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16 दिसंबर 2011

खाद्य सुरक्षा विधेयक में सब्सिडी का बोझ बना अड़ंगा

नई दिल्ली December 15, 2011
सरकार पर पडऩे वाला सब्सिडी का भारी बोझ खाद्य सुरक्षा विधेयक के आसानी से पारित होने की राह में सबसे बड़ी बाधा रही है। खाद्य सुरक्षा कानून के लागू होने के साथ ही सरकार को सब्सिडी के मद में बड़ी रकम का प्रावधान करना होगा। इस सप्ताह के शुरू में कैबिनेट ने इस बहुप्रतीक्षित विधेयक को इसलिए टाल दिया क्योंकि कुछ सदस्य इसके परिणामस्वरूप सब्सिडी के मद में भारी बढ़ोतरी से चिंतित थे।इस कानून के प्रभावी होने की स्थिति में सरकार को खरीद मूल्य से काफी कम कीमतों पर गरीबों के बीच अनाज की बिक्री करनी होगी। इस वजह से सब्सिडी के मद में रकम 2011-12 के बजट के अनुसार मौजूदा 60,000 करोड़ रुपये से बढ़कर 95,000 करोड़ रुपये हो जाने का अनुमान है। सरकार की मौजूदा माली हालत को देखते हुए इस बोझ को सहन करना आसान नहीं लग रहा है।हालांकि यह अनुमान लगाना भी सही नहीं होगा कि प्रस्तावित अधिनियम से सब्सिडी का बोझ इसी वित्त वर्ष से सरकार की वित्तीय सेहत बिगाड़ देगा क्योंकि प्रस्तावित कानून अगले वित्त वर्ष से ही प्रभावी होगा। इससे सरकार को रकम का प्रावधान करने में कुछ समय मिल सकता है। खाद्य सुरक्षा विधेयक की वजह से सब्सिडी में बढ़ोतरी 32,000 करोड़ रुपये की रकम के अतिरिक्त होगी जिसे सरकार को इस योजना को जारी रखने के लिए खर्च करना पड़ेगा।सहायक योजनाओं जैसे गर्भवती महिलाओं को छह महीनों तक प्रति माह 1,000 रुपये देना आदि पर भी सालाना अतिरिक्त खर्च आएगा।बहरहाल यह कहानी का एक पहलू है। न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में हर बढ़ोतरी से सब्सिडी के प्रतिशत में ज्यादा बढ़ोतरी हो जाती है। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) के चेयरमैन और प्रसिद्ध कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी ने कहा, 'फसल के उत्पादन की लागत बढ़ रही है। ऐसे में एमएसपी स्थिर नहीं रखा जा सकता। हमारा अनुमान है कि इसमें अगले 2-3 साल में कम से कम 40-50 प्रतिशत की बढ़ोतरी की जानी चाहिए। इसका मतलब यह भी हुआ कि सब्सिडी उच्च स्तर पर बनी रहेगी।'इस तरह से 95,000 करोड़ रुपये, 32,000 करोड़ रुपये और एमएसपी का बोझ मिलाकर 1,30,000 करोड़ रुपये की सब्सिडी का बोझ सरकार पर हो जाएगा। अधिकारियों ने कहा कि कृषि मंत्रालय के बजट में भी महत्त्वपूर्ण बढ़ोतरी होगी, जो वर्तमान के 20,000 करोड़ रुपये सालाना से बढ़कर 1,00,000 करोड़ रुपये हो जाएगा, क्योंकि कार्यक्रमों को सुचारु रूप से चलाने के लिए अतिरिक्त खाद्यान्न की जरूरत होगी।इस तरह से मोटे तौर पर 1,30,000 करोड़ रुपये के साथ कृषि मंत्रालय के 1,00,000 करोड़ रुपये को मिलाकर सरकार को कुल 2,30,000 करोड़ रुपये खर्च करने होंगे, जिससे प्रभावी तरीके से खाद्य सुरक्षा अधिनियम को लागू किया जा सके। यह वर्तमान में चल रहे किसी भी सामाजिक कल्याण कार्यक्रम के बजट से ज्यादा है। (BS HIndi)

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