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02 अप्रैल 2012

डब्बा कारोबारी पर एफएमसी का छापा

जिंस बाजार नियामक वायदा बाजार आयोग ने स्थानीय पुलिस के साथ मिलकर मुंबई के कालबादेवी में शनिवार को एक डब्बा कारोबारी प्रफुल्ल जैन के दफ्तर पर छापा मारा। एफएमसी के वरिष्ठ अधिकारियों के मुताबिक पुलिस ने चार लोगों को हिरासत में लिया है और दो हार्ड हिस्क, तीन मोबाइल फोन, कुछ आपत्तिजनक दस्तावेज और 20,000 रुपये नकद जब्त किए हैं।
यह अहम बात है क्योंकि नियामक इन दिनों कृषि जिंसों की कीमतों में हो रहे असमान्य उतारचढ़ाव पर लगाम कसने में जुटा हुआ है और एफएमसी पर आरोप लग रहे हैं कि आयोग देर से कदम उठाता है। हाल में एसोचैम ने भी आरोप लगाया था कि ज्यादातर कृषि जिंसों में उछाल सटोरिया गतिविधियों के कारण है और एफएमसी का इस पर नियंत्रण नहीं है।
डब्बा कारोबार ऐसी व्यवस्था है जिसके तहत हाजिर बाजार में वायदा बाजार की कीमतों के आधार पर सौदे होते हैं। चूंकि एक्सचेंज के आधिकारिक कारोबार में डब्बा कारोबार के रिकॉर्ड शामिल नहीं होते। लिहाजा ऐसे कारोबार पर वायदा अनुबंध (विनियमन) अधिनियम 1952 के तहत पाबंदी है। मुंबई पुलिस ने एफसीआरए की धारा 20 और 21 के उल्लंघन के आरोप में मुकदमा दर्ज किया है, वहीं मुख्य संचालक अभी भी गिरफ्त से बाहर है।
मेंथा तेल समेत कुछ छोटी जिंसों में काफी ज्यादा डब्बा कारोबार होता है और इस वजह से पिछले कुछ महीने में एफएमसी ने उत्तर प्रदेश में कई कारोबारियों के यहां छापे डाले हैं। डब्बा कारोबारी क्लाइंट की सुरक्षा, पंजीकरण, मार्जिन, लेनदेन और निपटान आदि से संबंधित नियम कानून का उल्लंघन करते हैं। ऐसा कारोबारी न सिर्फ आयकर कानूनों की (जिसमें नकद लेनदेन की मनाही है), बल्कि सेवा कर के नियमों व अन्य अनिवार्य नियमों का भी अवहेलना करता है। डब्बा कारोबारी बाजार में अपनी पोजीशन की हेजिंग करता है और इसके लिए शायद वह खुद के नाम के या फिर बेनामी खाते का इस्तेमाल करता है। अगर बाजार उसके प्रतिकूल हो जाता है तो वह गायब हो जाता है, जिससे उसके क्लाइंट को भारी नुकसान होता है। अपनी शाखा में ऐसी अनुमति देने वाले ब्रोकर या यहां तक कि सब ब्रोकर भी इसके शिकार होते हैं।
डब्बा कारोबार के खिलाफ स्टॉक एक्सचेंज शिकायतों को काफी गंभीरता से लेते हैं और भारी जुर्माना भी लगाते हैं। अगर एक्सचेंज की जांच में शिकायत सही पाई जाती है तो निलंबन भी किया जाता है।
एक ब्रोकिंग फर्म के विश्लेषक ने कहा कि इस छापे से निश्चित तौर पर गैर कानूनी कारोबार हतोत्साहित होगा, जो कर चुकाए बगैर और राष्ट्रीय एक्सचेंज की सदस्यता शुल्क के बिना कमाई कर रहा है। एसोचैम की हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि जनवरी 2009 में हल्दी का कारोबार 35 रुपये प्रति किलोग्राम पर हो रहा था, जो एक साल में ही बढ़कर 150 रुपये प्रति किलोग्राम के पार चला गया। लेकिन कुछ ही महीनों में यह गिरकर 40 रुपये प्रति किलोग्राम पर आ गया। इसी तरह काली मिर्च की कीमतें अप्रैल 2011 में 225 रुपये प्रति किलोग्राम थीं, जो मार्च 2012 में बढ़कर 432 रुपये पर पहुंच गईं। इस तरह काली मिर्च मेंं कुल 95 फीसदी की उछाल आई।
एसोचैम निवेश समिति के चेयरमैन एस के जिंदल ने कहा कि ग्वार और ग्वार गम के मामले में कीमतों में हुई बढ़ोतरी अविश्सनीय है। सीजन में ग्वार बीज की सामान्य कीमत 10 रुपये प्रति किलोग्राम रही, जबकि ग्वार व ग्वार गम की क्रमश: 25 व 50 रुपये प्रति किलोग्राम। लेकिन दुर्भाग्य से कुछ कारोबारियों की धोखाधड़ी के चलते 21 मार्च को ग्वार की कीमतें 291 रुपये प्रति किलोग्राम और ग्वार गम की कीमतें 959 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गईं।
एक विश्लेषक ने कहा कि छोटी जिंसों में संभावित डब्बा कारोबार को भी कीमतों में हो रही मौजूदा बढ़ोतरी के लिए जिम्मेदार माना जाएगा। जानवरों के चारे की कीमतें 291 रुपये प्रति किलोग्राम है, जो मानव के उपभोग में काम आने वाले अनाज व दालों के मुकाबले काफी ज्यादा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि पिछले एक महीने में ग्वार की कीमतें 120 फीसदी बढ़ी हैं जबकि पिछले चार महीने में 700 फीसदी। इसी तरह पिछले 12 महीने में इसकी कीमतें 875 फीसदी और पिछले 18 महीने में 1300 फीसदी बढ़ी हैं। (BS Hindi)

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