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12 मई 2012

निर्यात के जरिए गेहूं का होगा निपटान!

अनाज के भारी भरकम भंडार को देखते हुए सरकार विभिन्न विकल्पों पर विचार कर रही है, जिनमें से एक निर्यात भी है। अगर इसे मंजूरी मिली तो इसका मतलब यह होगा कि छह साल में पहली बार भारत सरकारी भंडार को बेचने के लिए निर्यात बाजार का सहारा लेगा।
हालांकि इस प्रस्ताव को लागू करना आसान नहीं है क्योंकि वैश्विक अनाज बाजार में सभी प्रमुख निर्यातक (ऑस्ट्रेलिया व यूक्रेन समेत) देशों के पास भारी भरकम अनाज का भंडार है। गुणवत्ता के मामले में भी भारतीय गेहूं दूसरे निर्यातक देशों के मुकाबले फिट नहीं बैठता। 7 मई को भारत में करीब 710 लाख टन अनाज का भंडार था जबकि भंडारण की कुल क्षमता 660 लाख टन की है।
सबसे बड़ी समस्या वित्त के प्रबंधन की होगी क्योंकि इसकी खरीद व भंडारण की लागत साल 2012-13 में करीब 18.22 रुपये प्रति किलोग्राम रहने की संभावना है, वहीं अमेरिकी गेहूं की वैश्विक औसत कीमतें जनवरी-मार्च के दौरान 15.06 रुपये प्रति किलोग्राम थीं। (डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत 54 मानते हुए)।
दूसरे शब्दों में, सरकारी भंडार से गेहूं की बिक्री के लिए सरकार को प्रति किलोग्राम पर करीब 3.16 रुपये की सब्सिडी का इंतजाम करना होगा। कीमतों का यह अंतर केंद्रीय भंडार से गेहूं निर्यात के किसी प्रस्ताव पर आगे बढऩे में सबसे बड़ी बाधा हो सकती है। चावल के मामले में थोड़ी राहत है क्योंकि सरकारी लागत करीब 24.19 रुपये प्रति किलोग्राम बैठती है जबकि 50 फीसदी टूटे थाईलैंड के चावल की औसत कीमत अप्रैल से मार्च के दौरान 29.52 रुपये प्रति किलोग्राम रही है। अप्रैल में यह बढ़कर 29.59 रुपये प्रति किलोग्राम पर पहुंच गया (डॉलर के मुकाबले रुपये को 54 पर मानते हुए)। ऐसे में केंद्रीय भंडार से चावल बेचने पर सरकार 5 रुपये प्रति किलोग्राम का मुनाफा कमा सकती है। हालांकि गेहूं के मामले में समस्या और ज्यादा गंभीर है और अगर तत्काल कदम नहीं उठाए गए तो समस्या और बड़ी हो सकती है। (BS Hindi)

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