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30 अप्रैल 2012

सिक्कों से खनकेंगे गेहूं के खलिहान

उत्तर प्रदेश में गेहूं की जबरदस्त पैदावार के बाद भी किसानों को माल औने-पौने भाव पर नहीं बेचना पड़ेगा। राज्य सरकार ने निर्णय लिया है कि पांच साल बाद अब एक बार फिर  निजी कंपनियां किसानों से सीधे गेहूं खरीद पाएंगी।

इस फैसले के बाद धान आदि जिंसों की खरीद भी सरकारी शिकंजे से बाहर  निकलने की उम्मीद है। राज्य सरकार जल्द ही किसानों से सीधी खरीद के दिशानिर्देश तय कर सकती है। किसानों को लागत की डेढ़ गुना कीमत दिलाने का चुनावी वायदा पूरा करने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) सरकार ने कृषि व्यापार एवं विपणन विभाग के अधिकारियों से प्रस्ताव तैयार करने को कहा है। किसानों से उनके उत्पाद सीधे खरीदने की इच्छुक निजी कंपनियों को मंडी परिषद लाइसेंस जारी करेगी। अगले सीजन में इसे नए सिरे से लेना होगा।

पिछली मुख्यमंत्री मायावती के कार्यकाल में उत्तर प्रदेश राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद ने निजी कंपनियों को खरीद के लिए लाइसेंस देना बंद कर दिया था। लेकिन इस बार मंडी परिषद उत्तर प्रदेश में एक निजी कंपनी को 50,000 टन गेहंू खरीदने की इजाजत दे चुकी है  और दूसरी कंपनियों से बात चल रही है। प्रदेश सरकार का मानना है कि  इससे किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य हर हाल में मिल जाएगा।

पिछली बार 2006 में मुलायम सिंह यादव सरकार ने निजी कंपनियों को सीधे गेहूं खरीदने की अनुमति दी थी। उस साल बरेली, शाहजहांपुर, रामपुर, सहारनपुर में आईटीसी और कारगिल ने सीधे किसानों से गेहूं खरीदा था। इससे किसानों को उपज की कीमत फौरन मिली और माल भाड़े से भी निजाम मिल गई। इन कंपनियों ने किसानों को उपहार भी दिए थे।

माया सरकार ने यह सिलसिला खत्म कर दिया और उनके समय में 2011 के अलावा किसी भी वर्ष खरीद का लक्ष्य हासिल नहीं हो सका। खुद वर्तमान खाद्य एवं रसद मंत्री रघुराज प्रताप सिंह ने एक बयान जारी कर कहा है कि बीते 5 वर्षों में उत्तर प्रदेश में किसानों से गेहूं या धान की सीधी खरीद की ही नहीं गई, बिचौलियों के जरिये यह काम किया गया था। (BS Hindi)

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