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05 नवंबर 2011

कपास के धागे में फंसे निर्यातक

कोल्हापुर November 03, 2011
कोल्हापुर और आसपास के इलाके में बड़ी और नामी टेक्सटाइल कंपनियां हैं, जिनकी निर्यात बाजार में खासी पैठ रही है। लेकिन कपास की कीमतों में जबरदस्त उतार चढ़ाव, पड़ोसी देशों से बढ़ती प्रतिद्वंद्विता और धागे के निर्यात पर लगाए गए प्रतिबंध ने उनकी हालत खराब कर दी है। इनमें से कुछ कंपनियां तो बंदी के कगार से लौटी हैं।यहां इंडो काउंट इडस्ट्रीज, रेमंड टेक्सटाइल्स, अरविंद मिल्स, मफतलाल मिल्स, मोहिते टेक्सटाइल, अभिषेक, नव महाराष्ट्र जैसी 14 बड़ी कंपनियां हैं, जो सालाना 20,000 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करती हैं। लेकिन कपास के भाव में पिछले साल आए उतार चढ़ाव ने स्पिनिंग और कंपोजिट इकाइयों का भ_ा बिठा दिया। कंपनियों के प्रवक्ताओं की मानें तो 4 महीने पहले ही कई स्पिनिंग इकाइयां बंद हो चुकी हैं। कपास के दाम घटने के बाद भी स्पिनिंग मिलों में उत्पादन कम हो रहा है। एसोसिएशन ऑफ हंड्रेड परसेंट एक्सपोर्ट ओरिएंटेड स्पिनिंग यूनिट ऐंड कंपोजिट मिल्स के अध्यक्ष कमल मित्रा धागे के निर्यात पर प्रतिबंध को इसकी वजह बनाते हैं। अब प्रतिबंध हटा दिया गया है, लेकिन विदेशी बाजार में बांग्लादेश और चीन छा चुके हैं। इसी वजह से यहां सभी कंपनियों का उत्पादन 25 फीसदी और लूमों का उत्पादन 30 फीसदी कम हो गया है। कुछ मिलें तो माल की बुकिंग नहीं होने व बाजार में सुस्ती के कारण बंदी के कगार पर पहुंच चुकी हैं। नवंबर 2010 में जो धागा 260 रुपये प्रति किलोग्राम था, वह अब 132 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। इसी साल फरवरी में कपास (शंकर-6) का भाव 64,000 रुपये प्रति कैंडी (1 कैंडी में 365 किलो) पहुंच गया था, जो अब 39,000 रुपये प्रति कैंडी ही है। इंडो काउंट के परिचालन अध्यक्ष एम पी मुखर्जी कहते हैं कि कीमतों में उतार चढ़ाव और निर्यात पर प्रतिबंध ने दोहरी मार की। हालांकि मिलों के उत्पादन के बारे में कंपनियां खुलकर कुछ नहीं बोल रहीं। एक नामी कंपनी के स्थानीय संयंत्र के प्रबंधक ने बताया, 'यहां निजी और सहकारी मिलें हैं। सहकारी मिलों में बड़े नेता या तो मालिक हैं या साझेदार। उन्हें सरकार अनुदान, कर्ज व सब्सिडी देती है। निजी कंपनियों को यह सब नहीं मिलता है।' बाकी कसर पड़ोसी देशों ने पूरी कर दी है। कपड़ा और धागा कंपनियों को चीन, बांग्लादेश और पाकिस्तान से कड़ी चुनौती मिल रही है। कंपनियों का दावा है कि भारतीय उत्पाद बेहतर हैं, लेकिन निर्यात रुकने से पड़ोसी देशों को पैठ बनाने का मौका मिल गया। इसका खमियाजा उन्हें भुगतना पड़ रहा है। (BS Hindi)

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