पेश करने की योजना बना रहा है।विश्लेषक छोटे निवेशकों को सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान के सिद्धांत अपनाने की सलाह देते हैं और सोने या चांदी को धीरे-धीरे जमा करने को कहते हैं। उन्हें इसकी बिक्री कीमत बढऩे पर ही करने की सलाह दी जाती है। पिछले कुछ सालों में सोने ने निवेशकों को करीब 40 फीसदी का रिटर्न दिया है और अगर लंबी अवधि तक इसमें निवेश जारी रखा जाए तो भविष्य में भी ऐसा ही रिटर्न मिलने की उम्मीद है। निवेशक हमेशा ही जिंसों में फायदा कमाते हैं, ऐसे में खुदरा निवेशकों को निवेश करना चाहिए न कि बाजार के कयासोंं पर ध्यान देना चाहिए। ई-सीरीज के उत्पादों का मकसद रोजाना, साप्ताहिक या मासिक आधार पर छोटी-छोटी रकम का निवेश करने को प्रोत्साहन देने का है, ताकि निवेशक लंबी अवधि में सबसे अच्छा रिटर्न हासिल कर सकें।हाजिर बाजार के प्रतिभागियों, सोने-चांदी के कारोबारी, आभूषण के कारोबारी आदि के लिए एनएसईएल ऑप्शन उपलब्ध कराता है, जहां एक किलोग्राम या 100 ग्राम के आयातित सिल्लियों की डिलिवरी की पेशकश की जाती है। एनएसईएल ने ऐसे अनुबंध विभिन्न स्थानों पर पेश किया है। विश्लेषकों का कहना है कि छोटे व खुदरा निवेशकों को छोटी अवधि में बेचना नहीं चाहिए बल्कि बने रहना चाहिए। उन्हें हमेशा लंबी अवधि के बारे में सोचना चाहिए। ऐसा करने वाले निवेशक अपनी रकम नहीं गंवाते। ई-गोल्ड व ई-सिल्वर को डीमैट से आभूषण में बदलने के लिए एनएसईएल देश भर के करीब 100 से ज्यादा आभूषण निर्माताओं के साथ बातचीत कर रहा है। इस साल मार्च तक इसके शुरू होने की संभावना है।

सोने में निवेश का नया तरीका : ई-गोल्ड

नेशनल स्पॉट एक्सचेंज लिमिटेड (एनएसईएल) ने हाल ही एक उत्पाद लांच किया है - ई-गोल्ड। यह आज के नए जमाने में निवेश का नया जरिया बन गया है जो गोल्ड के निवेशकों में बड़ी तेजी से लोकप्रिय हो रहा है। ई-गोल्ड में सोने की दोनों खास विशेषताओं - भौतिक व इलेक्ट्रॉनिक का मिश्रण होता है। यह कैसे काम करता है?चूंकि ई-गोल्ड सिर्फ इलेक्ट्रॉनिक रूप में खरीदा जा सकता है लिहाजा इसमें निवेश करने के लिए आपके पास डीमैट खाता होना जरूरी है। ध्यान रहे इसमें आपका रेगुलर शेयर डीमैट खाता किसी काम का नहीं होगा। आपको एनएसईएल की सूची में शामिल डिपॉजिटरी पार्टीसिपैंन्ट्स (डीपी) में से किसी एक के पास डीमैट खाता खुलवाना होगा। डीपी की सूची एनएसईएल की वेबसाइट से ली जा सकती है। डीपी एकाउंट के बाद आपको एनएसईएल के किसी सदस्य के पास क्लाइंट एकाउंट भी खुलवाना होगा। आपकी सुविधा के लिए एनएसईएल के पास सूचीबद्ध 300 से भी ज्यादा कारोबारी सदस्य हैं जो देश भर में फैले हुए हैं। ये कारोबारी सदस्य आपको देश के तकरीबन सभी छोटे-बड़े शहरों में मिल जाएंगे। यानी अगर आप रायपुर, इंदौर, जयपुर, जोधपुर या भोपाल में रहते हैं तो भी आप ई-गोल्ड में निवेश करने के लिए बड़ी आसानी से एनएसईएल के कारोबारी सदस्यों की सेवाएं प्राप्त कर सकते हैं। इन कारोबारी सदस्यों की सूची भी एनएसईएल की वेबसाइट से ली जा सकती है।ई-गोल्ड में ट्रेडिंग सोमवार से शुक्रवार के बीच सुबह 10 बजे से रात 11.30 बजे के बीच की जा सकती है। जिस ब्रोकर सदस्य के पास आपने अपना क्लाइंट एकाउंट खोला है आप उसे फोन करके बता सकते हैं कि आप क्या और कितना खरीदना चाहते हैं। इसके साथ ही ब्रोकर सदस्य द्वारा मुहैया कराए जाने वाले उपरोक्त कारोबारी समय के दौरान आप ऑनलाइन भी ई-गोल्ड की खरीदारी कर सकते हैं।कितना आता है खर्चजिस तरह शेयरों की खरीद या बिक्री में आपको ब्रोकरेज देना होता है ठीक उसी प्रकार प्रति यूनिट ई-गोल्ड की खरीदारी या बिक्री में ब्रोकर ब्रोकरेज चार्ज कर सकते हैं। अमूमन यह चार्ज 0.25 फीसदी से 0.50 फीसदी के बीच होता है। इसके अलावा ब्रोकर प्रति एक लाख रुपये के लिए 20 रुपये की दर से ट्रांजैक्शन चार्ज भी वसूलते हैं। ट्रांजैक्शन चार्ज एक्सचेंज का प्रभार होता है। डीपी को इलेक्ट्रॉनिक रूप में यूनिटों की बिक्री के प्रत्येक लेनदेन के लिए भी आपको प्रभार देना होता है, हालांकि यह नाममात्र का ही होता है।डीमैट एकाउंट को मेनटेन करने के लिए भी आपसे तकरीबन 300 रुपये का सालाना लिए जाएंगे। इसके पहले एक्सचेंज सेफ डिपॉजिट वॉल्ट में सोने को सुरक्षित रखने का खर्च वसूलते थे, पर अब यह नहीं होता। आपको दिन के दौरान ई-गोल्ड की यूनिटों में कारोबार करने की अनुमति होती है पर कारोबार का समय खत्म होने तक सभी यूनिटों की स्थिति डिलीवरी या पेमेंट मे होनी ही चाहिए। डिलीवरी व पेमेंट मैकेनिज्म शेयर बाजार सरीखा ही होता है। शार्ट डिलीवरी के मामले में यहां भी शेयर बाजार जैसी ऑक्शन व्यवस्था है।सोने में कन्वर्जन सभी ई-गोल्ड यूनिटों के पीछे समान मात्रा का सोना रहता है। आप एक्सचेंज से यह निवेदन कर सकते हैं कि आपको आपके डीमैट खाते में पड़ी ई-गोल्ड यूनिटों की समान मात्रा का सोना दे दिया जाए। इसके लिए आपको निवेदन के साथ इलेक्ट्रॅनिक यूनिटें सरेंडर करनी होंगी। आप मुंबई, दिल्ली या अहमदाबाद में स्थित एनएसईएल के किसी भी डिलीवरी केंद्र से सोने की डिलीवरी ले सकते हैं। यूनिटें 8, 10, 100 ग्राम या एक किलोग्राम के सिक्कों/बार्स या दोनों के कॉम्बीनेशन में कन्वर्ज कराई जा सकती हैं। एक्सचेंज 8 व 10 ग्राम के सिक्कों में प्रत्येक कन्वर्जन के लिए 200 रुपये वसूलता है। 100 ग्राम के सिक्के के लिए प्रभार 100 रुपये है, लेकिन अगर आप एक किग्रा का बार लेते हैं तो इसके लिए एक्सचेंज की कोई फीस नहीं है।

जेवरात में निवेश का खरा फॉर्मूला

सोने की कीमतों में रिकॉर्ड तेजी के बावजूद बीते हफ्ते अक्षय तृतीया के शुभ मौके पर उपभोक्ताओं और निवेशकों ने जमकर खरीदारी की। इस मौके पर कई ज्वैलर्स ने ग्राहकों को लुभाने के लिए तरह-तरह के डिस्काउंट दिए। वैसे बिना किसी डिस्काउंट या उत्सव के भी भारतीय ग्राहक आमतौर पर सोने के प्रति काफी उदार होते हैं। लेकिन यह सोना जितना खरा होता है, सोने की खरीद उतनी सीधी नहीं है। निवेशकों या ग्राहकों के लिए इस पेचीदे फैसले से पहले कुछ जरूरी बातों की जानकारी आवश्यक है ताकि आप बढ़िया समान के बदले सही भुगतान कर सकें। सोने की हॉलमार्किंग संगठित बाजार में गोल्ड ज्वैलर्स सोने की गुणवत्ता को परखने के लिए हॉलमार्किंग की शर्तों का पालन करते हैं। भारत में ज्वैलर्स को ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंर्डड्स से बीआईएस हॉलमार्क सर्टिफिकेशन मिलती है। देशभर के बड़े और छोटे शहरों में बीआईएस हॉलमार्किंग सेंटर हैं। हॉलमार्क में बीआईएस और ज्वैलर्स के इनिशियल्स के साथ सोने के कैरेट की जानकारी और हॉलमार्किंग की तारीख रहती है। इतना ही नहीं, आभूषण के पिछले भाग में, अगूंठी के बीच में या चूड़ी के भीतरी हिस्से में सोने से जुड़ी जानकारी रहती है। भारत में अब भी हॉलमार्किंग की प्रक्रिया अनिवार्य नहीं है, इसलिए सोने के आभूषण बगैर कोई क्वालिटी मार्क के बेचे जाते हैं। रीटेल ज्वैलरी चेन रीवा के मैनेजिंग डायरेक्टर संजीव अग्रवाल के मुताबिक, 'इस मामले में ग्राहकों को दुकानदारों की बात मानने के बजाय हॉलमार्क पर ज्यादा जोर देना चाहिए।' उन्होंने बताया, 'बगैर हॉलमार्क के आभूषण बेचने वाले कई दुकानदार ग्राहकों को बताते हैं कि हॉलमार्किंग पर बहुत ज्यादा खर्च आता है और इससे गहने और महंगे हो जाते हैं।' संजीव अग्रवाल ने बताया, 'यह सही नहीं है। हॉलमार्किंग में बहुत मामूली शुल्क लगता है, लेकिन सबसे अहम बात यह है कि बीआईएस मार्क से सोने की गुणवत्ता पक्की हो जाती है।' अगर कोई दुकानदार हॉलमार्क के गहने देने से इनकार करता है तो दूसरे स्टोर जाकर बीआईएस मार्क के गहने खरीदने चाहिए। उद्योग के जानकारों का अनुमान है कि बाजार में हॉलमार्क्ड सोने के आभूषणों की हिस्सेदारी 15-20 फीसदी है। क्यों महत्वपूर्ण है हॉलमार्किंग? कुछ ज्वैलर्स 19 कैरेट के गोल्ड ज्वैलरी को 22 कैरेट का बताकर बेच सकते हैं। इस लिहाज से आपको कम गुणवत्ता वाले गहनों पर ज्यादा पैसे खर्च करने पड़ेंगे। यह बात आपको तब पता चलेगी, जब आप इसके बदले नए गहने लेने दूसरे स्टोर जाएंगे। रीवा ज्वैलर्स के संजय अग्रवाल ने बताया, 'बीआईएस के आंकड़ों से पता चला है कि आज भी देश के छोटे शहरों और दूरदराज इलाकों में ज्वैलर्स 19 कैरेट के गोल्ड को 22 कैरेट बताकर उसकी बिक्री करते हैं। इस तरह की जालसाजी को ग्राहक तभी पकड़ पाएंगे जब वह हॉलमार्क्ड होगा या फिर उसे कैरेट मीटर का सहारा लेना होगा।' इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ज्वैलरी के डायरेक्टर वेदांत जटिया ने बताया, 'सोना काफी कीमती होता है और इन दिनों तो काफी महंगा हो चला है। सभी ज्वैलर्स आभूषण खुद से नहीं बनाते हैं। अपनी जरूरत के हिसाब से वे सूरत या कोयम्बटूर जैसे प्रमुख शहरों से आभूषणों की आउटसोर्सिंग करते हैं।' उन्होंने बताया, 'एक छोटा गहना भी कई लोगों के हाथों से होकर ग्राहक के पास आता है, इसलिए ग्राहकों को हॉलमार्क सर्टिफिकेट वाले गहनों की मांग करनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि वह बढ़िया चीज का सही भुगतान कर रहा है।' बिल के लिए जोर डालें असली बिल की पर्ची नहीं लेकर आप भले ही सौ या हजार रुपए बचा लें, लेकिन ऐसा करके आप अनजाने में घटिया क्वॉलिटी के सोने महंगे दाम पर खरीद लेते हैं। इसलिए आपको दुकानदार से बिल जरूर लेनी चाहिए, जिसमें खरीद की तारीख से लेकर कैरेट, सोने का वजन और मेकिंग चार्जेज का ब्योरा लिखा रहता है। अगर बिल के ब्योरे के मुताबिक, खरीदा गया आभूषण सही नहीं होता है तो आप इस सुबूत के दम पर ज्वैलर के खिलाफ कार्रवाई कर सकते हैं। जटिया ने बताया, 'अक्सर ज्वैलर ग्राहकों को समझाते रहते हैं कि बिल नहीं लेने पर आपको आभूषण 1 फीसदी सस्ते मिलेंगे। आमतौर पर ग्राहकों को उसी स्टोर से आभूषण खरीदने चाहिए, जो कर भुगतान के साथ वैट नंबर रखते हों।' पुराने के बदले नए पुराने गहनों को बेचकर नए गहने सभी लोग खरीदते हैं। फैशन बदलने, पुराने आभूषणों से मोहभंग और नए कलेक्शन को लेकर प्राय: लोग ऐसा करते हैं। लेकिन यह जानना जरूरी है कि एक्सचेंज के समय पुराने सोने की पूरी कीमत नहीं मिलती है। हॉलमार्किंग भारत में बहुत नया कॉन्सेप्ट है। 5-6 साल पहले खरीदे गए गहनों में बीआईएस मार्क नहीं होता है, इसलिए जब आप एक्सचेंज के लिए किसी ज्वैलर्स के पास जाएंगे तो वह उसकी गुणवत्ता और वजन की जांच करता है। शहरी इलाकों के ज्वैलर सोने की गुणवत्ता जांचने के लिए कैरेट मीटर का इस्तेमाल करते हैं। यह एक ऐसा टूल है जो आभूषण में सोने का वजन मापता है। छोटे शहरों के ज्वैलर स्टोर के सहारे आभूषण की गुणवत्ता और उसमें सोने का वजन अंश मापते हैं। इस प्रक्रिया के बाद वे आपको सोने का बायबैक वैल्यू बता देंगे। आप बायबैक कीमत से सहमत हैं तो ज्वैलर उसी कीमत के नए जेवर आपको दे देगा। 24 कैरेट का सोना दुलर्भ संगठित बाजार में ज्वैलरी स्टोर आमतौर पर 22 कैरेट के सोने की बिक्री करते हैं। जटिया ने बताया, '24 कैरेट का सोना बहुत नरम होता है।' 24 कैरेट में 99.9 फीसदी गोल्ड होता है, जिसका इस्तेमाल कलाकृतियों में होता है। 22 कैरेट में 91.6 फीसदी सोने की मात्रा होती है। जटिया ने बताया, 'ऐसे बहुत कम ज्वैलर हैं जो 24 कैरेट सोने की बिक्री करते हैं, क्योंकि नरम होने के कारण 24 कैरेट गोल्ड का इस्तेमाल हीरे जड़ित आभूषणों में नहीं होता है। थोड़ा सा भी मोड़ने पर उसके टूटने की आशंका रहती है।' सोना खरीदने से पहले उस दिन बाजार में सोने का भाव पता करना चाहिए। इसके अलावा मेकिंग चार्जेज, वजन और कैरेट की जानकारी के साथ स्टोर की बॉयबैक पॉलिसी भी पता होनी चाहिए। यह तब और अच्छा माना जाएगा सोने से जुड़ी सारी जानकारी ज्वैलर आपको एक पेपर पर दे। (ET Hindi)

30 अगस्त 2011

सोने के गहनों की मासिक किस्त न पड़ जाए महंगी


मुंबई
आप अपनी बेटी का जन्मदिन धूमधाम से मनाना चाहते हैं या फिर अपने खास दोस्त की शादी में शरीक होना चाहते हैं?
आप जरूर सोच रहे होंगे कि इस खास मौके पर आपको कैसा उपहार देना चाहिए। ज्यादा सोचने की जरूरत नहीं है क्योंकि इस तरह के मौके पर उपहार देना अब आसान हो गया है। आपको जानकर हैरानी नहीं होनी चाहिए कि टाटा समूह की तनिष्क और पी एन गाडगिल ज्वैलर्स मासिक बचत योजना चला रहे हैं। यह बैंकों की जमा योजनाओं की तरह ही है।
इस योजना के तहत आप अलग-अलग अवधि के लिए कम पूंजी की बचत कर सकते हैं। अवधि खत्म होने के बाद निवेशक उस रकम से सोने के गहने खरीद सकता है क्योंकि नकद पैसे वापस करने की अनुमति इस योजना में नहीं है।
कई लोकल ज्वैलर्स इस तरह की योजनाएं चला रहे हैं। इन योजनाओं में शुरूआत में न्यूनतम 500 रुपये प्रति माह निवेश किया जा सकता है। तनिष्क यह स्कीम 12 महीने और 18 महीने के लिए चलाती है।
क्या है प्रक्रिया
जो योजना 12 महीने की है, इसके लिए निवेशक को 11 महीने तक किस्त देनी होती है और तनिष्क अंतिम किस्त देती है। इसी तरह 18 महीने की योजना में निवेशकों को 17 महीने की किस्त देनी होती है जबकि ज्वेलर अंतिम किस्त देता है। यह अलग-अलग ज्वेलर के लिए अलग हो सकता है।
पुणे में पीएन गाडगिल ज्वेलर्स के स्टोर मैनेजर राजेश सोनी का कहना है, 'एक साल की योजना के लिए ग्राहकों को 12 महीने तक किस्त का भुगतान करना होता है और एक महीने की मुफ्त किस्त हम अपने ग्राहकों को देते हैं जो बोनस होता है।'
पीएन गाडगिल स्टोर अपने ग्राहकों को, एक साल, 2 साल और 3 साल की योजनाओं का विकल्प मुहैया कराते हैं। एक साल की स्कीम पर वे एक महीने की किस्त बोनस के तौर पर देते हैं, 2 साल की स्कीम पर 3 महीने की किस्त और 3 साल की स्कीम पर 7 महीने की किस्त देते हैं। इस अवधि के अंत में निवेशक उसी ज्वैलर्स की दुकान से सोने या चांदी के गहने खरीद सकता है।
तनिष्क की शॉप में 22 कैरेट का शुद्ध सोना और 18 कैरेट का जड़ा हुआ हीरा और प्लेटिनम ज्वैलरी खरीदी जा सकती है। हालांकि अगर आप सोने या चांदी के सिक्के चाहते हैं तो इसमें इसका ऑफर नहीं है। आपके पास यह विकल्प भी होगा कि आप अपनी बचत क्षमता के मुताबिक मासिक किस्त को बढ़ा या घटा सकें।
लेकिन अगर आपने अपनी किस्त का भुगतान नहीं किया तो परिपक्वता की तारीख बढ़ जाएगी। यानी आप तय तिथि से भुगतान में जितने दिनों की देरी करेंगे उतनी ही देरी योजना के परिपक्व होने में लगेगी। अगर आपको नकद पैसे की जरूरत है और आप इस स्कीम को जल्दी खत्म करते हैं तो आपको ज्वैलर्स द्वारा दिया जाने वाला बोनस नहीं मिलेगा।
निवेश से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि जो लोग स्कीम की पूरी अवधि में निवेश करते रहते हैं उनके पास अच्छी रकम इकट्ठा हो जाती है। इस तरह की योजनाएं अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाने के लिए बेहतर हैं और इसमें थोड़ी बचत भी हो जाती है। लेकिन वे मूल निवेश के तौर पर इसकी सिफारिश नहीं करते।
जोखिम की संभावना
ट्रेंडी इंवेस्टमेंट के मुख्य कार्याधिकारी डी सुंदराजन का कहना है, 'खुदरा निवेशकों के लिए इस तरह की योजनाओं में कई तरह के जोखिम हैं। ज्वैलरी के कारोबार का नियमन नहीं होता, इसी वजह से इसमें पैसे के सुरक्षित होने की कोई गारंटी नहीं होती। इसी तरह लोकल ज्वैलर डिफॉल्ट साबित भी हो सकता है।'
दूसरी खास बात यह है कि सोने की कीमतों में स्थिरता नहीं है। इंवेस्टोलाइन डॉट इन के अभिनव अंग्रीश का कहना है, 'आपको क्या मालूम है कि जब आपके निवेश की अवधि पूरी हो जाएगी जब सोने का कारोबार किस दर पर हो रहा होगा? अगर सोने का कारोबार 16,000 पर हो रहा है और ऐसे वक्त में अवधि जब खत्म हो रही हो तो यह और भी ज्यादा ऊंची दर पर जा सकता है।'
ज्यादा कीमत होने से आप कम कीमत की खरीदारी ही कर पाएंगे क्योंकि इन स्कीमों में नकदी नहीं मिल पाती है। ऐसे में आपको महसूस हो सकता है कि आपके पैसे फंस गए हैं। फोरफ्रंट कैपिटल की राधिका गुप्ता का कहना है, 'आप अपने पैसे एक इलिक्विड विकल्प में डाल रहे हैं और 1 साल की अवधि कम नहीं होती है।'
छोटी मासिक बचत योजनाओं के लिए भ्भी म्युचुअल फंडों का सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेंट प्लान (सिप) भी एक बेहतर विकल्प है। वैल्यू रिसर्च के आंकड़े के मुताबिक पिछले एक साल में एक म्युचुअल फंड रेटिंग एजेंसी, इक्विटी डाइवर्सिफाइड फंड ने औसतन 82 फीसदी का रिटर्न दिया है। वहीं एचडीएफसी टॉप 200 ने भी एक साल में लगभग 85 फीसदी का रिटर्न दिया है।
डीएसपीबीआर इक्विटी ने लगभग 83 फीसदी का रिटर्न दिया है। इस तरह साल में 2000 रुपये के मासिक निवेश से 43,680 रुपये बनाया जा सकता है। सुंदराजन का कहना है, 'अगर कोई अपने पोर्टफोलियो में सोना शामिल करना चाहता है तो उसे मासिक आधार पर गोल्ड एक्सचेंज-ट्रेडेड फं ड (ईटीएफ) खरीदना चाहिए। इसके अलावा आप एक ग्राम सोना भी खरीद सकते हैं।'
बाद में इन यूनिटों को सोने में तब्दील किया जा सकता है। ये योजनाएं उनके लिए बेहतर हैं जिन्हें किसी जल्द आने वाले किसी खास मौके पर कुछ उपहार देना हो और वे बड़ी रकम नहीं जुटा सकते। गुप्ता का कहना है, 'लेकिन तब भी इन योजनाओं में कम निवेश करने का विकल्प ही बेहतर होगा।'
...निवेश में बरते सावधानी
बैंकों की तर्ज पर ज्वैलर्स चला रहे हैं मासिक बचत योजनाइस स्कीम की परिपक्वता की अवधि 1,2 और 3 सालों की हैज्वैलर्स आखिरी महीने का किस्त देते हैं निवेश राशि से गहने खरीदने की है बाध्यता

27 अगस्त 2011

10 फीसदी बढ़ सकती हैं टायरों की कीमतें

नई दिल्ली।। ऑटो सेक्टर में सुस्ती और लागत में बढ़ोतरी टायर उद्योग को काफी परेशान कर रही है। पिछले वित्त वर्ष में उद्योग की बढ़ोतरी दर करीब 35 फीसदी जो पहली तिमाही में घटकर 12 से 14 फीसदी तक रह गई है। यही कारण है कि सितंबर-अक्टूबर तक अगर ऑटो सेल्स में तेजी न आई तो कीमतों में 10 से 12 फीसदी की बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया जा सकता। टायर मैन्युफैक्चरिंग की कुल लागत में कच्चे माल की का 70 फीसदी हिस्सेदारी होती है। पिछले वित्त वर्ष से तुलना करें तो एक साल में टायर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले पीबीआर, नायलॉन शीट, सिंथेटिक रबर जैसे कच्चे माल की कीमतों में काफी इजाफा हुआ है। इससे लागत में 10 फीसदी की अतिरिक्त बढ़ोतरी दर्ज की जा रही है। मोदी टायर्स का अधिग्रहण करने वाली कंपनी कॉन्टिनेंटल ऑटो के बोर्ड मेंबर आलोक मोदी ने बताया, 'टायर मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों से जुड़ी इकाइयों को काफी चुनौतीपूर्ण स्थिति का सामना करना पड़ रहा है। इस स्थिति में दामों में 10 से 12 फीसदी की बढ़ोतरी करने की आवश्यकता है।' हालांकि दामों में कब तक बढ़ोतरी की जा सकती है इस बात पर मोदी ने कहा कि अगले दो से तीन महीने तक दामों में किसी भी तरह की बढ़ोतरी की कोई आशंका नहीं है। टायर कंपनियों के मुताबिक अगर त्योहारों के मौसम यानी सितंबर और अक्टूबर के दौरान अगर ऑटो सेल्स में तेजी नहीं आती है तो दामों में बढ़ोतरी की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता है। जेके टायर्स के डायरेक्टर (मार्केटिंग) ए एस मेहता के मुताबिक, 'लागत बढ़ने से ज्यादातर टायर कंपनियों की पहली तिमाही के नतीजे अच्छे नहीं रहे हैं। प्रॉफिट मार्जिन में करीब 5 फीसदी की गिरावट दर्ज की जा रही है।' मेहता ने कहा कि उद्योग में काफी कड़ी प्रतिस्पर्धा है। यही वजह है कि दाम में इजाफा करने में कोई कंपनी जल्दबाजी नहीं करना चाहती। नवरात्रि और दिवाली जैसे त्योहार ऑटो सेल्स के लिए काफी अच्छे माने जाते हैं। इस दौरान बिक्री में तेजी नहीं आती तो दाम बढ़ाने के अलावा कोई और रास्ता नहीं बचेगा। उद्योग का सालाना टर्नओवर 35,000 करोड़ रुपए है। ऑटोमोटिव टायर्स मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन के डायरेक्टर जनरल राजीव बुद्धिराजा ने कहा, 'कच्चे माल की कीमतों में इजाफा टायर उद्योग के लिए परेशानी की बड़ी वजह है। रही सही कसर ब्याज दरों में वृद्धि ने पूरी कर दी है। इससे कंपनियों को बढ़ी हुई लागत का प्रबंधन करने में काफी दिक्कत आ रही है।' सिएट के प्रवक्ता के मुताबिक, 'कंपनी को कीमतें बढ़ाने की सख्त जरूरत महसूस हो रही है। हालांकि त्योहारों के बाद ही इस बारे में कोई फैसला किया जाएगा।' (ET Hindi)

सीसीआई एक करोड़ गांठ कपास की खरीद करेगी

आर.एस. राणा नई दिल्ली

मकसद - नए सीजन में बाजार मूल्य एमएसपी से भी नीचे गिरने से रोकने की कवायदनिर्यात का हालकेंद्र सरकार ने कपास निर्यात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबंध को एक अगस्त से चालू सीजन के बचे हुए दो महीनो के लिए हटाया हुआ है। सूत्रों के अनुसार सितंबर महीने में निर्यात स्थिति की समीक्षा की जाएगी।पैदावार कैसी रहेगीकपास का उत्पादन 242.3 लाख गांठ से बढ़कर 334.3 लाख गांठ होने का अनुमान है। चालू खरीफ में बुवाई 106 लाख हैक्टेयर से बढ़कर 114.80 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है। मौसम भी अनुकूल है।कॉटन कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (सीसीआई) ने नए कपास सीजन (अक्टूबर से सितंबर) के दौरान एक करोड़ गांठ (एक गांठ-170 किलो) कपास खरीदने की योजना बनाई है। बुवाई क्षेत्रफल बढऩे और अनुकूल मौसम से पैदावार में बढ़ोतरी होने का अनुमान है जिससे सीसीआई के साथ ही अन्य एजेंसियों की खरीद भी बढऩे का अनुमान है। अगस्त के पहले सप्ताह में सीसीआई के पास कपास का करीब चार लाख गांठ का पुराना स्टॉक भी बचा हुआ है। जिसकी बिकवाली निविदा के माध्यम से की जा रही है।
सीसीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू सीजन में देश में कपास का बुवाई रकबा बढ़ा है जबकि अभी तक मौसम भी फसल के अनुकूल बना हुआ है। इसीलिए कपास का बंपर उत्पादन होने का अनुमान है।
मिलों को बीते सीजन कपास खरीद में भारी घाटा उठाना पड़ा है जिससे नए सीजन में मिलों की मांग सुस्त रहने का अनुमान है। ऐसे में हाजिर बाजार में कपास की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से नीचे ना जा पाए इसीलिए सीसीआई ने एक करोड़ गांठ कपास खरीदने की योजना बनाई है।
केंद्र सरकार ने कपास निर्यात पर लगे मात्रात्मक प्रतिबंध को एक अगस्त से चालू सीजन के बचे हुए दो महीनो के लिए हटाया हुआ है। सूत्रों के अनुसार सितंबर महीने में निर्यात स्थिति की समीक्षा की जाएगी।
घरेलू मंडियों में अगस्त के पहले सप्ताह में करीब 60 लाख गांठ कपास का स्टॉक बचा हुआ है जबकि चार लाख गंाठ का स्टॉक सीसीआई के पास है। आने वाली फसल की पैदावार में भी बढ़ोतरी होने का अनुमान है। ऐसे में अगर निर्यात पर फिर से मात्रात्मक प्रतिबंध लगा दिया तो हाजिर बाजार में दाम घटकर एमएसपी से भी नीचे जाने की आशंका है।
केंद्र सरकार ने नए विपणन सीजन 2011-12 के लिए कपास के एमएसपी में 300 रुपये की बढ़ोतरी कर मध्यम दर्जे की लंबाई वाली कपास का एमएसपी 2,800 रुपये और लंबे दर्जे की लंबाई वाली कपास का एमएसपी 3,300 रुपये प्रति क्विंटल तय किया हुआ है। बुधवार को अहमदाबाद में शंकर-6 किस्म की कपास का भाव 38,800 से 39,000 रुपये प्रति कैंडी (एक कैंडी-356 किलो) रहा। उधर न्यूयार्क बोर्ड ऑफ ट्रेड में अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में कपास का भाव 107.31 सेंट प्रति पाउंड रहा।
कृषि मंत्रालय के अनुसार वर्ष 2010-11 में कपास का उत्पादन 242.3 लाख गांठ से बढ़कर 334.3 लाख गांठ होने का अनुमान है। जबकि चालू खरीफ में कपास की बुवाई बढ़कर 114.80 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 106.62 लाख हैक्टेयर में हुई थी। सीसीआई के अलावा कपास की न्यूतनम समर्थन मूल्य पर खरीद भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी संघ (नेफेड) और महाराष्ट्र राज्य को-ऑपरेटिव कॉटन ग्रोवर मार्किट फेडरेशन करती है। (Business Bhaskar....R S Rana)

धान प्रोसेसिंग को बढ़ावा देने के लिए नीति बनेगी


मॉडल - पंजाब व हरियाणा में उन्नत तकनीक से प्रोसेसिंग होती है धान कीक्या फायदा होगा:- प्रोसेसिंग की उच्च तकनीक अपनाने पर वेस्टेज कम होगी और खाद्यान्न की बर्बादी रुकेगी। किसान और प्रोसेसर्स को इसका लाभ मिलेगा। एफसीआई के नियमों के मुताबिक धान की मिलिंग हो सकेगी।किन राज्यों में प्रोत्साहन मिलेगाबिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में नई नीति के तहत मिलों की स्थापना को बढ़ावा दिया जाएगापंजाब और हरियाणा की तर्ज पर पूर्वोत्तर व दूसरे क्षेत्रों के राज्यों में भी धान प्रोसेसिंग के लिए सरकार नई नीति बनाएगी और धान की प्रोसेसिंग के लिए मिलों की स्थापना को बढ़ावा देगी। इससे चावल की वेस्टेज में कमी आएगी।
नई नीति की रूपरेखा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय बनाएगा तथा नीति बनाने में कृषि मंत्रालय और खाद्य मंत्रालय सहयोग करेगा। इससे प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकेगा। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि चालू महीने में कृषि मंत्री शरद पवार और खाद्य राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) प्रो. के. वी. थॉमस की बैठक में धान प्रोसेसिंग के लिए नई नीति बनाने पर फैसला हुआ है।
नई नीति बनाने की जिम्मेदारी खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय की होगी तथा कृषि एवं खाद्य मंत्रालय इसमें सहयोग करेंगे। अधिकारी ने बताया कि पंजाब और हरियाणा में धान की प्रोसेसिंग के लिए उच्च तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है इसीलिए इन राज्यों में वेस्टेज काफी कम होती है। लेकिन बिहार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, असम और पूर्वोत्तर के राज्यों में प्रोसेसिंग की उच्च तकनीक नहीं होने के कारण वेस्टेज की मात्रा ज्यादा आती है। इससे खाद्यान्न की बर्बादी तो होती ही है, साथ में किसान और प्रोसेसर्स को उचित भाव भी नहीं मिल पाता है।
भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) पंजाब और हरियाणा में चावल की प्रोसेसिंग एक क्विंटल धान से 76 किलो चावल के आधार पर करवाती है। उन्होंने बताया कि चावल उत्पादन में उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिमी बंगाल, झारखंड, उड़ीसा और असम की महत्वपूर्ण भूमिका है। प्रोसेसिंग में नई तकनीक आने से इन राज्यों में उच्च क्वालिटी के चावल की उपलब्धता बढ़ेगी।
इससे केंद्रीय पूल में भी ज्यादा खाद्यान्न होगा जिससे प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकेगा। केंद्रीय पूल में एक अगस्त को 252.71 लाख टन चावल का स्टॉक मौजूद है।
कृषि मंत्रालय के चौथे अग्रिम अनुमान के अनुसार वर्ष 2010-11 में देश में चावल का उत्पादन बढ़कर 953.2 लाख टन होने का अनुमान है। जबकि चालू खरीफ सीजन में धान की रोपाई 348.78 लाख हैक्टेयर में हो चुकी है जो पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले 36.03 लाख हैक्टेयर ज्यादा है। (Business Bhaskar....R S Rana)

ब्राजील में गन्ने का उत्पादन घटने का अनुमान


ब्राजील में गन्ने का उत्पादन पिछले अनुमान के मुकाबले कम रह सकता है। स्विट्जरलैंड की कंसल्टेंसी कंपनी किंग्समैन एसए ने अपने चौथे अनुमान में मध्य-दक्षिण ब्राजील में 4,980 लाख टन गन्ने का उत्पादन हो की संभावना जताई है। पिछले अनुमान के मुकाबले उत्पादन में 270 लाख टन कमी आने की संभावना जताई गई है।
कंपनी ने तीसरे अनुमान में गन्ना का उत्पादन 5,570 लाख टन रहने की संभावना जताई थी, जबकि वर्तमान अनुमान 4,980 लाख टन रखा है। पिछले सीजन में 5,570 लाख टन गन्ने की पेराई हुई थी। पिछले सीजन में चीनी का कुल उत्पादन 3,35 लाख टन हुआ था। चौथे अनुमान में 306.3 लाख टन चीनी का उत्पादन होने की संभावना जताई है जबकि तीसरे अनुमान में 318.7 लाख टन उत्पादन की संभावना जताई थी।
वहीं दूसरी ओर एथेनॉल का उत्पादन अनुमान 22.39 अरब लीटर से घटाकर 20.29 अरब लीटर तय किया गया है। बीते सीजन में एथेनॉल का उत्पादन 25.385 अरब लीटर हुआ था।
लॉसैन के बायोफ्यूल्स डिपार्टमेंट के प्रमुख पैटरिका लुइस मैंसो ने कहा कि इस साल मध्य-दक्षिण ब्राजील में गन्ने की खेती को 'पाला, फूल और फिर पाला' कह सकते हैं। पिछले साल के सूखे से समस्या शुरू हो गई थी और जो इस साल के शुरूआत में भारी वर्षा होने तक बनी रही। गन्ने के उत्पादन को दोनों ने काफी प्रभावित किया।घरेलू बाजार में भारी स्टॉक का दबावनई दिल्ली घरेलू थोक बाजार में चीनी के भाव स्थिर रहे जिससे इसके कारोबार में सुस्ती रही और यह पुराने स्तर पर पहुंच गया। बाजार के जानकारों का कहना है कि स्टॉक ज्यादा रहने और खरीदारी सीमित रहने से चीनी के भाव में कोई बढ़ोतरी नहीं दर्ज की गई।
चीनी के एम- 30 किस्म का भाव 2,950-3,050 और एस- 30 किस्म का भाव 2,925-3,015 रहा। चीनी की मिल डिलीवरी भाव एम -30 किस्म के भाव 2,730-2,960 और एस-30 किस्म के भाव 2,720-2,950 रहा। (Business Bhaskar)

महंगाई के कोढ़ में प्याज का खाज


नई दिल्ली August 25, 2011
पिछले साल आम आदमी और सरकार के आंसू निकाल चुके प्याज का भाव इस साल भारी उत्पादन और स्टॉक रहने के बावजूद भी एकाएक चढऩे लगा है। कारोबारी भी आवक के मुकाबले बिक्री कम होने की बात कर रहे हैं और लगातार निर्यात मूल्य बढ़ाए जाने की वजह से पिछले साल के मुकाबले निर्यात भी 33 फीसदी घटा है, लेकिन प्याज के भाव में 10 दिन के भीतर ही 30 फीसदी इजाफा हो चुका है। दाम इस तेजी से बढ़ रहे हैं कि सरकार को भी इसके न्यूनतम निर्यात मूल्य में 25 डॉलर प्रति टन इजाफा करना पड़ा है। कल हुए इस इजाफे के साथ ही प्याज का न्यूनतम निर्यात मूल्य 300 डॉलर प्रति टन हो गया है। जानकारों के मुताबिक इस पर दाम बढऩे का कारण कारोबारियों और सटोरियों की साठगांठ ही है।उपभोक्ता मामलों के विभाग के आंकड़ों के अनुसार जून से देश के प्रमुख शहरों में प्याज की खुदरा कीमतों में 5 से 10 रुपये प्रति किलो का इजाफा हुआ है। दिल्ली में जून में प्याज की खुदरा कीमत 10.50 रुपये प्रति किलो थी जो अगस्त में 21 रुपये प्रति किलो के भाव तक पहुंच गई है। राजधानी की आजादपुर सब्जी मंडी में प्याज के थोक भाव 10 दिन पहले 450 से 1,200 रुपये प्रति क्विंटल थे, जो अब 650 से 1,600 रुपये प्रति क्विंटल हो गए हैं। महाराष्टï्र की नासिक मंडी में भी इस दौरान इसके न्यूनतम भाव 430 से बढ़कर 575 रुपये प्रति क्विंटल हो गए थे। वहां इसका अधिकतम भाव 1,285 रुपये प्रति क्विंटल चल रहा है। आजादपुर के कारोबारी भी बता रहे हैं कि आवक मांग से ज्यादा है। आलू-प्याज कारोबारी संघ (पोमा) के महासचिव राजेंद्र शर्मा ने कहा, 'रोजाना 110 गाड़ी से ज्यादा प्याज आ रहा है और बिकता 70-80 गाड़ी है। बारिश में तो दाम अक्सर बढ़ते हंै। पर्याप्त भंडारण और कमजोर बिक्री के बावजूद दाम में 50 फीसदी बढ़ोतरी पर राष्टï्रीय बागवानी अनुसंधान एवं विकास फाउंडेशन के निदेशक आर पी गुप्ता ने भी हैरत जताई। उन्होंने बताया कि इस साल देश में 30 लाख टन से अधिक प्याज का भंडारण हुआ है और उसमें से बमुश्किल 30-35 फीसदी हिस्सा बाजार में आया है। उन्होंने कहा, 'पिछली बार 148 लाख टन उत्पादन था और इस बार खरीफ की फसल कमजोर रहने की आशंका है। लेकिन भारी स्टॉक है और नए प्याज की आवक भी शुरू हो गई है, इसलिए भाव चढऩे की कोई वजह नजर नहीं आ रही। भारतीय राष्टï्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ मर्यादित (नेफेड) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया कि चालू वित्त वर्ष के शुरुआती 4 महीनों में 4.52 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ है, जो पिछले साल की समान अवधि के 6.82 लाख टन से काफी कम है। (BS Hindi)

एथेनॉल से कमार्ई की तैयारी


नई दिल्ली August 25, 2011
एथेनॉल मिश्रित पेट्रोल से 154 करोड़ रुपये की बचत होने की वजह से तेल विपणन कंपनियों ने पेट्रोल में मिलावट के लिए 1.01 अरब लीटर एथेनॉल की खरीद के लिए निविदाएं जारी की हैं। चीनी उद्योग निविदाओं की पूर्ति करने मे सक्षम है। ये निविदाएं 2 सितंबर को बंद होंगी। एथेनॉल की आपूर्ति अक्टूबर से शुरू होने वाले नए चीनी वर्ष में की जाएगी। देश की सबसे बड़ी तेल विपणन कंपनी इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन ने 45.5 करोड़ लीटर एथेनॉल खरीदने के लिए निविदाएं जारी की हैं। वहीं, भारत पेट्रोलियम और हिंदुस्तान पेट्रोलियम ने क्रमश: 28.3 और 27.7 लाख लीटर एथेनॉल की खरीद के लिए निविदाएं जारी की हैं। तेल विपणन कंपनियां फिलहाल 27 रुपये प्रति लीटर की दर पर एथेनॉल खरीदती हैं। यह कीमत थोड़े समय के लिए हैं। अगर सरकार सौमित्र चौधरी समिति की सिफारिशों को स्वीकार कर लेती है तो इसकी कीमत बढ़ सकती है। समिति ने सुझाव दिया है कि एथेनॉल की कीमतों को इसकी कैलोरिफिक वैल्यू, माइलेज और कर प्रोत्साहन आदि पर विचार करने के बाद पिछली तिमाही की पेट्रोल कीमतों से जोड़ा जाना चाहिए। पिछले साल तेल विपणन कंपनियों ने 1.04 अरब लीटर पेट्रोल खरीदने की इच्छा जताई थी। रेणुका शुगर, बजाज हिंदुस्तान और बलरामपुर चीनी के नेतृत्व वाले चीनी उद्योग ने करीब 1 अरब लीटर की आपूर्ति करने की पेशकश की थी। हालांकि अंतिम अनुबंध 55.9 करोड़ लीटर के लिए हो सके।फिलहाल पेट्रोल में 5 फीसदी एथेनॉल 13 राज्यों और 3 संघ शासित प्रदेशों में मिलाया जाता है। इस साल 55.9 करोड़ लीटर की अनुबंधित मात्रा के मुकाबले 15 अगस्त तक आपूर्ति 30.7 करोड़ हुई है। कम आपूर्ति के पीछे सबसे बड़ा कारण उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य के बाहर एथेनॉल की बिक्री पर इस साल तीन महीने के लिए (अप्रैल से) प्रतिबंध लगाना है। हालांकि यह विवाद अब सुलझ चुकी है। उत्तर प्रदेश देश का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता है और ज्यादातर उत्तरी राज्यों की मांग पूरी करता है।एथेनॉल और पेट्रोल की कीमतों में अंतर होने के कारण पेट्रोल में एथेनॉल मिलाना तेल विपणन कंपनियों के लिए फायदेमंद रहता है। अन्यथा कीमतों में संशोधन नहीं होने की वजह से इन कंपनियों को पेट्रोल की बिक्री पर नुकसान होता है। पेट्रोलियम मंत्री आरपीएन सिंह द्वारा संसद में दी गई जानकारी के अनुसार पिछले वित्त वर्ष में तेल विपणन कंपनियों को एथेनॉल के मिश्रण से 154 करोड़ रुपये का लाभ हुआ है। 2008-09-2009-10 के दौरान तेल विपणन कंपनियों का संयुक्त लाभ 153 रुपये रहा था। तेल विपणन कंपनियों को मिश्रण से और अधिक मुनाफा होने की उम्मीद है, क्योंकि इस साल गन्ने के अधिक उत्पादन से एथेनॉल का भी अधिक उत्पादन होगा। पेट्रोल के साथ 5 फीसदी के अनुपात में एथेनॉल की मिलावट वर्ष 2007 में शुरू हुई थी। लेकिन 2009 में गन्ने का उत्पादन घटने और एथेनॉल के एकमात्र उत्पादक द्वारा आपूर्ति में डिफॉल्ट करने से यह बंद हो गई थी। पिछले साल नवंबर में फिर इसे शुरू किया गया है। एथेनॉल को ग्रीन फ्यूल माना जाता है और पेट्रोल के साथ इसकी मिलावट से भारत की तेल आयात पर निर्भरता कम होगी। (BS Hindi)

सोने के खरीदारों को लुभाने की कवायद


अहमदाबाद August 25, 2011
हालांकि दिनोंदिन सोने की कीमतें नई ऊंचाइयां छू रही हैं, फिर भी आभूषण निर्माता अपने ग्राहकों के लिए पीली धातु की खरीद को आसान बनाने के लिए नई योजनाएं पेश कर रहे हैं। विश्व स्वर्ण परिषद के वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार, सोने की कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर होने के बावजूद इसकी खरीद के लिए ग्राहकों को प्रोत्साहित करने में स्थानीय आभूषण निर्माता अहम भूमिका निभा रहे हैं। देश के विभिन्न भागों में आभूषण निर्माता 'सोने के लिए बचत योजना पेश कर रहे हैं। इस योजना के तहत आभूषण निर्माता ग्राहकों को हर महीने एक छोटी राशि उनके पास जमा करके सोने के आभूषण खरीदने की सुविधा दे रहे हैं। विश्व स्वर्ण परिषद के प्रबंध निदेशक (भारत, मध्य-पूर्व) अजय मित्रा ने कहा कि 'ग्राहकों के लिए इस तरह की योजनाएं पेश करने का चलन बढ़ा है। गुजरात के अहमदाबाद और सूरत समेत देश के प्रमुख शहरों में हमने एक सर्वे किया है। इसमें हमने पाया है कि बहुत से आभूषण निर्माता ग्राहकों को 'सोने के लिए बचत जैसी योजना पेश कर रहे हैं।Óमित्रा द्वारा मुहैया कराए गए आंकड़ों के अनुसार, सूरत में 75 फीसदी आभूषण निर्माता इस तरह की योजनाएं पेश कर रहे हैं। जबकि अहमदाबाद में ऐसे आभूषण निर्माताओं की संख्या 64 फीसदी है। उन्होंने कहा कि चेन्नई, मदुरै और नागपुर जैसे शहरों में 100 फीसदी आभूषण निर्माता ग्राहकों के लिए इस तरह की योजनाएं पेश कर रहे हैं। वहीं बैंगलोर में 94 फीसदी आभूषण निर्माता बचत योजनाएं पेश कर रहे हैं। मुंबई में 77 फीसदी आभूषण निर्माताओं ने सोने के ऊंचे भावों पर ग्राहकों को आकर्षित करने के लिए इस तरीके को अपनाया है। अहमदाबाद स्थित एक आभूषण निर्माता एबी जेवल्स के निदेशक मनोज सोनी ने बताया कि 'सोने के लिए बचत योजनाएं उन खुदरा आभूषण खरीदारों के लिए अच्छी हैं, जो सोने की खरीद के लिए एक साथ भारी निवेश नहीं कर सकते। यह तरीका उन्हें विशेष रूप से शादी के लिए पहले से ही सोने की खरीद योजना बनाने को प्रोत्साहित करता है। इस योजना को अच्छी प्रतिक्रिया मिली है।आभूषण निर्माता 11-15 महीने के लिए यह योजना पेश कर रहे हैं, जिसके तहत हर महीने संबंधित आभूषण निर्माता के पास एक निश्चित राशि जमा करानी होती है। यह छोटे ग्राहकों के लिए आसान होता है। वे हर महीने एक छोटी राशि 500-5000 तक जमा करा सकते हैं। मित्रा ने बताया कि आभूषण निर्माताओं की वित्तीय लेन-देन में बढ़ती संलग्नता को देखते हुए माना जा रहा है कि भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) आभूषण निर्माताओं को अपने नियामकीय दायरे के तहत लाने पर विचार कर रहा है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि कुछ ऐसी घटनाएं सामने आई हैं, जिनमें जमाकर्ताओं से पैसा लेने के बाद आभूषण निर्माता चंपत हो गए। अब आरबीआई गैर-बैंकिंग वित्तीय गतिविधियों से जुड़ेआभूषण निर्माताओं के लिए नियम तय करने पर विचार कर रहा है। (BS Hindi)

'ओजीएल के तहत जारी रहे कपास निर्यात


मुंबई August 26, 2011
कृषि मंत्रालय ने खुले सामान्य लाइसेंस (ओजीएल) के तहत कपास निर्यात को सितंबर 2011 के बाद भी जारी रखने की सिफारिश की है। फिलहाल इस वर्ष सितंबर तक कपास निर्यात नियंत्रण मुक्त है। एक आधिकारिक सूत्र ने बताया कि 'बुआई काफी अच्छी रही है। अगस्त 2011 में आज तक के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में कपास का कुल रकबा बढ़कर 117 लाख हेक्टेयर हो गया है, जो पिछले वर्ष की समान अवधि तक 106.80 लाख हेक्टेयर था। कपास के रकबे में 10 फीसदी बढ़ोतरी से कुल फसली रकबा अगस्त में तेजी से बढ़ा है। इस तरह फसल काफी अच्छी रहेेगी और किसानों को बेहतर मिले, इसके लिए निर्यात को मंजूरी देना जरूरी है।Óभारतीय कपास निगम के अनौपचारिक आंकड़ों के अनुसार बुआई सीजन के अंत तक इसका रकबा बढ़कर 120 लाख हेक्टेयर तक पहुंच सकता है। भारतीय कपास निगम देश में फसल की स्थिति का पता लगाने के लिए फिलहाल प्रारंभिक सर्वे कर रहा है। जानकार सूत्रों ने बताया कि 'रकबे के हिसाब से चालू सीजन में कपास का उत्पादन 350 लाख गांठों से अधिक रहने का अनुमान है।Óअगस्त में आज की तारीख तक फसल के रकबे में शुद्ध बढ़ोतरी 13.19 लाख हेक्टेयर हुई है, जो जून-जुलाई में मुश्किल से 7-8 लाख हेक्टेयर थी। चावल और कपास उन प्रमुख फसलों में शामिल हैं, जिनसे कुल रकबे में बढ़ोतरी हुई है। जबकि दालों और मोटे अनाजों का रकबा घटा है। गुजरात, राजस्थान और हरियाणा में कपास के रकबे में भारी बढ़ोतरी दर्ज की गई है। हालांकि घरेलू और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में इसकी कीमतें पिछले साल की तुलना में कम हैं। फिलहाल कपास की कीमतें 38,000-39,000 रुपये प्रति कैंडी हैं। कपास निर्यात की पात्रता के मानदंडों पर भारी शोर-शराबे के बाद अच्छी आपूर्ति और इस महीने के प्रारंभ में घरेेलू कीमतों में गिरावट को देखते हुए सरकार ने खुले सामान्य लाइसेंस (ओजीएल) के तहत इसके नियंत्रण मुक्त निर्यात को स्वीकृति देने का निर्णय लिया। विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) कपास निर्यातकों के लिए पात्रता मानदंडों को समाप्त कर चुका है। हालांकि दिशानिर्देशों के मुताबिक निर्यातकों को निर्यात के दस्तावेजी प्रमाण पेश करने होंगे। इसके अलावा लाइसेंस धारक द्वारा पंजीकरण के बाद निर्यात नहीं करने की स्थिति में पैनल उपखंड का प्रावधान लागू रहेगा।अभी तक कपास निर्यात के लिए शर्त थी कि निर्यातक ने पिछले सीजन में निर्यात किया हो। इस शर्त को 9-10 निर्यातकों द्वारा न्यायालय में चुनौती दी गई थी। याचिका पर सुनवाई के दौरान बंबई हाईकोर्ट ने डीजीएफटी को कोटा आवंटन 8 अगस्त तक बढ़ाने का आदेश जारी किया था, जो 15 जुलाई तक ही पूरा हो चुका था। इसके बाद डीजीएफटी ने उच्च न्यायालय के निर्णय को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी थी। (BS Hindi)

24 अगस्त 2011

सोना-चांदी सौदे बढ़ने से जिंस एक्सचेंजों का कारोबार 57.50 फीसद बढ़ा


नई दिल्ली, सोना चांदी में कारोबारी रुझान बढ़ने से चालू वित्तवर्ष में अप्रैल-जुलाई के दौरान देश के 23 जिंस एक्सचेंजों में कुल वायदा कारोबार बढ़कर 53,11,356 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो पिछले साल की इसी अवधि की तुलना में 57.50 प्रतिशत अधिक रहा है। वायदा बाजार आयोग ःएफएमसीः ने बताया कि सर्राफा और कृषि उत्पादों के वायदा कारोबार में तेजी के कारण यह बढ़ोतरी हुयी है। इससे पिछले वित्तवर्ष इसी अवधि में जिंस एक्सचेंजों के जरिये 33,72,249 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ था।
वायदा बाजार आयोग के आंकड़ों के अनुसार जुलाई माह में सोना, चांदी, गुड़, बीज, चना और सोयाखली में अधिक कारोबार किया गया। आलोच्य माह जुलाई तक वायदा बाजार में सोने के लिए होने वाला कारोबार पिछले साल इसी अवधि की तुलना दोगुना से ज्यादा होकर 30,57,508 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 15,19,559 करोड़ रुपये पर था।
अप्रैल से जुलाई 2011 के दौरान जिंस एक्सचेंजें में कृषि उत्पादों के लिए होने वाला कारोबार 56.43 फीसद बढ़कर 5,89,893 करोड़ रुपये पर पहुंच गया, जो पिछले साल इसी अवधि में 3,77,099 करोड़ रुपये पर था। इस दौरान उढर्जा संबंधी वस्तुओं के कारोबार में 31.32 फीसद की तेजी दर्ज की गयी, और यह 8,25,432 करोड़ रुपये हो गया, जो पिछले साल की समान अवधि में 6,28,568 करोड़ रुपये था।
इसी प्रकार धातु खंड में आलोच्य अवधि के दौरान तांबा वायदा कारोबार में मामूली गिरावट दर्ज की गयी और यह 8,38,520 करोड़ रुपये रह गया, जो पिछले साल की इसी अवधि में 8,47,009 करोड़ रुपये था।
प्रमुख जिंस एक्सचेंज मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ःएमसीएक्सः में जुलाई माह में कुल 12,45,256 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया, जबकि इसी माह में एनसीडीईएक्स के जरिये कुल।,92,791 करोड़ रुपये, आईसीईएक्स के जरिये 15,998 करोड़ रुपये, एसीई डेरिवेटिव्स एंड कमोडिटी एक्सचेंज में 13,089 करोड़ रुपये और एनएमसीई के जरिये कुल 10,288 करोड़ रुपये के वायदा कारोबार किया गया। उल्लेखनीय है कि इस समय देश में पांच राष्ट्रीय और 18 क्षेत्रीय स्तर के जिंस एक्सचेंज परिचालन में हैं। पिछले वित्तवर्ष 2010-11 के दौरान इन सभी जिंस एक्सचेंजों के जरिये कुल 119.48 लाख करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था। (भाषा)।

कॉटन-निर्यात पर हटी रोक से मिलेगा सपोर्ट

मांग व आपूर्ति की अनिश्चितता की वजह से इस पखवाड़े भी अंतरराष्ट्रीय बाजारों में कॉटन की कीमतों में सुस्ती बनी रही। यूएसडीए द्वारा इस साल निर्यात में कटौती के अनुमानों व चीनी की मांग में कमी की वजह से अमेरिकी बाजारों में कॉटन की कीमतों में भारी गिरावट दर्ज हुई है। यूएसडीए की समीक्षा के बाद आपूर्ति में थोड़ी तेजी आई है। इस समय साल 2011-12 के लिए वैश्विक स्टॉक/यूज रेशियो 43.7 फीसदी के स्तर पर है जो तीन सालों के दौरान सबसे ज्यादा है। अमेरिका में आईसीई वायदा बाजार का बेंचमार्क अक्टूबर सौदा 0.90 सेन्ट्स यानी 0.88 फीसदी गिरकर 1.0200 डॉलर प्रति पाउंड पर बंद हुआ।
साल 2011-12 में वैश्विक स्तर पर कपास के उत्पादन में 8 फीसदी की बढ़ोतरी के साथ 26.9 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान। क्योंकि साल 2010-11 में किसानों को कपास की कीमतों में तेजी का फायदा मिला है, इससे प्रेरित होकर वे उत्पादन बढ़ा सकते हैं। अमेरिका को छोडक़र दुनिया के सभी बड़े कपास उत्पादक देशों के पैदावार में वृद्धि होगी। उम्मीद के अनुसार भारत और ऑस्ट्रेलिया में इसका उत्पादन रिकार्ड स्तर पर पहुंच सकता है। अमेरिका में खेती योग्य भूमि में बढ़ोतरी होने के बावजूद टैक्सास में सूखे के कारण न केवल लोग वहां इसकी खेती से मुंह मोड़ेंगे बल्कि इसका असर कुल उत्पादन पर भी पड़ेगा। अमेरिका में 2011-12 में 35 लाख टन कपास उत्पादन का अनुमान लगाया गया है जो कि पिछले सीजन से 12 फीसदी कम है। जहां तक खपत की बात है तो यदि अनुमानित वैश्विक इकनामिक ग्रोथ मूर्त रूप लेता है तो 2011-12 के दौरान वैश्विक कपास के मिल खपत में बढ़ोतरी होगी। कपास की बढ़ी हुई उपलब्धता ने इसमें हवा दे दी है। लेकिन कपास की कीमतों में तेजी और पॉलिएस्टर से मिल रही प्रतिस्पर्धा के कारण इसमें कमी हो सकती है। 2011-12 में कपास मिल खपत 25 मिलियन टन होने का अनुमान है जो कि पिछले साल से 2 फीसदी ज्यादा है। चीन में फसलों के उत्पादन की अच्छी स्थिति और अनुकूल मौसम के कारण कपास की कीमतों में सुस्ती बनी रहेगी। चीन का इकॉनामिक बेल्ट कहलाने वाले उत्तरी तियानशान में कपास की स्थिति अच्छी है जबकि उत्तरी जिजियांग में मौसम की भविष्यवाणी के मद्देनजर बारिश की संभावना व्यक्त की गई है। पिछले साल यहां किसानों को बहुत फायदा हुआ था लेकिन इस साल थोड़ी चिंताएं अभी बनी हुई हैं।
जहां तक भारत का सवाल है बचे हुए कॉटन मार्केटिंग ईयर के लिए कॉटन निर्यात की इजाजत देने से यहां इसकी मांग में मजबूती बनी हुई है। कपास का उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्यों जैसे गुजरात, महाराष्ट्र, आंध्रप्रदेश, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु और मध्यप्रदेश ने कृषि मंत्रालय से कपास पर निर्यात की रोक को हटाने हेतु पत्र लिखा था। इसके पीछे उनकी दलील थी की घरेलू बाजार में कपास की मांग में आ रही कमी और सत्र के अंत तक कपास का विशाल स्टॉक होने के कारण निर्यात के रास्ते खोल देने चाहिए। इसके बाद सरकार ने कमॉडिटी की कीमतों में आई कमी और देश में इसकी पर्याप्त उपलब्धता होने की बात कहते हुए कपास पर से निर्यात की रोक हटा ली और ओपन जेनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत बचे हुए कपास सीजन तक निर्यात की इजाजत दे दी। कपास सीजन के बचे हुए दो महीने के लिए निर्यातकों को केवल डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ फॉरेन ट्रेड (डीजीएफटी) के साथ पंजीकरण कराना होगा। सरकार ने पिछले साल अक्टूबर में कीमतों में अवरोध को चेक करने और घऱेलू टेक्सटाइल बाजार के लिए कच्चे माल की उपलब्धता को सुनिश्चित करने के लिए कपास निर्यात की सीमा 55 लाख बेल्स तय कर दी थी।
गुजरात में सबसे ज्यादा बिकने वाली श्रेणी शंकर-6 की कीमतें प्रति कैंडी 3200 रुपये की वृद्धि के साथ 35,500 रुपये प्रति कैंडी पर आ चुकी है। आने वाले दिनों में महाराष्ट्र में अच्छी गुणवत्ता वाले कपास का भाव 33000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर को छू सकता है। कॉटन एडवाइजरी बोर्ड की मानें तो औद्योगिक मांग में कमी की वजह से वर्तमान सीजन के अंत में करीब 52.5 लाख बेल्स कपास की अतिरिक्त उपलब्धता होगी। वर्तमान मौसम कपास की खेती के अनुकूल है। सभी कपास उत्पादन करने वाले राज्यों में आवक में अच्छी वृद्धि हुई है। पिछले साल की 295.00 लाख बेल्स की तुलना में 5 अगस्त 2011 को 325.81 लाख बेल्स आवक (2010-11) दर्ज की गई।
आउटलुक
दुनिया के सबसे बड़ा कपास आयातक देश चीन में मांग में कमी आने की वजह से इसके वैश्विक कीमतों में नरमी छाई हुई है। इसके अलावा ग्राहकों का ऊंची कीमतों की वजह से इसके विकल्प के रूप में पॉलियस्टर के इस्तेमाल किए जाने से कपास की मांग में और कमी आ गई है। कपास की कीमतों में उतार चढ़ाव से अमेरिकी उत्पादकों पर असर पडऩा लाजिमी है। इसकी वजह से अस्थाई समस्या पैदा हो सकती है। लंबी अवधि में चीनी अर्थव्यवस्था में महंगाई, करेंसी मूल्यन आदि का प्रभाव इसके थोक मूल्यों पर पड़ेगा। विकसित अर्थव्यवस्थओं सहित असल इस्तेमालकर्ताओं के पारंपरिक बाजारों में इस उत्पाद को लेकर कमजोरी बनी हुई है तथा आने वाले महीने में भी खुदरा बाजार में वस्त्रों की कीमतों में बढ़ोतरी के मद्देनजर उपभोक्ताओं की प्रतिक्रिया पर संदेह बना हुआ है। भारत सरकार ने 2 अगस्त 2011 को कपास के निर्यात पर से रोक हटा ली है, इससे बाजार के सेंटीमेंट पर कुछ सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। (Mani Manter)

कॉटन निर्यात जारी रखने की होगी समीक्षा


अक्टूबर में अगले सीजन से पहले उत्पादन अनुमान पर चर्चा होगी: वस्त्र सचिववस्त्र मंत्रालय ने कहा है कि अक्टूबर में नए कॉटन सीजन की शुरूआत से पहले वह कॉटन निर्यात ओपन जनरल लाइसेंस (ओजीएल) के तहत जारी रखने के मसले पर घरेलू उत्पादन और खपत की समीक्षा की जाएगी। अगले सीजन में कॉटन निर्यात के कोटा निर्धारण या ओजीएल में निर्यात के बारे में पूछे गए सवाल पर वस्त्र सचिव रीता मेनन ने यह जवाब दिया है।
यहां आयोजित तीज के रंग प्रदर्शन में आई मेनन ने संवाददाताओं को बताया कि सितंबर में कपास की बुवाई पूरी होने के बाद हम इस मसले पर विचार करेंगे। उन्होंने कहा कि अगले सीजन में कॉटन का उत्पादन चालू सीजन के मुकाबले बेहतर रहने की संभावना है। हालांकि कपास की बुवाई का रकबा कम रहता है तो कॉटन निर्यात पर मात्रात्मक प्रतिबंध लगाने पर सरकार विचार करेगी।
गौरतलब है कि पिछले 31 जुलाई को चालू सीजन की बाकी अवधि के लिए कॉटन निर्यात पर मात्रात्मक प्रतिबंध हटा दिया था और ओजीएल में निर्यात करने की अनुमति दे दी थी।
वाणिज्य सचिव राहुल खुल्लर ने कहा है कि अगस्त और सितंबर में कॉटन का निर्यात ओजीएल के तहत किया जा सकता है। निर्यातकों को विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) के कार्यालय में सौदों का पंजीयन कराना होगा। देश में कॉटन का सीजन अक्टूबर से सितंबर तक चलता है।
पिछले साल अक्टूबर में नया सीजन शुरू होने पर सरकार ने 55 लाख गांठ (प्रति गांठ 170 किलो) कॉटन निर्यात का कोटा जारी किया था। पिछले जून में कॉटन के दाम गिरने पर सरकार ने १० लाख गांठ का अतिरिक्त निर्यात कोटा जारी किया था। इसके बावजूद कॉटन के मूल्य में गिरावट जारी रही। पिछले मार्च में कॉटन के भाव 62,500 रुपये प्रति कैंडी (प्रति कैंडी 356 किलो) के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गए थे।
जबकि इन दिनों भाव गिरकर 31,000 रुपये प्रति कैंडी के स्तर पर रह गए हैं। कॉटन एडवायजरी बोर्ड के अनुमान के अनुसार घरेलू औद्योगिक मांग कमजोर रहने के कारण चालू सीजन की समाप्ति पर 52.5 लाख गांठ कॉटन का बकाया स्टॉक रह सकता है। पिछले फरवरी में बोर्ड ने चालू सीजन का बकाया स्टॉक 27.5 लाख गांठ बचने का अनुमान लगाया था।
इसी तरह कॉटन की घरेलू खपत 265 लाख गांठ के पिछले अनुमान के मुकाबले 236 लाख गांठ रहने की संभावना है। चालू सीजन में उत्पादन 325 लाख गांठ रहने का अनुमान है। (Business Bhaskar)

कमोडिटी एक्सचेंज कारोबार 58% बढ़ा


चालू वित्त वर्ष में 15 जुलाई तक देश के सभी कमोडिटी एक्सचेंजों का कारोबार पिछले साल की समान अवधि के मुकाबले करीब 58% बढ़ गया। अप्रैल से 15 जुलाई तक एक्सचेंजों में कुल 45,34,234 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया। फॉरवर्ड मार्केट कमीशन (एफएमस) ने कहा है कि सोना व चांदी के अलावा एग्री कमोडिटी में कारोबार बढऩे के कारण एक्सचेंजों में कुल कारोबार तेजी से बढ़ा है।
एफएमसी के वक्तव्य के अनुसार पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में एक्सचेंजों का कुल कारोबार 28,71,202 करोड़ रुपये रहा था। सोना, चांदी, सोया तेल, ग्वार सीड, क्रूड ऑयल और अन्य बेसमेटल्स के वायदा कारोबार में खासी तेजी दर्ज की गई। एफएमसी के आंकड़ों के मुताबिक आलोच्य अवधि में बुलियन का वायदा कारोबार बढ़कर लगभग दोगुना हो गया। इस दौरान 26,02,476 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया।
पिछले साल इस अवधि में 13,17,449 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था। एग्री कमोडिटीज का कारोबार अप्रैल से 15 जुलाई के बीच 58.20 फीसदी बढ़कर 4,75,555 करोड़ रुपये हो गया। पिछले साल इस अवधि में 300,603 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था।
एनर्जी वर्ग में कारोबार 36 बढ़कर 7,09,622 करोड़ रुपये हो गया जबकि पिछले साल इस दौरान 5,22,190 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था। कॉपर व अन्य मेटल्स में कारोबार दो फीसदी बढ़कर 7,46,581 करोड़ रुपये हो गया। पिछले साल इस अवधि में 7,30,949 करोड़ रुपये का कारोबार किया गया था। जुलाई में 1 से 15 के बीच देश के एक्सचेंजों में एमसीएक्स में सबसे ज्यादा कारोबार हुआ। इसमें 6,10,437 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। इस दौरान एनसीडीईएक्स में 82,043 करोड़, आईसीईएक्स में 8,297 करोड़, एसीई डेरिवेटिव्स एंड कमोडिटी एक्सचेंज में 6,440 करोड़ और एनएमसीई में 4,665 करोड़ रुपये का कारोबार हुआ। इस समय देश में पांच राष्ट्रीय एक्सचेंज और 18 क्षेत्रीय एक्सचेंज काम कर रहे हैं। (Business Bhaskar)

23 अगस्त 2011

टायर कार्टेलाइजेशन पर सीसीआई में सुनवाई आज

आर.एस. राणा नई दिल्ली नई दिल्ली
टायर निर्माता कंपनियों के खिलाफ लगाए गए कार्टलाइजेशन के आरोपो पर भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) में मंगलवार को सुनवाई होनी है। ऑल इंडिया टायर डीलर फेडरेशन ने देश की पांच बड़ी टायर निर्माता कंपनियों पर गुटबंदी करके टायरों के दाम बढ़ाने का आरोप लगाया था। सूत्रों के अनुसार, मंगलवार को इस पर फैसला आने की संभावना है। इस मसले पर इससे पहले 12 जुलाई को सीसीआई के सामने सुनवाई हुई थी। टायर निर्माताओं के साथ ही इनसें जुड़ी संस्था ऑटोमेटिव टायर मैन्यूफैक्चर्स एसोसिएशन (एटीएमए) ने जरुरी दस्तावेज जमा कराने के लिए सीसीआई से एक महीने का समय मांगा था जिसे आयोग ने स्वीकार कर लिया था। सीसीआई ने टायर निर्माताओं को 12 अगस्त तक जरुरी दस्तावेज जमा कराने का समय दिया था तथा सुनवाई की अगली तारीख 23 अगस्त तय की थी। पांच बड़े टायर निर्माताओं अपोलो, जे के टायर, सीएट, एमआरएफ और बिरला टायर पर ऑल इंडिया टायर डीलर फैडरेशन ने कार्टलाइजेशन करके दाम बढ़ाने का आरोप लगाया था। उद्योग सूत्रों के अनुसार, बड़े टायर निर्माताओं का टायर बाजार पर एकाधिकार है। ऐसे में बड़े टायर निर्माता गठजोड़ करके कीमतों में बढ़ोतरी कर देते हैं। लेकिन उपभोक्ता इसके खिलाफ आवाज नहीं उठा पाते हैं। इसीलिए ऑल इंडिया टायर डीलर फैडरेशन ने 2006-07 में इसके खिलाफ आवाज उठाई थी। इसके बाद से लगातार जांच चल रही है। फरवरी 2010 के बाद से मामला सीसीआई के पास है। सीसीआई ने डायरेक्टर जरनल इनवेंस्टीगेशन (डीडीजी) से इसकी जांच करवाई थी। जांच करने के बाद डीडीजी ने 25 मई को बड़े टायर निर्माताओं के खिलाफ चार्जशीट दाखिल कर दी है। सूत्रों के अनुसार, पिछले पांच महीनों में घरेलू बाजार में नैचुरल रबर की कीमतों में 17.5 फीसदी की गिरावट आ चुकी है। कोट्टायम में सोमवार को नैचुरल रबर के दाम घटकर 191 से 198 रुपये प्रति किलो रह गए जबकि अप्रैल में भाव ऊपर में 238-240 रुपये प्रति किलो थे। उधर, अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी इस दौरान नैचुरल रबर की कीमतों में 20 फीसदी से अधिक की गिरावट आ चुकी है। इसके उलट, टायर निर्माता कंपनियों ने टायर की कीमतों में इस दौरान बढ़ोतरी ही की है। (Business Bhaskar....R S Rana)

पूर्वोत्तर राज्यों में अनाज खरीद के लिए नई नीति

बिजनेस भास्कर नई दिल्ली

पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही बिहार, पश्चिम बंगाल, झारखंड तथा उड़ीसा के लिए सरकार खाद्यान्न की खरीद और भंडारण के लिए नई नीति बनाएगी। इससे इन राज्यों के किसानों को अपनी फसलों का वाजिब दाम मिल सकेगा। भंडारण की सुविधा होने से खाद्यान्न की बर्बादी में भी कमी आएगी। साथ ही प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के लिए अधिक खाद्यान्न की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकेगा।
खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि उत्तर भारत के राज्यों की तरह ही पूर्वोत्तर भारत के राज्यों असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम, नगालैंड, मिजोरम, मेघालय, त्रिपुर के साथ ही बिहार, झारखंड, पश्चिमी बंगाल तथा उड़ीसा में खाद्यान्न की न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर खरीद करने के साथ ही भंडारण के लिए नई नीति बनाई जाएगी। इससे प्रस्तावित खाद्य सुरक्षा बिल के लिए ज्यादा खाद्यान्न की आवश्यकता को भी पूरा किया जा सकेगा।
खाद्य मंत्रालय नई नीति की रूपरेखा बनाएगा तथा इसमें कृषि मंत्रालय भी सहयोग करेगा। उन्होंने बताया कि इन राज्यों में खाद्यान्न की सरकारी खरीद की समुचित व्यवस्था नहीं होने के कारण कई बार किसानों को औने-पौने दाम पर अपनी फसल बेचने को मजबूर होना पड़ता है। उन्होंने बताया कि खाद्यान्न की सरकारी खरीद में उत्तर भारत के राज्यों की हिस्सेदारी 85 से 90 प्रतिशत है।
जबकि पूर्वोत्तर राज्यों के साथ ही बिहार, पश्चिमी बंगाल, झारखंड और उड़ीसा से एमएएपी पर धान, गेहूं और मोटे अनाजों की खरीद सीमित मात्रा ही हो पाती है। इसलिए इन राज्यों में खाद्यान्न की सरकारी खरीद को बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचा तैयार किया जाएगा।
जिससे इन राज्यों के किसान भी अपनी उपज को सरकारी खरीद केंद्रों पर बेच सकेंगे। उन्होंने बताया कि भंडारण क्षमता बढ़ाने के लिए पूर्वोत्तर राज्यों में नए गोदाम बनाए जाएंगे। ताकि पूर्वोत्तर राज्यों में तीन-चार महीनों की खपत का खाद्यान्न भंडार किया जा सके। इससे भंडारण के अभाव में खराब होने वाले अनाजों की मात्रा में कमी आएगी। साथ ही उत्तर भारत के राज्यों पर भंडारण का दबाव भी कम होगा। (Business Bhaskar...R S Rana)

22 अगस्त 2011

ज्वैलर्स हल्के गहनों पर लगाएंगे दांव

बिजनेस भास्कर नई दिल्लीसोने की कीमतों में आई रिकार्ड तेजी से निपटने के लिए ज्वैलर्स त्योहारी सीजन में ग्राहकों को लुभाने के लिए हल्के वजन और ऑफर का सहारा लेंगे। इसके साथ ही मेकिंग जार्च में कमी करके भी बिक्री बढ़ाने की योजना है। नवरात्रों से शुरू होने वाला ऑफर सीजन दशहरा और दिवाली तक चलने की संभावना है।गीताजंलि ग्रुप की जीएम मार्केटिंग शारदा उनियाल ने बताया कि सोने की ऊंची कीमतों से निपटने के लिए हल्के वजन के गहनों पर जोर दे रहे हैं। इसके साथ ही त्योहारी सीजन में ऑफर का भी सहारा लेंगे। मेकिंग चार्ज में कमी करके भी ग्राहकों पर ऊंची कीमतों का बोझ कुछ हद तक कम किया जायेगा। हालांकि मेकिंग चार्ज में कमी करने से कंपनी के मार्जिन पर असर पड़ेगा लेकिन बिक्री बढ़ाकर उसकी भरपाई करने की योजना है। उन्होंने बताया कि नवरात्रों से ही ऑफर का सीजन शुरू हो जायेगा। तनिष्क के वाइस प्रेसिडेंट रिटेल एंड मार्किटिंग संदीप कुलहाली ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में दाम बढऩे से घरेलू बाजार में सोने की कीमतें बढ़ी हैं। इससे गहनों की बिक्री में भारी गिरावट आई है। सितंबर महीने से त्योहारी सीजन शुरू हो जायेगा इसके लिए कंपनी ने रणनीति बनानी शुरू कर दी है। ऊंची कीमतों से निपटने के लिए ग्राहकों के लिए अगले महीने स्कीम लाने की योजना है। डायमंड के गहनों पर इस समय 20 फीसदी तक छूट का ऑफर चल रहा है। पीसी ज्वैलर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर बलराम गर्ग ने बताया कि हम हल्के वजन के गहने बनाने पर जोर दे रहे हैं। इसके अलावा नवरात्रों के साथ ही दुर्गा पूजा के लिए अलग से स्कीम लाई जायेगी। मेकिंग जार्च में कमी करके भी बिक्री बढ़ाने की कंपनी की योजना है। दिल्ली बुलियन वैलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष वी के गोयल ने बताया कि गहनों की बिक्री का सीजन सितंबर महीने से शुरू होता है। सोने की कीमतों में चालू महीने में असाधारण तेजी आई है। लेकिन उम्मीद है कि सितंबर तक कीमतों में स्थिरता आ जायेगी। ऊंची कीमतों के कारण हल्के वजन के गहनों की बिक्री ज्यादा होगी। इसीलिए हल्के वजन के गहनों के आर्डर ज्यादा आ रहे हैं। दिल्ली सराफा बाजार में 19 अगस्त को सोने का भाव बढ़कर 28,250 रुपये प्रति दस ग्राम के रिकार्ड स्तर पर पहुंच गया। चालू महीने में ही इसकी कीमतों में 4,560 रुपये प्रति दस ग्राम की तेजी आ चुकी है। दो अगस्त को सोने का भाव 23,690 रुपये प्रति दस ग्राम था। अंतरराष्ट्रीय बाजार में इस दौरान सोने की कीमतों में 14.1 फीसदी की तेजी आकर भाव 1,866 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर पहुंच गए। (Business Bhaskar...R S Rana)

सोना आयात एक हजार टन के पार होने की संभावना


सोने की कीमतें आसमान छू रहीं हैं। इसके बावजूद सोने का देश में आयात चालू साल में 1,000 टन का आंकड़ा पार कर जा सकता है। विश्लेषकों की राय है कि इस साल सोने के निवेश में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी होने की वजह से इसके आयात में बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग घटने के बाद यूरो क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए नया खतरा उत्पन्न होने से सोना में गजब की तेजी आ रही है।
चालू महीने में अब तक पीले धातु में 14 फीसदी की तेजी आ चुकी है। इस समय निवेशक शेयरों में निवेश से दूरी बना रहे हैं जबकि सोने में निवेश को बहुत सुरक्षित मान रहे हैं। पिछली बार वर्ष 1999 में एक महीने में सोने में 14 फीसदी तक की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। ब्रोकरेज कंपनी माया आयरन ओर्स के उपाध्यक्ष प्रवीण कुमार ने कहा कि घरेलू बाजार में सोना वायदा 28,150 रुपये प्रति 10 ग्राम पर शीर्ष पर पहुंच चुका है जबकि वैश्विक बाजार में बीते शुक्रवार को सोना 1,877 डॉलर प्रति औंस तक पहुंच गया। घरेलू बाजार में सोना एक दिन में 1,310 रुपये प्रति दस ग्राम बढ़ा।
उन्होंने कहा कि देश का गोल्ड ईटीएफ निवेश 15 टन तक पहुंच चुका है और एक साल में इसमें निवेश बढ़कर दोगुना हो जाएगा। कुमार ने कहा कि हालांकि बाजार में सोना के जेवर बनाने के खर्च में बढ़ोतरी की वजह से गोल्ड ज्वैलरी की मांग में कमी आई है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल (डब्ल्यूजीसी) द्वारा जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार भारत सोने का सबसे बड़ा उपभोक्ता देश है और वर्ष 2010 में 958 टन का आयात किया गया था।
चालू साल के पहले छह महीने के दौरान 553 टन से ज्यादा सोने का आयात किया गया। कुमार के अनुसार, ज्वैलरी की मांग में कमी आ सकती है और बढ़ी हुई कीमत का फायदा उठाने के लिए लोग इसे बेचकर निकलना चाहेंगे। इससे ज्वैलरी बनाने की कीमत में तेजी आएगी और ज्वैलर्स के स्टॉक में कमी आएगी। (Business Bhaskar)

टायरों का उत्पादन और निर्यात बढ़ा


कोच्चि August 18, 2011
वाहनों, विशेष रूप से कारों की बिक्री में हालिया गिरावट के बावजूद टायरों के उत्पादन और निर्यात में चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में शानदार बढ़ोतरी दर्ज की गई है। संदर्भित अवधि में पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में सभी श्रेणियों के टायरों के उत्पादन में 15 फीसदी और निर्यात में 30 फीसदी वृद्धि दर्ज की गई है। वित्त वर्ष 2010-11 के दौरान उत्पादन और निर्यात, प्रत्येक की वृद्धि दर 22 फीसदी रही थी। ऑटोमोटिव टायर मैन्यूफैक्चरर्स एसोसिएशन के ताजा आंकड़ों के अनुसार, जीप श्रेणी को छोड़कर अन्य सभी श्रेणियों के टायर उत्पादन में बढ़ोतरी रही है। इस दौरान जीप, टै्रक्टर (पिछले टायर) और ट्रेलर सेगमेंट के टायरों के निर्यात में गिरावट रही है। चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में टायरों का उत्पादन 15 फीसदी बढ़कर 106 लाख इकाई रहा है, जो पिछले वित्त वर्ष की समान तिमाही में 92 लाख रहा था। सबसे ज्यादा उत्पादन वृद्धि (32 फीसदी) तिपहिया वाहनों की श्रेणी में दर्ज की गई है। संदर्भित अवधि में इस सेगमेंट के टायरों का उत्पादन 6.8 लाख रहा है, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 5.2 लाख इकाई रहा था। दूसरी सबसे ज्यादा उत्पादन वृद्धि दोपहिया और मोपेड श्रेणी में रही, इस श्रेणी की वृद्धि दर 26 फीसदी रही है। इस श्रेणी का उत्पादन 11 लाख इकाई रहा, जो पिछले वित्त वर्ष की समान अवधि में 8.9 लाख रहा था। वित्त वर्ष 2010-11 की पहली तिमाही में यात्री कार श्रेणी के टायरों का उत्पादन 20 लाख इकाई रहा था, जो बढ़कर चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में 22 लाख हो गया है। (BS Hindi)

जुलाई में कॉफी निर्यात 29 प्रतिशत बढ़ा


मुंबई August 19, 2011
देश का कॉफी निर्यात जुलाई में 29 प्रतिशत बढ़कर 28,116 टन पर पहुंच गया। बेहतर वैश्विक मांग से कॉफी निर्यात में तेजी आई है। कॉफी बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार, पिछले साल जुलाई माह में कॉफी निर्यात 21,766.70 टन रहा था। हालांकि माह दर माह आधार पर कॉफी निर्यात घटा है।
जुलाई में कॉफी निर्यात 30 प्रतिशत कम रहा है, जबकि जून में यह आंकड़ा 40,202 टन का था। कॉफी बोर्ड के एक अधिकारी ने कहा कि जुलाई माह में देश को कॉफी निर्यात से 8.03 करोड़ डॉलर की आमदनी हुई है। रुपये में यह राशि 366.03 करोड़ रुपये बैठती है। अधिकारी ने बताया कि माह के दौरान एक टन कॉफी पर प्राप्ति 1,30,185 रुपये की हुई। उद्योग विश्लेषकों ने कहा है कि कॉफी निर्यात में गिरावट आने की संभावना थी।
पिछले बकाया कम स्टाक तथा वैश्विक स्तर पर कीमतों में गिरावट से इसमें कमी आ रही है। इस साल जनवरी से मई की पांच माह की अवधि में कॉफी का निर्यात 43 प्रतिशत बढ़कर।,81,308 टन का रहा है, जो पिछले साल की इसी अवधि में।,27,160 टन रहा था। भारत मुख्य रूप से इटली, जर्मनी, बेल्जियम, रूसी संघ तथा स्पेन को कॉफी का निर्यात करता है। (BS HIndi)

महंगा हुआ सोना, तो चांदी बना निवेश का नया ठिकाना


मुंबई August 19, 2011
उच्चस्तर पर जोखिम भरा होने और महंगा होने के चलते सोने के खरीदारों को लगता है कि जल्द ही इसमें गिरावट आएगी। इस वजह से सटोरियों और हाजिर कारोबारियों को चांदी पर दांव लगाना ज्यादा सही लग रहा है। सटोरिये और हाजिर कारोबारी चांदी पर बड़ा दांव लगा रहे हैं। मुंबई के जवेरी बाजार में सोने-चांदी के कारोबारियों व आभूषण निर्माताओं ने अपनी पूरी क्षमता के साथ चांदी की बुकिंग शुरू कर दी है, लिहाजा इस धातु की कीमत आयात की लागत से 1000-2000 रुपये प्रति किलोग्राम ऊपर चली गई है। मुंबई के बाजार में शुक्रवार को सोने की कीमतें 960 रुपये प्रति 10 ग्राम की उछाल के साथ 27,750 रुपये पर पहुंच गईं जबकि चांदी की कीमतें 2255 रुपये प्रति किलोग्राम की उछाल के साथ 63,800 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं।मुंबई की अग्रणी कंपनी नकोडा बुलियन के प्रोप्राइटर ललित जगावत ने कहा - इसके कारण स्पष्ट हैं। उन्होंने कहा कि सोने में अब और प्रतिफल देने की क्षमता नहीं रह गई है। पिछले कुछ महीने से हर दूसरे दिन नई ऊंचाई पर पहुंचने वाला सोना पहले ही जेब पर भारी हो गया है, लिहाजा इसमें कभी भी गिरावट आ सकती है और कारोबारियों को नुकसान हो सकता है। उन्होंने कहा कि चांदी में अभी कम खरीदारी हुई है, लिहाजा सोने-चांदी के कारोबारी अब चांदी की तरफ जा रहे हैं।यहां के बाजार में शुरुआती कारोबार में सोना 27,950 रुपये प्रति 10 ग्राम के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया। लेकिन मुनाफावसूली के चलते सोना गिरकर 27,750 रुपये प्रति 10 ग्राम पर बंद हुआ और एक दिन पहले के मुकाबले इसमें 960 रुपये प्रति 10 ग्राम की बढ़ोतरी दर्ज की गई।इस साल 1 अप्रैल से अब तक रुपये और डॉलर के लिहाज से सोना क्रमश: 34.34 व 31.38 फीसदी बढ़ा है, खास तौर से यूरोपीय यूनियन के कर्ज संकट और अमेरिकी अर्थव्यवस्था के मंदी की तरफ बढऩे के खतरे के चलते ऐसा हुआ है।लंदन के हाजिर बाजार में सोना 1877 डॉलर प्रति आउंस के नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया क्योंकि लगातार दूसरे दिन शेयर बाजार में हुए नुकसान के चलते निवेशकों ने यहां खरादारी की। अमेरिकी सोना वायदा शुक्रवार को 2 फीसदी की उछाल के साथ 1880 डॉलर प्रति आउंस के रिकॉर्ड पर पहुंच गया क्योंकि निवेशकों ने कीमती धातुओं की खरीदारी की। शेयर बाजार में हुए नुकसान की भरपाई करने के चलते इस स्तर पर मुनाफावसूली होने से हालांकि सोना गिरकर 1845 डॉलर पर आ गया।1 अप्रैल से अब तक चांदी ने 11.45 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की है। शुक्रवार को लंदन हाजिर बाजार में चांदी 42.14 डॉलर प्रति आउंस पर पहुंच गई। मुंबई में चांदी 63,800 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गई और एक दिन पहले के मुकाबले इसमें 2255 रुपये प्रति किलोग्राम की बढ़ोतरी दर्ज की गई।आगे आने वाले त्योहारी सीजन में चांदी के उत्पादों मसलन चांदी के सिक्के व सिल्लियों की मांग के चलते कारोबारी इस धातु पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं। उन्हें लगता है कि इसमें उन्हें ज्यादा प्रतिफल मिल सकता है। जगावत ने कहा कि कारोबारियों को उम्मीद है कि चांदी की कीमतें जल्द ही 73,000 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच सकती हैं। कीमतों में गिरावट की संभावना को देखते हुए सोने-चांदी के कारोबारियों ने अनिश्चित समय के लिए सोने की ताजा खरीद से हाथ खींच लिया है। मुंबई के सिल्वर एम्पोरियम के प्रबंध निदेशक राहुल मेहता ने कहा - सामान्यत: रक्षा बंधन से एक सप्ताह पहले सोने की त्योहारी मांग शुरू हो जाती है। लेकिन इस साल ज्यादा कीमतें होने के चलते ऐसी कोई मांग नजर नहीं आई। सिल्वर एम्पोरियम चांदी के उत्पाद बेचता है। सिल्वर एम्पोरियम ने दक्षिण भारत में चार बड़े स्टोर खोलने की योजना बनाई है और इसमें कंपनी 50 करोड़ रुपये का निवेश करेगी। बढ़ती मांग को देखते हुए कंपनी अपने डिजाइनर सामान की क्षमता दोगुनी करना चाहती है। जियोजित कॉमट्रेड के मुख्य विश्लेषक आनंद जेम्स के मुताबिक, सोने में निवेश को सुरक्षित मानते हुए निवेशक यहां निवेश करेंगे और इससे सोने की कीमतें नई ऊंचाई पर पहुंच जाएगी। यूरो में सोने की कीमतें यूरो जोन के कर्ज संकट के साथ-साथ अमेरिकी अर्थव्यवस्था में गिरावट के देखते हुए अब तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गईं। (Bs HIndi)

भारत-चीन में बढ़ेगा हीरे का कारोबार


कोलकाता August 19, 2011
अगले कुछ सालों में हीरे के वैश्विक आभूषण बाजार में भारत और चीन की संयुक्त हिस्सेदारी मौजूदा 15 फीसदी से बढ़कर 20 फीसदी पर पहुंच जाएगी। कच्चे हीरे के सबसे बड़े वैश्विक उत्पादक डी बीयर्स ग्रुप ने यह अनुमान व्यक्त किया है।फॉरएवरमार्क की प्रबंध निदेशक बिनीता कूपर ने कहा - भारत और चीन के बाजार तेजी से विकसित हो रहे हैं। हीरे के वैश्विक बाजार में 7 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाला भारतीय बाजार 30 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ रहा है। अच्छी परिवर्तित दरों की पृष्ठभूमि में यह बढ़त आगे भी जारी रहेगी। फॉरईवर मार्क डी बीयर्स का इकलौता ब्रांड है।क्रिसिल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, भारत और चीन की आबादी तेजी से हीरे का ग्राहक बन रही है, खासतौर से इस तथ्य को देखते हुए कि दोनों ही देशों के बाजार मोटे तौर पर 25 फीसदी की रफ्तार से आगे बढ़ रहे हैं। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि महंगाई के बावजूद कच्चा हीरे व प्रसंस्कृत हीरे, दोनों ही क्षेत्र में बढ़त दर्ज की जा रही है।फॉरएवरमार्क एक ऐसा ब्रांड है जो डीटीसी (डी बीयर्स का सेलिंग आर्म) का हिस्सा है और भारत में यह ब्रांड फॉरएवरमार्क इंडिया के तहत है। इसके प्रबंध निदेशक ने कहा कि कंपनी अगले कुछ सालों में कुल कारोबार का 20 फीसदी भारत और चीन के बाजारों से होने की उम्मीद कर रही है। कूपर ने कहा कि 'अगले कुछ वर्षों में हम बाजार में नेतृत्वकर्ता की स्थिति प्राप्त करना चाहते हैं और इसमें उभरते हुए बाजारों जैसे भारत और चीन की प्रमुख भूमिका रहेगी। हमारी रणनीति साझेदारों के साथ मिलकर काम करने की होगी। हमारे वर्तमान स्टोरों की संख्या 30 है, जिसे बढ़ाकर 45 करने की योजना है।सोने के महंगा होने से हीरे का रुख करने वालों की बढ़ रही है संख्या सोने की कीमतें वैश्विक रूप से लगातार बढ़ रही हैं, इसके कारण ज्यादा से ज्यादा लोग हीरे को इसका विकल्प देख रहे हैं। भारत में हीरे की खरीदारी में कन्जर्वजन रेट 30 तक जा चुकी है, जिनमें से 18 फीसदी पहली बार हीरे खरीदने वाले हैं। कोलकाता स्थित आभूषण की दुकान सावनसुख ज्वैलर्स के सीईओ सिद्धार्थ सावनसुख ने कहा कि 'हीरे के बाजार में तेजी का रुख बना हुआ है। इसके प्रमुख कारण आकांक्षी मध्यम वर्ग में बढ़ोतरी होना है। वहीं दूसरा कारण यह है कि लोग हीरे को निवेश का एक प्रमुख विकल्प मानने लगे हैं।सावनसुख और कूपर दोनों का ही कहना है कि महंगाई की वजह से त्योहारी सीजन में हीरों की खरीदारी पर कोई असर नहीं पड़ेगा। सावनसुख ने कहा कि 'सालाना कारोबार की 35 फीसदी से अधिक आमदनी त्योहारी सीजन से आती है। मैं नहीं मानता हूं कि महंगाई से खरीदारी में गिरावट आएगी। हमें पहले की तरह इस साल भी अच्छा सीजन रहने की उम्मीद है। (BS Hindi)

कॉफी उत्पादन के अनुमान पर मतभेद


बेंगलुरु August 19, 2011
कॉफी बोर्ड ने अक्टूबर से शुरू हो रहे फसल वर्ष 2011-12 में 3,22,000 टन कॉफी उत्पादन का अनुमान लगाया है, जिसे हासिल करना असंभव नजर आ रहा है, क्योंकि लगातार दो वर्षों तक रोबस्टा कॉफी का बंपर उत्पादन होना संभव नहीं है।कर्नाटक प्लांटर्स एसोसिएशन (केपीए) के चेयरमैन सहदेव बालाकृष्णन ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि 'पिछले साल रोबस्टा कॉफी का बंपर उत्पादन हुआ था, जिसके कारण पिछले अनुभवों के आधार पर हम निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि इस साल भी रोबस्टा कॉफी का बंपर उत्पादन संभव नहीं होगा। ऐसा लगता है कि कॉफी बोर्ड इस साल रोबस्टा के उत्पादन अनुमानों के प्रति थोड़ा ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गया है। अगर इस साल नए बागानों से आवक नहीं होती है तो रोबस्टा के बंपर उत्पादन की उम्मीद नहीं कर सकते।हालांकि केपीए कॉफी बोर्ड के साथ इस बात पर सहमत है कि चालू वर्ष में अरेबिका कॉफी के उत्पादन में 10 फीसदी बढ़ोतरी रहेगी। यह बोर्ड के साथ इस साल रोबस्टा के उत्पादन अनुमान पर सहमत नहीं है। केपीए 2010-11 के उत्पादन अनुमान के संबंध में भी बोर्ड से सहमत नहीं है। केपीए के अनुसार पिछले साल अरेबिका का उत्पादन 85,000 टन और रोबस्टा का उत्पादन 2,05,000 टन हुआ। जबकि कॉफी बोर्ड ने 2010-11 अंतिम अनुमानों में 3,02,000 टन कॉफी उत्पादन का अनुमान लगाया है, जिसमें अरेबिका और रोबस्टा का हिस्सा क्रमश: 95,000 टन और 2,07,000 टन रहा।कॉफी बोर्ड ने 2011-12 में 1,05,000 टन अरेबिका के उत्पादन का अनुमान लगाया है, जो 2010-11 के उत्पादन से 10.5 फीसदी अधिक है। बोर्ड ने अनुमान लगाया है कि चालू वर्ष में रोबस्टा का उत्पादन 2,17,000 टन रहेगा, जो पिछले साल से 4.8 फीसदी अधिक है। वहीं वर्ष 2011-12 में कॉफी का कुल उत्पादन 6.62 फीसदी बढ़कर 3,22,000 टन रहने का अनुमान है। बालाकृष्णन ने कहा कि हालांकि केपीए ने 2011-12 में अरेबिका का उत्पादन 95,000 टन रहने का अनुमान लगाया है, जो पिछले साल के उत्पादन से 11.7 फीसदी अधिक है। इसने अनुमान है कि रोबस्टा का उत्पादन पिछले वर्ष के स्तर के आसपास ही रहेगा अथवा 10 फीसदी घट सकता है। उन्होंने कहा कि 'कॉफी बोर्ड चालू वर्ष के अपने अनुमानों में थोड़ा ज्यादा महत्वाकांक्षी हो गया है। जब तक अरेबिका से स्थानांतरित हुए रोबस्टा के रकबे का उत्पादन बाजार में नहीं आता है, तब तक हम लगातार दो वर्षों तक बंपर उत्पादन की उम्मीद नहीं कर सकते।उन्होंने कहा कि व्हाइट स्टेम बोरर कीटनाशक की वजह से वर्ष 2000-2005 के बीच बहुत से उत्पादकों ने अरेबिका के स्थान पर रोबस्टा कॉफी के बागान लगाए हैं। हालांकि रोबस्टा कॉफी के रकबे में विस्तार के कोई आधिकारिक आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। बालाकृष्णन ने कहा कि इस साल 5-10 हजार अतिरिक्त रोबस्टा कॉफी बाजार में आ सकती है। उन्होंने कहा कि 'इस साल कर्नाटक में बंपर उत्पादन की राह में कई समस्याएं हैं। उत्पादकों को बिजली और सिंचाई सुविधाओं जैसी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है, जो उत्पादन वृद्धि की राह में रोड़ा साबित होंगी (Bs Hindi)

कृषि उपज के विपणन के लिए नियामक बनाएं राज्य


मुंबई August 21, 2011
कृषि मंत्रालय ने बिना एपीएमसी अधिनियम वाले राज्यों से कृषि विपणन गतिविधियों की निगरानी के लिए राज्य स्तर पर नियामकीय ढांचा स्थापित करने के लिए कहा है। फिलहाल छह राज्य हैं, जिनमें कोई एपीएमसी अधिनियम नहीं है। इन राज्यों में बिहार, केरल, दमन व दीव, लक्षद्वीप, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, मणिपुर और दादर व नागर हवेली शामिल हैं। एपीएमसी- कृषि उपज विपणन अधिनियम 2003 में संशोधन 2006 में किया गया है, इसमें फलों, सब्जियों, पशुओं आदि की खरीद-फरोख्त के लिए बुनियादी आधार तैयार करने का प्रावधान किया गया है। वरिष्ठ अधिकारियों ने कहा कि 'हालांकि अत्यधिक सरकारी नियंत्रण से भी कृषि उपजों का प्रभावी विपणन हतोत्साहित होता है, लेकिन इन राज्यों की तरह पूरी तरह से निजीकरण करने से भी कीमतों में विकृति आ रही है और ग्राहकों को कम कीमत पर उत्पाद नहीं मिल रहे हैं। उन्होंने कहा कि उचित अध्ययन से यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इन राज्यों में कृषि उपजों के विपणन की स्थिति बहुत खराब है। अधिकारी ने कहा कि 'एपीएमसी बाजार के मामले में सभी को अपना उत्पाद बेचने का अधिकार है और किसी तरह का शुल्क देने की जरूरत नहीं होती है। केवल ग्राहकों से वसूली जाने वाली कीमत की निगरानी रखी जाती है। अधिकारी ने कहा कि इसके अलावा पूरा लाभ मार्केटर्स द्वारा हड़प लिया जाता है और इसके कारण ही बाजार परिसरों में न तो पशुओं के लिए और न ही किसानों के लिए एपीएमसी बाजारों जैसा बुनियादी ढांचा होता है। इसलिए हमने इन राज्यों से अपने राज्यों में कृषि उपज के विणणन के लिए कोई नियामक बनाने या ढांचा तैयार करने का आग्रह किया है। साल 2006 तक बिहार में एपीएमसी अधिनियम था और इसके बाद राज्य ने अधिनियम को निरस्त कर कृषि विपणन ढांचे का पूरी तरह से निजीकरण कर दिया था। अधिकारियों ने कहा कि एशियाई विकास बैंक ने जापान के लिए तैयार अपनी रिपोर्ट में इन चीजों का जिक्र किया है, जो बिहार व महाराष्ट्र के छोटे किसानों में सुधार लाने और बाजार तक पहुंच आसान बनाने के लिए कोष मुहैया कराने का इच्छुक है। राज्यों के लिए सामाजिक आर्थिक विश्लेषण व रणनीति पर की गई स्टडी में रिपोर्ट में कर्ज व बुनियादी ढांचे का अभाव और गुणवत्ता वाली सामग्री के अभाव बताया है। साथ ही अपने उत्पाद के विपणन के लिए बाजार की सही सूचना भी किसानों तक नहीं पहुंच पाती है।एपीएमसी अधिनियम कृषि उत्पादों के विपणन को राज्य का विषय बताता है, लिहाजा ऐसे उत्पादों का विपणन सरकार द्वारा मंजूर बाजार ढांचे के जरिए होता है। संशोधन के बाद अधिनियम ने बाजार के बुनियादी ढांचे में निजी निवेश को सुलभ बनाया है ताकि किसानों को विपणन के वैकल्पिक मौके उपलब्ध हों और विचौलिये की लागत में कमी आए। 20 से ज्यादा राज्यों ने अब तक एपीएमसी अधिनियम को संशोधित कर लिया है। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने तय किया है कि बाजार के बुनियादी ढांचे तैयार करने में वैसे राज्यों को मदद दी जाएगी जो बाजार शुल्क माफ कर देंगे और किसानों को उपभोक्ताओं, प्रसंस्करण इकाइयों, थोक खरीदार, कोल्ड स्टोरेज की सुविधा देने वालों के साथ सीधे विपणन की अनुमति देंगे। (BS Hindi)

काजू के अमेरिकी निर्यात में गिरावट


बेंगलुरु August 21, 2011
पिछले चार साल से भारत से अमेरिका को होने वाले कच्चे काजू का निर्यात लगातार घट रहा है। इस अवधि में वियतनाम के अग्रणी निर्यातक के तौर पर उभरने, देश में कच्चे काजू की किल्लत और घरेलू बाजार में बढ़ती खपत अमेरिकी निर्यात में गिरावट की प्रमुख कारण हैं।साल 2007-08 में भारत से 42,694 टन कच्चे काजू का निर्यात अमेरिका को हुआ था, जो साल 2010-11 में घटकर महज 30,100 टन रह गया है। निर्यात में 29.4 फीसदी की गिरावट आई है। साल 2010 में अमेरिका ने कुल 1.17 लाख टन काजू का आयात किया, जिसमें भारत की हिस्सेदारी 30,000 टन की थी। साल 2010-11 में अमेरिका ने 1.26 लाख टन काजू का आयात किया और इसमें भारत की भागीदारी 30,100 टन की रही।मुंबई की एक कंपनी एस ट्रेडिंग कंपनी के पंकज संपत ने कहा - पिछले दो साल से अमेरिका को होने वाले कच्चे काजू का निर्यात स्थिर हो गया है और इससे पहले दो साल (2007-08 और 2008-09) में इसमें भारी गिरावट आई थी। इस अवधि में वियतनाम ने भारत की जगह ले ली और अमेरिका का मुख्य आपूर्तिकर्ता देश बन गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि वियतनाम ने कम कीमत पर काजू की पेशकश की। भारतीय निर्यातकों ने पिछले कुछ सालों में जापान और पश्चिम एशियाई देशों में अपना कारोबार बढ़ाया है।डॉलर के मुकाबले रुपये में बढ़त के चलते कीमत के मामले में भारतीय काजू निर्यातको की वसूली में कमी आई है। साल 2007-08 में 838 करोड़ रुपये की वसूली के मुकाबले निर्यातकों को साल 2009-10 में 806 करोड़ रुपये हासिल किया। अमेरिका को होने वाले निर्यात में कमी वित्त वर्ष 2011-12 में भी जारी रहने की संभावना है। इस वित्त वर्ष के पहले चार महीने के निर्यात आंकड़े के मुताबिक, अमेरिका ने करीब 7000 टन कच्चे काजू का आयात किया और इसकी कीमत करीब 275 करोड़ रुपये रही।मंगलूर की निर्यातक कंपनी अचल काजू के प्रबंध निदेशक गिरिधर प्रभु ने कहा - एक समय अमेरिका कच्चे काजू का सबसे बड़ा उपभोक्ता था। हालांकि पिछले कुछ सालों में भारत ने खपत की दृष्टि से अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। वैश्विक बाजार में अपनी मौजूदगी दर्ज करने वाला निर्यातक अमेरिका को बड़े खरीदार के रूप में देखता है और वियतनाम से भी ऐसा ही किया जब उसने साल 2003 में निर्यात शुरू किया था। इसने भारत के मुकाबले कम कीमत पर माल उपलब्ध कराया और अमेरिकी बाजार पर कब्जा कर लिया। भारत में उत्पादित 2.5 लाख टन कच्चे काजू में से 1.10 लाख टन का निर्यात होता है जबकि बाकी खपत घरेलू बाजार में होती है।उन्होंने कहा कि पिछले कुछ सालों में भारत ने करीब 65 देशों को निर्यात शुरू कर दिया है। भारतीय निर्यातकों को लिए जापान व पश्चिम एशिया बड़े व महत्वपूर्ण बाजारों के तौर पर सामने आए हैं, वहीं वियतनाम सिर्फ अमेरिका को ही निर्यात करता है। अमेरिका के अलावा ऑस्ट्रेलिया भी भारत से कच्चे काजू का आयात करता था, लेकिन अब इसने भारत पर निर्भरता कम कर दी है। इसका आयात पिछले कुछ सालोंं में कुल जरूरत के 90 फीसदी से घटकर महज 10 फीसदी रह गया है।संपत ने कहा कि कच्चे काजू की उपलब्धता बढ़ाने की दरकार है। फिलहाल देश में 5 लाख टन कच्चे काजू का उत्पादन होता है जबकि यह 7 लाख टन का आयात करता है। (BS Hindi)

17 अगस्त 2011

प्लेटिनम का बढ़ता क्रेज

सोना खरीदने वाले भी कभी प्लेटिनम के नाम से सिहरन महसूस किया करते थे। इसे पहनना बड़ी शान समझा जाता था। मध्यम वर्ग के लोग तो इसके नाम से आहें भरा करते थे, लेकिन आज प्लेटिनम पहन कर मध्यम वर्ग ही फूला नहीं समा रहा है। ऐसा इसलिए संभव हुआ है क्योंकि पिछले तीन वर्षों में सोने के दाम लगातार ब़ढ़ रहे हैं और प्लेटिनम सस्ता होता जो रहा है। अब दुनिया की दोनों बेशकीमती धातुओं में दामों का अंतर बहुत कम रह गया है। इसके चलते वो लोग जो प्लेटिनम को जौहरियों को यहाँ देखकर सिर्फ आहें भरा करते थे आज उसे पहन कर फूले नहीं समा रहे हैं। शानु मेहरा बिजनेसमैन है। पिछले साल उन्होंने डेढ़ लाख की प्लेटिनम ज्वैलरी अपनी फियांस को भेंट की है। उनका कहना है कि अभी तक इस महँगी धातु के गहने केवल उच्च वर्ग के लोग ही इस्तेमाल करते थे लेकिन अब सोने और प्लेटिनम के दामों में अंतर न के बराबर होने से इसे मध्यम वर्ग के लोग भी खरीदने लगे हैं। इस धातु का प्रयोग प्रायः लोग हीरे के साथ करते थे। लेकिन अब शुद्ध प्लेटिनम के गहने देश के हर बड़े व मझोले जौहरी के यहाँ आसानी से उपलब्ध हैं। बेहतर निवेश विकल्प व युवा वर्ग में इसके आकर्षण के चलते अपने देश में प्लेटिनम से बने गहनों की खपत 15 टन तक पहुँचने की संभावना है। पिछले वित्तीय वर्ष में ये आँकड़ा 10 टन था। सोने व प्लेटिनम के दामों में अंतर का फर्क पिछले तीन वर्षों से लगातार कम होता जा रहा है। मार्च 2008 में प्लेटिनम का अंतरराष्ट्रीय भाव 2285 डॉलर प्रति औंस था और सोने का दाम 985 डॉलर प्रति औंस था, लेकिन मंदी की मार से उसी साल अक्टूबर में प्लेटिनम का दाम घटकर 752 डॉलर प्रति औंस हो गया और सोने का दाम 882 डॉलर प्रति औंस हो गया। आज प्लेटिनम की अंतरराष्ट्रीय कीमत 1578 डॉलर प्रति औंस है और सोने का 1135 डॉलर प्रति औंस। भारत में इसकी मार्केटिंग करने वाली कंपनी 'औरा' के प्रबंधकों का मानना है कि पहले अपने देश में इस धातु का प्रयोग सेल्फ कैटलिस्ट के तौर पर फोटोग्राफी में किया जाता था, लेकिन अब इसके आमू पत्ते को तरजीह मिलने लगी है। बुलियन मार्केट के विश्लेषकों को मानना है कि इसका चलन बढ़ाने के लिए इसके दामों में पारदर्शिता लानी होगी। दुकानों पर डिस्प्ले करने होंगे। अभी तक आभूषण निर्माता इसके मनमाने दाम वसूल रहे हैं। इसके अलावा चाँदी से इसकी समानता देखने में भी ग्राहकों को धोखाधड़ी का शिकार बना देती है। कभी स्टेटस सिंबल माने जाने वाला प्लेटिनम आजकल युवाओं की अँगुली और गले की शोभा बढ़ा रहा है। (Web Dunia)

वापसी को तैयार कमोडिटी

इक्विटी बाजारों में बीते कुछ वक्त से जोरदार उछाल दर्ज किया जा रहा था, लेकिन आखिरकार उसका साबका गिरावट और कंसॉलिडेशन, दोनों से हुआ। इन दिनों इक्विटी बाजारों में उठापटक का दौर देखने को मिल रहा है और मध्यम अवधि में निवेश के लिए डेट उत्पाद अनिश्चित दिख रहे हैं, ऐसे में निवेशक एक अन्य एसेट क्लास कमोडिटी की ओर देख रहे हैं। कमोडिटी में कीमती धातु, गैर-कीमती धातु, तेल एवं कृषि उत्पाद आते हैं। सोने जैसी कीमती धातु वायदा बाजार, एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) और भौतिक जैसे कई माध्यमों से खरीदी जा सकती है। बीते कुछ साल में कमोडिटी में निवेश को काफी रफ्तार मिली है, जिसके बाद कमोडिटी पर आधारित थिमेटिक म्यूचुअल फंड भी देखने को मिले।
पोर्टफोलियो में एसेट क्लास के रूप में कमोडिटी को शामिल करने से डायवर्सिफिकेशन के फायदे मिलते हैं और साथ ही निवेश को स्थिरता भी मिलती है। इनमें से एक विकल्प मेटल में निवेश करने से जुड़ा है, चाहे वह कीमती हो या साधारण। सोना कई निवेशकों के पोर्टफोलियो में जगह बनाता है, लेकिन अन्य धातुओं को कई बार कमोडिटी और वायदा बाजार के काम करने के तरीके बारे में कम जानकारी के चलते नजरअंदाज कर दिया जाता है। कीमती धातु कीमती धातुओं में सोना, चांदी और प्लेटिनम गिने जाते हैं। सोना लंबे वक्त से शीर्ष कीमती धातु मानी जाती है और यह कमोडिटी के बजाय मौद्रिक एसेट के तौर पर काम करती है। मुद्रास्फीति दर के खिलाफ प्रभावी ढाल माने जाने वाला सोना दुनिया भर में अहम बनता जा रहा है और तमाम मुल्कों के केंद्रीय बैंक डॉलर के बजाय सोने के भंडार को तरजीह देने लगे हैं, क्योंकि अमेरिकी मुद्रा का मूल्य लगातार घटता जा रहा है। चांदी को न केवल कीमती, बल्कि औद्योगिक धातु के तौर पर भी देखा जाता है। बड़ी मात्रा में चांदी औद्योगिक सेक्टरों में इस्तेमाल की जाती है, इसलिए चांदी और आर्थिक गतिविधियों का रिश्ता काफी गहरा है। मांग में ज्यादा बढ़त से आपूर्ति के मोर्चे पर कमी आती है, जिससे कीमतों में इजाफा होता है। गैर कीमती धातु फेरस और गैर-फेरस धातुओं के लिए मांग और आपूर्ति के बीच का अंतर कीमत तय करने का काम करता है। इन्हें वैल्यू बढ़ाने के लिए स्टोर नहीं किया जाता, बल्कि उद्योग के उपभोग के लिए खरीदा-बेचा जाता है। इनमें स्टील, तांबा, एल्यूमीनियम, जस्ता, लेड, टिन और निकल शामिल है। इन धातुओं की मांग बुनियादी रूप से आर्थिक गतिविधियों की रफ्तार तय करती है। मसलन, इंजीनियरिंग और कंस्ट्रक्शन के सामान में स्टील सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है। इंफ्रास्ट्रक्चर और निर्माण के मोर्चे पर हरकत तेज होने पर स्टील की मांग में काफी इजाफा आता है। घरेलू स्तर पर मांग-आपूर्ति के अलावा इन धातुओं की कीमत काफी हद तक अंतरराष्ट्रीय बाजार की स्थिति पर भी निर्भर करती है। निवेश के मोर्चे पर समझदार और चतुर तथा बाजार की पूरी जानकारी रखने वाले निवेशक के लिए कमोडिटी पोर्टफोलियो का अहम हिस्सा बन सकती हैं। दूसरों के लिए वायदा बाजार के जरिए कमोडिटी में ट्रेडिंग करना सही नहीं होगा। हालांकि, अपने पोर्टफोलियो का कुछ हिस्सा वह सोना या चांदी जैसे मेटल खरीदने में लगा सकते हैं, जिससे पोर्टफोलियो को डायवसिर्फिकेशन और स्थिरता दोनों दी जा सके। (ET Hindi)

ग्रामीण गोदाम योजना (RGS) या ग्रामीण भंडारण योजना

यह सर्वविदित तथ्य है कि छोटे किसानों के पास, बाजार भाव के अनुकूल होने तक अपनी उपज को भंडारित करने की आर्थिक क्षमता नहीं होती। ग्रामीण गोदामों का एक नेटवर्क तैयार होने से उनकी भंडारण क्षमता बढ़ जाएगी और वे अपने उत्पादों को अच्छी कीमतों पर बेच सकेंगे और उन्हें औने-पौने दामों में बेचने के दबाव से मुक्ति पा सकेंगे।
इसी को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 01.04.2001 से ‘ग्रामीण भंडारण योजना’ की शुरुआत की है।
योजना का लक्ष्य
इस योजना का मुख्य लक्ष्य है ग्रामीण क्षेत्रों में सहयोगी सुविधाओं के साथ वैज्ञानिक भंडारण प्रणाली का निर्माण करना, ताकि किसानों द्वारा अपनी कृषि उपज, प्रसंस्कृत कृषि उपज, कृषि आदानों इत्यादि को भंडारित करने की विभिन्न जरूरतों की पूर्ति की जा सके, साथ ही किसानों को बंधक ऋण तथा मार्केटिंग क्रेडिट की उपलब्धता द्वारा औने-पौने दामों पर अपने उत्पाद को बेचने की मजबूरी से मुक्ति दिलाया जा सके।
इस योजना का क्रियान्वयन 31.03.2012 तक जारी रहेगा।
प्रमुख विशेषताएं
अर्हताप्राप्त संगठन
ग्रामीण गोदामों के निर्माण की परियोजना नगर निगम, फेडरेशन, कृषि उत्पाद मार्केटिंग समिति, मार्केटिंग बोर्ड तथा ऐग्रो प्रॉसेसिंग कॉरपोरेशन के अलावा कोई व्यक्ति, किसान, किसानों/उत्पादकों के समूह, पार्टनरशिप/स्वामित्व वाले संगठन, एनजीओ, स्वयं सहायता समूह, कंपनियां, कॉरपोरेशन, सहकारी निकाय, स्थानीय निकाय संचालित कर सकते हैं। हालांकि ग्रामीण गोदामों का जीर्णोद्धार केवल सहकारी संगठन द्वारा निर्मित मौजूदा गोदामों तक ही सीमित रहेगा।
स्थान
इस योजना के अंतर्गत उद्यमी किसी भी स्थान पर अपने व्यावसायिक निर्णय द्वारा गोदाम का निर्माण कर सकता है, पर यह नगर निगम की सीमा से बाहर के क्षेत्र में ही अवस्थित होना चाहिए। इस योजना के तहत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय द्वारा बढ़ावा दिए जा रहे फूड पार्क में भी ग्रामीण गोदामों का निर्माण शामिल होगा।
आकार
गोदाम की क्षमता उद्यमी द्वारा ही निर्धारित की जाएगी। हालांकि इस योजना के तहत इसके लिए मिलने वाला अनुदान न्यूनतम 100 टन की क्षमता और अधिकतम 10,000 टन की क्षमता के लिए लागू होगा। NCDC द्वारा सहायता प्राप्त सहकारी ग्रामीण गोदाम वाली परियोजना के मामले में कोई अधिकतम अनुदान सीमा नहीं होगी।
50 टन जैसी कम क्षमता वाले ग्रामीण गोदाम भी इस स्कीम के तहत व्यावहारिकता के विश्लेषण के आधार पर अनुदान के अंतर्गत आएंगे, जो स्थलाकृति/राज्य/क्षेत्र की विशेष आवश्यकता पर निर्भर करेगा। पहाड़ी क्षेत्रों में (जहां परियोजना स्थल औसत समुद्र स्तर से 1000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित हो) 25 टन जैसी कम क्षमता वाले ग्रामीण गोदाम भी इस स्कीम के तहत अनुदान पाएंगे।
अनुदान
उत्तर-पूर्व राज्यों, पहाड़ी क्षेत्रों तथा महिला किसानों/ उनके स्वयं सहायता समूहों/ सहकारियों तथा SC/ST उद्यमियों और उनके सहायता समूहों/ सहकारियोंके गोदामों को मूल लागत का 33.33% अनुदान दिया जाएगा, जिसकी अधिकतम अनुदान सीमा Rs.62.50 लाख की होगी। NCDC द्वारा सहायता प्राप्त सहकारी ग्रामीण गोदाम वाली परियोजना की स्थिति में कोई अधिकतम अनुदान सीमा नहीं होगी।
किसानों (महिला किसानों को छोड़कर), कृषि स्नातक, सहकारी तथा राज्य/केंद्रीय वेयरहाउसिंग कॉरपोरेशन के सभी वर्गों के लिए परियोजना लागत का 25% अनुदान होगा जिसकी अधिकतम सीमा Rs. 46.87 लाख होगी। NCDC द्वारा सहायता प्राप्त सहकारी निकायों के गोदामों के लिए अनुदान की कोई अधिकतम सीमा नहीं है।
व्यक्तियों, कंपनियों तथा कॉरपोरेशन इत्यादि के सभी अन्य वर्गों के लिए मूल लागत का 15% अनुदान, जिसकी अधिकतम सीमा Rs. 28.12 लाख की होगी।
NCDC द्वारा सहायता प्राप्त गोदामों के जीर्णोद्धार के लिए मूल लागत का 25% अनुदान।
इस स्कीम के तहत अनुदान के उद्देश्य के लिए परियोजना की मूल लागत की गणना निम्नानुसार की जाएगी:
1000 टन तक क्षमता के गोदाम के लिए – वित्तीय बैंक द्वारा मूल्यांकित अथवा वास्तविक लागत या Rs 2500/- प्रति टन भंडारण क्षमता में जो भी कम हो।
1000 टन से अधिक भंडारण क्षमता वाले गोदामों के लिए– बैंक द्वारा मूल्यांकित लागत या Rs 1875/- प्रति टन भंडारण क्षमता में जो भी कम हो। हालांकि 10,000 टन की क्षमता से अधिक वाले गोदामों के लिए अनुदान केवल 10,000 टन के लिए ही उपलब्ध होगा, जो सहकारियों के लिए ऊपर दर्शाए अनुसार रियायत पर निर्भर करेगा।
NCDC से सहायता प्राप्त कोऑपरेटिव द्वारा निर्मित गोदामों के जीर्णोद्धार के लिए- बैंक/ NCDC द्वारा निर्धारित परियोजना लागत अथवा Rs.625/- प्रति टन भंडारण क्षमता, जो भी निम्न हो।

कोई लाभार्थी गोदाम परियोजना या उसके किसी घटक के लिए एक से अधिक स्रोत से अनुदान नहीं प्राप्त कर सकता।
गोदाम की क्षमता की गणना @ 0.4 M.T. प्रति क्यूबिक मीटर के हिसाब से की जाएगी। (indg)

Rural godowns with 28 MT capacity created in last 10 years

Aug 16, 2011
As many as 24,943 godowns with a capacity to store 28.43 million tonne of foodgrain have been constructed in the last 10 years in rural areas under the Grameen Bhandara Yojana, Parliament was informed today.
Grameen Bhandaran Yojana, a capital investment scheme for construction and renovation of rural godowns was introduced in 2001-2002 and has been extended for the 11th Plan Period.
Since inception of the scheme up to May 31, 2011, 24,942 godowns having a capacity of 284.31 lakh tonne "have been constructed in rural areas, Food Minister K V Thomas said in a written reply to the Lok Sabha.
He said Rs 732.23 crore worth of subsidy has been sanctioned by National Bank for Agriculture and Rural Development (NABARD) and National Cooperatives Development Corporation (NCDC).
Under the scheme, subsidy at 25% of the cost of the project is being given to farmers, agriculture graduates, cooperatives and state warehousing corporations. For individual companies and corporations, subsidy is being given at 15%, he added.
To augment storage capacity, the minister said that the government has formulated a scheme to build storage capacity of 15.27 million tonne (MT) in 19 states through private participation.
Presently, the government is grappling with storage problems as foodgrains stocks are high at 61.27 MT so far, while that covered storage is only 44 MT. The rest is kept in open areas. ( Money Cantrol .com)

दम तोड़ रही है ग्रामीण गोदाम योजना

नई दिल्ली।
खाद्यान्न की बर्बादी रोकने और किसानों को फसल का बाजार मूल्य दिलाने के उद्देश्य से शुरू की गई ग्रामीण गोदाम योजना एक दशक बीतने के बावजूद परवान नहीं चढ़ पाई है। ढांचागत सुविधाएं न होने से योजना में किसानों की भागीदारी नाममात्र ही है जबकि सब्सिडी के चलते निजी क्षेत्र इसका सर्वाधिक लाभ उठा रहा है। स्थिति यह है कि दशक बाद भी इस योजना से न ही किसान लाभान्वित हो रहे हैं और न ही यह अपने उद्देश्य पर खरी उतरी है। अधिक सब्सिडी के बावजूद इस योजना में अनुसूचित जाति एवं जनजाति की हिस्सेदारी शून्य है।1068 गोदाम बनाने का निर्धारित लक्ष्यवित्त मंत्री ने बजटीय (2011-12) चर्चा में भले ही ग्रामीण गोदाम योजना का इस वर्ष के लिए 24 लाख टन क्षमता युक्त 1068 गोदाम बनाने का निर्धारित लक्ष्य प्राप्त करने का दावा किया है। लेकिन आंकड़ों के अनुसार इस योजना में किसानों की भागीदारी सीमित है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि देश के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश में अब तक 174 गोदाम बनाए गए हैं। जिसमें किसानों ने सिर्फ 38 और किसान कंपनियों ने 14 गोदाम बनाए हैं। इसका कारण किसानों पर पूंजी का अभाव और भूमि की अधिकतम मूल्य सीमा मात्र दस फीसदी होना है। 763.19 करोड़ रुपये की सब्सिडीबात यदि सब्सिडी की हो तो केंद्र सरकार वर्ष 2001 से मार्च 2010 तक 763.19 करोड़ रुपये की राशि जारी कर चुकी है। जिसमें अधिकतम मध्यप्रदेश 117.81 करोड़, महाराष्ट्र 95.11 करोड़ रुपये, गुजरात 67.46 करोड़ और यूपी को 28.40 रुपये दिए जा चुके हैं। किसान जागृति मंच के अध्यक्ष सुधीर पवार का कहना है कि गोदामों में भंडारण का लाभ व्यापारी वर्ग ही उठा रहे हैं। किसान यदि ग्रामीण गोदामों में भंडारण करते भी हैं तो उन्हें रसीद नहीं मिलती, और यदि रसीद की व्यवस्था भी हो जाए उसके बदले उन्हें ऋण भी नहीं मिलता। बैंक यदि किसानों को भंडारित अनाज के बदले ऋण देने को तैयार होते भी हैं तो वह भी कुल भंडारित अनाज के 75 फीसदी का मूल्यांकन करते हैं और कर्ज पर 12.5 फीसदी का ब्याज वसूल करते हैं। यही कारण है कि किसान इस योजना से दूर हैं। (Amar Ujala)

11 अगस्त 2011

सरकारी गेहूं का बिक्री मूल्य घटाने का प्रस्ताव


भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) ने खुले बाजार बिक्री योजना (ओएमएसएस) में नीलामी के तहत बिक्री के लिए गेहूं का रिजर्व मूल्य घटाने का प्रस्ताव केंद्रीय खाद्य मंत्रालय को भेजा है। अगर इस प्रस्ताव को मंजूरी मिल जाती है और बिक्री मूल्य घट जाता है तो सरकारी गोदामों से गेहूं की बिक्री तेज हो जाएगी। सरकारी गेहूं का बिक्री भाव खुले बाजार के मुकाबले करीब 80-82 रुपये प्रति क्विंटल ज्यादा है।
इसलिए सरकारी गेहूं की बिक्री बहुत धीमी है। केंद्रीय पूल में खाद्यान्न का बंपर स्टॉक मौजूद है जबकि सितंबर महीने से एफसीआई को धान की खरीद शुरू करने के लिए गोदाम खाली करने की विवशता भी है।
खाद्य मंत्रालय के वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि ओएमएसएस के तहत गेहूं के बिक्री भाव घटाने का एफसीआई का प्रस्ताव आया है। प्रस्ताव में एफसीआई ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में परिवहन लागत का 50% जोड़कर बिक्री भाव तय करने की मांग की है। गेहूं का मौजूदा मूल्य खरीद लागत, सभी खर्चे और लुधियाना से परिवहन लागत जोड़कर तय किया गया है।
सरकार एफसीआई के प्रस्ताव को मान लेती है तो सरकारी गेहूं के बिक्री भाव में 60 से 70 रुपये प्रति क्विंटल की कमी आ सकती है। इसके अलावा एफसीआई ने गेहूं की बिक्री निविदा के बजाय फिक्स मूल्य पर करने की भी अनुमति मांगी है। अधिकारी के अनुसार गेहूं के मूल्य में कमी का फैसला ईजीओएम कर सकता है।
ईजीओएम की अगली बैठक में इस प्रस्ताव को रखा जाएगा। दिल्ली में एफसीआई का ओएमएसएस के तहत गेहूं का रिजर्व मूल्य 1,252.15 रुपये प्रति क्विंटल है जबकि हाजिर बाजार में गेहूं 1,165-1,170 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बिक रहा है। पिछले आठ-दस दिनों में इसकी कीमतों में करीब 30-40 रुपये प्रति क्विंटल की गिरावट आ चुकी है। उत्तर प्रदेश की मंडियों में गेहूं का भाव घटकर लूज में 1,060-1,070 रुपये प्रति क्विंटल रह गया है। जबकि चालू विपणन सीजन में केंद्र सरकार ने गेहूं की खरीद 1,170 रुपये प्रति क्विंटल (इसमें 50 रुपये प्रति क्विंटल का बोनस) के आधार पर की है। एफसीआई ने जनवरी से सितंबर के दौरान ओएमएसएस के तहत बिक्री के लिए 12.69 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था लेकिन चार अगस्त तक इसमें से केवल 6.79 लाख टन गेहूं की बिक्री हो पाई है।
इस दौरान छोटे ट्रेडर्स के लिए 1.33 लाख टन गेहूं का आवंटन किया था। लेकिन इसमें से चार अगस्त तक मात्र 31,656 टन गेहूं की ही बिक्री हुई है। केंद्रीय पूल में पहली अगस्त को खाद्यान्न का 612.98 लाख टन का स्टॉक मौजूद है। इसमें 358.75 लाख टन गेहूं और 252.71 लाख टन चावल है। सितंबर महीने से धान की सरकार खरीद शुरू होनी है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

10 अगस्त 2011

सरकार ने माना 540 टन से ज्यादा अनाज नष्ट

नई दिल्ली. इस साल जुलाई तक 540 टन से ज्यादा अनाज नष्ट हो चुका है। इसमें अकेले पश्चिम बंगाल में आधे से ज्यादा अनाज नहीं बचा। लोकसभा में लिखित जवाब में खाद्य एवं उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री केवी थॉमस ने बताया कि एक जुलाई तक देश में 541.33 टन अनाज नष्ट हुआ। इसमें 359.07 टन चावल और 182.26 टन गेहूं शामिल है। पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा 355 टन अनाज बर्बाद हुआ। शेष अनाज गुजरात (171 टन), उत्तरप्रदेश (11 टन) और आंध्र प्रदेश (4.33 टन) में नष्ट हुआ। उन्होंने बताया कि 2009-10 में 6,702 टन गेहूं और चावल नष्ट हुआ था, जबकि 2010-11 में यह आंकड़ा 6,346 टन रह गया। अनाज नष्ट होने का कारण संग्रहण की समस्या, परिवहन, तूफान, बाढ़, बारिश और कुछ मामलों में अधिकारियों की लापरवाही रही।चावल उत्पादन मामले में वैश्विक औसत से पिछड़े दुनिया में दूसरे नंबर के चावल उत्पादक भारत प्रति हेक्टेयर उत्पादन के मामले में वैश्विक औसत से काफी पीछे है। संसद में दी गई जानकारी के अनुसार 2008 में वैश्विक का औसत 4.21 टन/हेक्टेयर है, जबकि भारत में 2.17 टन/हेक्टेयर चावल उत्पादन हो रहा है। कृषि राज्यमंत्री हरीश रावत ने बताया कि इसके लिए मिट्टी की स्थिति, सिंचाई की पर्याप्त सुविधा न होना, हाइब्रिड चावल व उन्नत किस्मों का विस्तार नहीं होना एवं गैर-विवेकपूर्ण उर्वरकों का इस्तेमाल है। (Dainik Bhaskar)

09 अगस्त 2011

डॉलर की गर्मी से पिघल रही एल्युमीनियम


नई दिल्ली August 07, 2011
पिछले कुछ समय से लगातार उछल रही एल्युमीनियम की कीमतें अब नीचे आने लगी हैं। जानकारों के मुताबिक अमेरिकी संकट थमने से यूरो के मुकाबले डॉलर में मजबूती आई है, जिसका असर एल्युमीनियम पर दिख रहा है। इसके अलावा वाहन उद्योग की धीमी रफ्तार ने भी एल्युमीनियम को कुंद किया है और यह सिलसिला आगे भी जारी रह सकता है। लंदन मेटल एक्सचेंज (एलएमई) पर एल्युमीनियम का भाव पिछले 10 दिनों में 2,650 डॉलर से घटकर 2,402 डॉलर प्रति टन पर आ टिका है। इसी दौरान देसी वायदा बाजार मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज (एमसीएक्स) पर इसके अगस्त अनुबंध का भाव भी 116.45 रुपये प्रति किलोग्राम से घटकर 105.65 रुपये प्रति किलो रह गया है। धातु उद्योग के विश्लेषक बताते हैं एल्युमीनियम कारोबार के लिए संकेत फिलहाल अच्छे नहीं हैं। डॉलर में मजबूती अभी जारी रह सकती है और इस धातु की ज्यादा खपत करने वाला देश चीन ब्याज दरों में फिर इजाफा कर सकता है। ऐसे में कीमतें आगे भी नरम ही रह सकती हैं।कमोडिटीइनसाइट डॉट कॉम के धातु विश्लेषक अभिषेक शर्मा ने बिजनेस स्टैंडर्ड को बताया कि चीन, अमेरिका और भारत समेत कई देशों में वाहन उद्योग सुस्त होकर रेंगने लगा है। इससे वाहनों में इस्तेमाल के लिए एल्युमीनियम की मांग कम हो गई है। अमेरिकी घटनाक्रम ने इसका भाव और गिराया है। उनके मुताबिक 1 महीने से एल्युमीनियम का भाव मांग की वजह से नहीं बल्कि डॉलर की कमजोर सेहत की वजह से बढ़ रहा था। अब अमेरिका में बेरोजगारी के आंकड़े बढ़ गए हैं, यूरोप और एशिया के कई देशों में औद्योगिक उत्पाद गिर रहा है, जिसकी मार एल्युमीनियम पर भी पड़ रही है।ऐंजल ब्रोकिंग के अनुज गुप्ता भी इस बात से सहमत हैं। उन्होंने कहा कि एल्युमीनियम का भाव हाल में अच्छी खबरों से काफी बढ़ा है। अब मुनाफावसूली इसमें गिरावट ला रही है।शर्मा को आगे भी भाव बेहतर होने के आसार नहीं दिख रहे हैं। उनके मुताबिक बाजार पहले ही बढ़ चुका है और चीन में ब्याज दरें फिर बढऩे का खटका है। इसके अलावा वाहन उद्योग की सुस्ती भी एल्युमीनियम पर भारी पड़ रही है, इसलिए इसके भाव तेज होने की सूरत फिलहाल नजर नहीं आ रही है। (BS Hindi)

मानसून की बेरुखी से चावल उत्पादन घटने की आशंका


चालू खरीफ में चावल के रिकॉर्ड उत्पादन संबंधी केंद्र सरकार के अनुमान पर मानसून की बेरुखी का असर पडऩे की आशंका है। आधा मानूसन बीत चुका है तथा देशभर में मानसूनी बारिश सामान्य से 6 फीसदी कम हुई है लेकिन पंजाब, हरियाणा, उड़ीसा, असम और मेघालय, गुजरात तथा विदर्भ में सामान्य से 21 से 37 फीसदी तक कम बारिश हुई है। कृषि मंत्रालय ने वर्ष 2011-12 में 1,000 लाख टन से ज्यादा चावल के उत्पादन का अनुमान लगाया है।
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि अगस्त में उत्तर-पश्चिमी भारत के राज्यों में बारिश कम होने की आशंका है। जबकि गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र और पूर्वोत्तर राज्यों में अगस्त के मध्य तक अच्छी बारिश होने की संभावना है।
आईएमडी की रिपोर्ट के मुताबिक एक जून से तीन अगस्त के दौरान हरियाणा में 33 फीसदी, हिमाचल में 28 फीसदी, पंजाब में 26 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 21 फीसदी, असम और मेघालय में 33 फीसदी, उड़ीसा में 22 फीसदी, गुजरात में 37 फीसदी, विदर्भ में 21 फीसदी, बिहार में 6 फीसदी, झारखंड में 11 फीसदी और पूर्वी उत्तर प्रदेश में सात फीसदी कम बारिश हुई है। 28 जुलाई से तीन अगस्त के दौरान बारिश की कमी और ज्यादा रही है। इस दौरान हिमाचल में 73 फीसदी, जम्मू-कश्मीर में 88 फीसदी, पंजाब में 66 फीसदी, हरियाणा में 57 फीसदी सामान्य से कम बारिश हुई है।
हालांकि केंद्रीय चावल अनुसंधान संस्थान के निदेशक डॉ. टी. के. आध्या ने बताया कि उत्तर भारत के राज्यों में बारिश की कमी से पैदावार पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ेगा क्योंकि यहां सिचांई के प्रयाप्त साधन हैं। लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों में चावल की खेती पूरी तरह से बारिश पर निर्भर है इसीलिए वहां उत्पादन घट सकता है। चालू महीना चावल की फसल के लिए काफी महत्वपूर्ण है।अगर अगस्त में बारिश कम हुई हो पैदावार प्रभावित हो सकती है। भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (पूसा) के एग्रोनॉमी के डॉ. शिवधर मिश्र ने बताया कि सिचिंत क्षेत्रों में बारिश की कमी से किसानों की उत्पादन लागत बढ़ रही है। असिचिंत क्षेत्रों में प्रति हैक्टेयर पैदावार में कमी आएगी। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी बुवाई आंकड़ों के अनुसार देशभर में 260.36 लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 244.79 लाख हैक्टेयर में हुई थी।
पंजाब में 27.12 लाख हैक्टेयर में, उत्तर प्रदेश में 54.19 लाख हैक्टेयर में, छत्तीसगढ़ में 30.33 लाख हैक्टेयर में, बिहार में 19.68 लाख हैक्टेयर में, असम में 17.39 लाख हैक्टेयर में हरियाणा में 10.32 लाख हैक्टेयर में, पश्चिम बंगाल में 25.45 लाख हैक्टेयर और मध्य प्रदेश में 10.52 लाख हैक्टेयर में धान की रोपाई हो चुकी है। (Business Bhaskar....R S Rana)

सोने-चांदी में उफान, दूसरी जिंसों में नुकसान


मुंबई August 08, 2011
वैश्विक आर्थिक संकट के समय निवेशकों ने सुरक्षित ठिकाने की तलाश में सोने की खरीदारी की, लिहाजा सोना नए रिकॉर्ड पर पहुंच गया। कुछ दिन पहले एसऐंडपी ने अमेरिकी रेटिंग में कमी की है और इसके चलते संकट गहरा गया है। इसके उलट आधार धातुओं व कृषि जिंसों में गिरावट दर्ज की गई क्योंकि नुकसान की भरपाई के लिए निवेशकों ने इन क्षेत्रों से रकम निकालकर दूसरी जगह निवेश किया।लंदन के हाजिर बाजार में शुरुआती कारोबार के दौरान सोना 1715.75 डॉलर की रिकॉर्ड ऊंचाई तक पहुंच गया, लेकिन मुनाफावसूली के चलते यह गिरकर 1706.47 डॉलर प्रति आउंस पर टिका। इस तरह शुक्रवार के बंद भाव 1663.80 डॉलर प्रति आउंस के मुकाबले सोने में 2.56 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। इसके मुकाबले सोने में अपेक्षाकृत शांति नजर आई और इसका कारोबार 39.80 डॉलर प्रति आउंस पर हुआ। इस तरह इसके ठीक पहले कारोबारी सत्र के 38.55 डॉलर प्रति आउंस के मुकाबले इसमें बहुत ज्यादा बढ़ोतरी नहीं हुई। ऐंजल ब्रोकिंग के सहायक निदेशक (जिंस व मुद्रा) नवीन माथुर ने कहा - शेयर बाजार में हुई भारी बिकवाली से सोने को लाभ मिला है और इस वजह से सोना रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया है। सोने-चांदी को छोड़कर बाकी जिंसों मसलन कच्चे तेल, औद्योगिक धातुओं, खाद्य तेल, मसाले व अनाज में गिरावट दर्ज की गई है। इन जिंसों में गिरावट की वजह अमेरिकी क्रेडिट रेटिंग में कमी और यूरो जोन की अर्थव्यवस्थाओं की जारी चिंताएं हैं। उन्होंने कहा कि निवेशक जोखिम से दूर रहने की कोशिश जारी रखेंगे।इस बीच, गोल्डमैन सैक्स ने सोने की कीमतों के अनुमान में बढ़ोतरी कर दी है। गोल्डमैन का कहना है कि अमेरिका की वास्तविक दरें और अमेरिका व यूरोप में गहराते कर्ज संकट के चलते ऐसा हुआ है। मौजूदा संशोधन में गोल्डमैन ने तीन महीने के लिए सोने की कीमत का अनुमान 1565 डॉलर प्रति आउंस से बढ़ाकर 1645 डॉलर प्रति आउंस कर दिया है। इसके अलावा 6 महीने व 12 महीने के कीमत अनुमान अब क्रमश: 1730 डॉलर व 1860 डॉलर प्रति आउंस कर दिए गए हैं। इसका मतलब यह हुआ कि सोने की कीमतों में बढ़ोतरी जारी रहेगी।उधर, जस्ता, टिन व अन्य आधार धातुओं में अमेरिकी अर्थव्यवस्था की डांवाडोल स्थिति के चलते रिकॉर्ड गिरावट आई है। चीन के बाद अमेरिका इन जिंसों का सबसे ज्यादा इस्तेमाल करता है। रेटिंग एजेंसी स्टैंडर्ड ऐंड पुअर्स ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था की रेटिंग एएए से घटाकर एए (+) कर दी है। इसका मतलब यह हुआ कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था कुल मिलाकर जोखिम भरी है। घबराए हुए निवेशकोंं ने इन धातुओं से मुनाफावसूली की क्योंकि उनका अनुमान था कि इसमें और गिरावट आ सकती है।जस्ते की कीमतों में 4.95 फीसदी की गिरावट आई और यह सोमवार को 2148 डॉलर प्रति टन पर टिका। अन्य औद्योगिक धातुएं मसलन निकल व टिन में शुक्रवार की कीमत के मुकाबले 3 से 4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई। तांबा व एल्युमीनियम मेंं हालांकि थोड़ी मजबूती रही क्योंकि निवेशकोंं ने इन धातुओं में आशावाद का प्रदर्शन किया।इसी ढर्रे पर चलते हुए कृषि जिंसों में 1 से 2 फीसदी की गिरावट आई। केयर रेटिंग के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा कि वैश्विक अर्थव्यवस्था के डांवाडोल होने के चलते ऐसा हुआ है यानी उसके प्रत्युत्तर में जिंसों में गिरावट आई है। इस दौरान कपास में 1.4 फीसदी जबकि सोयाबीन, चीनी व रिफाइंड सोया तेल में करीब 1 फीसदी की गिरावट आई।सबनवीस ने कहा कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था की रेटिंग में कटौती से वैश्विक कारोबार में कमजोर मांग के चलते कृषि जिंसों की कीमतें ढलान पर रहने की संभावना है। हालांकि मौजूदा गिरावट मुख्य रूप से सभी बाजारों से निवेशकों के हाथ खींचने से आई है। सबनवीस ने कहा कि घरेलू फंडामेंटल हालांकि मजबूत है और यह अपरिवर्तित रहेगा।सोमवार को एनसीडीईएक्स पर चीनी वायदा 0.91 फीसदी गिरकर 2613 रुपये प्रति क्विंटल पर बंद हुआ क्योंंकि कॉमेक्स पर भी यही हाल था, जहां चीनी वायदा 4 फीसदी लुढ़कर 26.99 सेंट प्रति पाउंड पर आ गया। (BS Hindi)

कपास निर्यात के लिए प्रोत्साहन बहाली की अधिसूचना जारी


मुंबई August 05, 2011
घरेलू एवं अंतरराष्ट्रीय बाजार में कपास और इसके धागे की कीमतें घटने के बाद सरकार ने कपास निर्यात पर दिए जाने वाले प्रोत्साहन को बहाल करने की अधिसूचना जारी की है।
विदेश व्यापार महानिदेशालय (डीजीएफटी) ने कहा कि कपास के धागे के निर्यात पर शुल्क पात्रता पास-बुक (डीईपीबी) योजना को बहाल करने का निर्णय अप्रैल, 2011 से लागू माना जाएगा, जबकि कपास पर यह शुल्क पात्रता अक्तूबर 2010 से लागू होगी। उल्लेखनीय है कि सरकार ने कपास एवं कपास धागे पर अप्रैल 2010 से कर वापसी योजना समाप्त कर दी थी। सरकार ने पिछले सप्ताह कपास निर्यात पर प्रतिबंध हटा लिया। (BS Hindi)

जून मेंचाय उत्पादन 10 प्रतिशत बढ़ा


नई दिल्ली August 08, 2011
देश का कुल चाय उत्पादन बढ़कर 11.47 करोड़ किलोग्राम हुआ
देश का चाय उत्पादन जून, 2011 में 10 प्रतिशत बढ़कर 11.47 करोड़ किलोग्राम हो गया। असम और पश्चिम बंगाल में उत्पादन में हुई बढ़ोतरी इसकी मुख्य वजह है। चाय बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार देश ने पिछले वर्ष की समान अवधि में 10.40 करोड़ किलोग्राम चाय का उत्पादन किया था।
असम में चाय उत्पादन जून, 2011 में 24 प्रतिशत बढ़कर 6.28 करोड़ किलोग्राम हो गया, जो वर्ष भर पहले की समान अवधि में 5.07 करोड़ किलोग्राम था। देश के कुल चाय उत्पादन में असम का योगदान 50 प्रतिशत का है। इसी तरह पश्चिम बंगाल में उत्पादन दो प्रतिशत से भी अधिक बढ़कर 2.59 करोड़ किलोग्राम हो गया, जो वर्ष भर पहले की समान अवधि में 2.53 करोड़ किलोग्राम था।
उत्तर भारत का चाय उत्पादन 16 प्रतिशत बढ़कर 8.94 करोड़ किलोग्राम हो गया, जो वर्ष भर पहले की समान अवधि में 7.67 करोड़ किलोग्राम था। हालांकि, दक्षिण भारत में चाय का उत्पादन वर्ष दर वर्ष आधार पर सात प्रतिशत घटकर 2.52 करोड़ किलोग्राम रह गया, जो वर्ष भर पहले की समान अवधि में 2.72 करोड़ किलोग्राम था। कैलेंडर वर्ष 2011 के जनवरी-जून की अवधि के दौरान चाय का उत्पादन बढ़कर 35.83 करोड़ किलोग्राम रहा, जो पिछले साल की इसी अवधि में 33.89 करोड़ किलोग्राम था। (BS Hindi)

04 अगस्त 2011

प्याज की तेजी रोकने के लिए निर्यात मूल्य बढ़ाने की तैयारी

एहतियात - उपभोक्ता मंत्रालय ने वाणिज्य मंत्रालय को भेजा प्रस्तावक्यों आ रही है तेजी :- बारिश की कमी के कारण महाराष्ट्र और गुजरात में प्याज की फसल में करीब एक महीने की देरी होने की आशंका है इसीलिए स्टॉकिस्टों ने प्याज की बिकवाली कम कर दी है। जिससे कीमतों में तेजी आई है।प्याज की कीमतों में आई तेजी को रोकने के लिए सरकार न्यूनतम निर्यात मूल्य (एमईपी) में बढ़ोतरी कर सकती है। उपभोक्ता मामले विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि इस संबंध में केंद्रीय उपभोक्ता मामले मंत्रालय ने एक प्रस्ताव वाणिज्य मंत्रालय को भेजा है। अधिकारी के अनुसार पिछले दो महीनों में खुदरा बाजार में प्याज की कीमतों में करीब 50 फीसदी की तेजी आई है। खुदरा बाजार में प्याज का भाव बढ़कर 18 से 20 रुपये प्रति किलो हो गया है।
उन्होंने बताया कि प्याज का एमईपी 230 डॉलर प्रति टन है इसे बढ़ाकर 300 डॉलर किए जाने की संभावना है। हालांकि चालू वित्त वर्ष के पहली तिमाही में प्याज का निर्यात 28 फीसदी कम रहा है। अप्रैल से जून के दौरान देश से 3.95 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ है जबकि पिछले साल की समान अवधि में 5.08 लाख टन प्याज का निर्यात हुआ था।
सरकार ने घरेलू बाजार में प्याज की कीमतों में आई भारी तेजी के कारण दिसंबर 2010 में निर्यात पर रोक लगा दी थी। घरेलू बाजार में दाम घटने के बाद 17 फरवरी को प्याज के निर्यात पर लगी रोक को हटाया गया था। पाकिस्तान और चीन का प्याज सस्ता होने के कारण भारत से निर्यात कम हो रहा है।
बारिश की कमी के कारण महाराष्ट्र और गुजरात में प्याज की फसल में करीब एक महीने की देरी होने की आशंका है इसीलिए स्टॉकिस्टों ने प्याज की बिकवाली कम कर दी है। जिससे कीमतों में तेजी आई है। महाराष्ट्र में प्याज की नई फसल की आवक सितंबर महीने में बनती है लेकिन इस बार अक्टूबर में आवक बनने की संभावना है ऐसे में सितंबर में दाम बढऩे की आशंका है।
इसीलिए सरकार एमईपी में बढ़ोतरी कर सकती है। भारतीय राष्ट्रीय कृषि सहकारी संघ (नेफेड) के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि वर्तमान में मध्य प्रदेश और राजस्थान से प्याज की आवक हो रही है। मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और पंजाब में प्याज का करीब 30 लाख टन का स्टॉक है। दो महीने बाद नई फसल की आवक शुरू हो जाएगी।
प्याज व्यापारी पी. एम. शर्मा ने बताया कि दिल्ली में प्याज की दैनिक आवक 80 ट्रकों की हो रही है। आवक के मुकाबले मांग अच्छी होने से प्याज की कीमतें बढ़कर 350 से 530 रुपये प्रति 40 किलो ग्राम हो गई है। उधर नासिक मंडी में पिछले दो महीनों में प्याज की कीमतें 750 रुपये से बढ़कर 900 रुपये प्रति क्विंटल हो गई है। (Business Bhaskar...R S Rana)

विदेशी रिटेल पर कुछ नकेल भी

नई दिल्ली July 31, 2011
मल्टीब्रांड रिटेल कारोबार में 51 फीसदी प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को सचिवों की समिति (सीओएस) ने कड़ी शर्तों के साथ अनुमति दे दी है। इन नियमों के तहत एफडीआई की न्यूनतम सीमा तय और चुनिंदा शहरों में ही स्टोर खोलने की अनुमति दी गई है। इसके साथ ही राज्यों में एफडीआई वाले रिटेल स्टोरों को अनुमति देने का फैसला राज्य सरकार को दिया गया है। राज्य सरकार को ही छोटे स्तर के उद्यमों और किराना स्टोरों की सुरक्षा के लिए प्रावधान तय करने का अधिकार दिया गया है। सीओएस अब खुदरा एफडीआई में किए गए बदलाव के बारे में मसौदा तैयार कर इसे अंतिम अनुमति के लिए आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति के पास भेजेगा। मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को अंतिम अनुमति देने का अधिकार कैबिनेट समिति के ही पास है। औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग (डीआईपीपी) के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया कि सीओएस ने उनकी अधिकतर सिफारिशें मान ली गई हैं। अधिकारी ने कहा, 'मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई को अनुमति देने के लिए हमने जो शर्तें रखी थीं सीओएस ने उनमें से ज्यादातर शर्तें मंजूर कर ली हैं।Ó विभाग के एक और अधिकारी ने बताया कि अब सिर्फ इस बात पर विवाद था कि एफडीआई की अधिकतम सीमा 49 फीसदी रखी जाए या 51 फीसदी। अधिकारी ने बताया, 'लेकिन अब यह विवाद सुलझा लिया गया है। वित्त मंत्रालय ने कहा है कि इसमें भी एकल ब्रांड रिटेलिंग के बराबर ही एफडीआई को अनुमति मिलेगी।Óविभाग ने मल्टीब्रांड खुदरा में न्यूनतम 10 करोड़ डॉलर के एफडीआई को अनुमति दी है। इसके साथ ही एफडीआई वाले मल्टीब्रांड स्टोर उन्हीं शहरों में खोले जा सकते हैं, जिनकी आबादी 2011 की जनगणना के आधार पर 10 लाख से अधिक है। 2001 की जनगणना के अनुसार इस दायरे में फरीदाबाद, वडोदरा, इंदौर, जबलपुर, अमृतसर, इलाहाबाद, वाराणसी, राजकोट समेत 35 शहर आते हैं। जबकि 2011 की जनगणना के आधार पर इन शहरों की संख्या और अधिक हो सकती है। हालांकि इस मामले पर पहले समिति में मतभेद थे लेकिन अब वरिष्ठï स्तर पर सभी राज्यों की राजधानियों में मल्टीब्रांड एफडीआई को अनुमति देने पर सहमति बनती नजर आ रही है। जबकि इससे पहले कुछ मंत्री इसे महज 6 महानगरों तक ही सीमित करने की सिफारिश कर रहे थे, जिससे इस पर आसानी से निगरानी रखी जा सके। विभाग ने ऐसे रिटेल स्टोरों को सिर्फ उन्हीं राज्यों में शुरू किए जाने की सिफारिश की थी, जो एफडीआई को अनुमति देंगे। सीओएस ने इससे सहमति जता दी है। इस नीति को लागू करना भी राज्य की जिम्मेदारी होगी। समिति ने इस सिफारिश को भी मंजूरी दी है, जिसके तहत विदेशी निवेशक बैक एंड सेवाओं में निवेश करने के लिए एक अलग कंपनी भी बना सकता है। लेकिन प्रस्तावित एफडीआई का कम से कम 50 फीसदी बैक एंड बुनियादी सेवाओं में निवेश करना जरूरी होगा। हालांकि इस राह में भारतीय जनता पार्टी शासित प्रदेश रोड़ा बन सकते हैं। इसके अलावा पश्चिम बंगाल में तृणमूल की सरकार भी मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई का विरोध कर रही है। औद्योगिक नीति एवं संवद्र्घन विभाग द्वारा कई विभागों के सदस्यों को मिलाकर बनाई गई समिति ने देश भर से इस मामले पर 175 लोगों की प्रतिक्रिया ली और उसका विश्लेषण किया। विश्लेषण में पता चला कि इस कदम का विरोध करने वाले 109 प्रतिभागियों में से 73 छोटे कारोबारी और रिटेल संगठन थे। इसके अलावा स्थानीय विनिर्माताओं और गैर सरकारी संगठनों ने भी पहल का विरोध किया है। जबकि फिक्की, सीआईआई और भारतीय रिटेल संगठनों ने मल्टीब्रांड में एफडीआई को कारोबार के लिए बेहतरीन पहल बताते हुए इसका समर्थन किया है। (BS Hindi)