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15 नवंबर 2011

ऑयल पाम के सहारे आयात बिल बचाने की रणनीति

खाद्य महंगाई दर और आयात पर बढ़ती निर्भरता ने सरकार को दीर्घकालिक रणनीति बनाने के लिए मजबूर कर दिया है। इसी के तहत खाद्य तेलों के बढ़ते आयात को रोकने के लिए केंद्र सरकार देश में ऑयल पाम का उत्पादन बढ़ाने की रणनीति तैयार कर रही है। अगर मौजूदा स्थिति कायम रहती है तो अगले एक दशक में देश का खाद्य तेल आयात बिल तीन लाख करोड़ रुपये हो जाएगा, जो इस समय 29,000 करोड़ रुपये है। इस पर अंकुश लगाने के लिए अगले पांच साल में किसानों को 10,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी देकर ऑयल पाम क्षेत्रफल को बढ़ाकर दस लाख हेक्टेयर करने की रणनीति बनाई जा रही है। ऑयल पॉम के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का भी प्रावधान किया जाएगा। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन (सीएसईपी) डॉ. अशोक गुलाटी ने बिजनेस भास्कर को बताया कि सरकार ने ऑयल पाम उत्पादन को बढ़ावा देने और इसके एमएसपी पर रिपोर्ट देने के लिए कहा है। हम तीन सप्ताह में रिपोर्ट तैयार करेंगे। गुलाटी ने बताया कि देश में खाद्य तेलों की जिस तरह से मांग बढ़ रही है उसे देखते हुए 10 साल में हमें इनके आयात पर तीन लाख करोड़ रुपये खर्च करने पड़ेंगे। वर्ष 1990-91 में देश का खाद्य तेल आयात बिल मात्र 322 करोड़ रुपये था जो 2010-11 में 29 हजार करोड़ रुपये को पार कर गया। जिस तरह से लोगों की आय और खान-पान की आदतें बदल रही हैं उसके चलते खाद्य तेलों की मांग खाद्यान्न के मुकाबले तीन गुना गति से बढ़ रही है। इस स्थिति में हमें तुरंत कारगर कदम उठाने की जरूरत है। डॉ. गुलाटी ने बताया कि ऑयल पाम का उत्पादन बढ़ाकर ही खाद्य तेलों की बढ़ती मांग से निपटा जा सकता है। ऑयल पाम से हमें प्रति हेक्टेयर करीब चार टन क्रूड पाम ऑयल उपलब्ध होता है। दूसरी तिलहन फसलों से 600-700 किलो प्रति हेक्टेयर खाद्य तेल ही उपलब्ध होता है। ऑयल पाम के प्लांटेशन से करीब 20 साल तक यह उत्पादन मिलता है। लेकिन प्लांटेशन तैयार होने तक पहले चार साल उत्पादन नहीं मिल पाता है। इसी को ध्यान में रखते हुए ऑयल पाम के कल्टीवेशन की रणनीति पर काम किया जा रहा है। गुलाटी ने बताया कि किसानों को ऑयल पाम की फसल के लिए वित्तीय प्रोत्साहन देना होगा। पहले चार साल में यह प्रोत्साहन ऑपर्चुनिटी कॉस्ट के तहत देना होगा ताकि किसान दूसरी फसल ना उगाकर इसी का कल्टीवेशन करें। किसानों को बेहतर सीडलिंग और ड्रिप इरीगेशन जैसी सुविधाओं के लिए कैपिटल सब्सिडी भी देनी होगी। चौथे साल के बाद उनको एमएसपी की सुविधा उपलब्ध करानी होगी। साथ ही फ्रेश पाम फ्रूट के गुच्छों की क्रशिंग के लिए उद्योग और किसानों के बीच तालमेल स्थापित करना होगा। इसे गन्ना किसान और चीनी उद्योग की तर्ज पर विकसित किया जा सकता है क्योंकि कटाई के कुछ घंटों के बाद ही इसकी क्रशिंग जरूरी है। डॉ गुलाटी के मुताबिक इसके लिए सालाना 2500 से 3000 करोड़ रुपये सब्सिडी देनी होगी। इसके लिए 12वीं पंचवर्षीय योजना में करीब 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान करना होगा। उन्होंने कहा कि बढ़ते खाद्य तेल आयात बिल को देखते हुए यह लागत बहुत बड़ी नहीं है। उनके मुताबिक सरकार 10 लाख हेक्टेयर क्षेत्रफल को ऑयल पाम के तहत लाने के लक्ष्य के साथ चलेगी। अगर इसमें से हम सात-आठ लाख हेक्टेयर के स्तर को हासिल कर सके तो भी बड़ी उपलब्धि होगी। इस समय देश में करीब 1.7 लाख हेक्टेयर में ऑयल पाम की खेती हो रही है। सबसे अधिक संभावना आंध्र प्रदेश और पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में है। जहां तक एमएसपी का सवाल है तो उसके लिए इंपोर्ट प्राइस पैरिटी को आधार बनाया जाएगा। एक सीमा भी तय की जाएगी जिससे नीचे आयात मूल्य आने पर सीमा शुल्क लगाया जा सकेगा ताकि घरेलू किसानों को सस्ते आयात से संरक्षण मिल सके। पाम ऑयल की अंतरराष्ट्रीय कीमतों में भारी उतार चढ़ाव की प्रवृत्ति के चलते ऐसा करना जरूरी है। (Business Bhaskar)

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