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27 जुलाई 2012

सूखे से निपटने की तैयारी

दक्षिण-पश्चिमी मॉनूसन के सामान्य से कम रहने के कारण देश के कई हिस्सों में सूखे की आशंका बढ़ गई है। सरकार भी इन क्षेत्रों के लिए राहत पैकेज बनाने की तैयारी में जुट गई है। किसानों को राहत देने के लिए सरकार उनके छोटी अवधि के फसल ऋण का पुनर्गठन करने के साथ ही ब्याज पर छूट की अवधि बढ़ा सकती है। हालांकि औपचारिक तौर पर अभी तक किसी भी राज्य को सूखाग्रस्त घोषित नहीं किया गया है। लेकिन अगले 10 दिन में बारिश नहीं हुई, तो महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक और राजस्थान का कुछ हिस्सा सूखे की चपेट में आ सकता है। अभी तक मॉनसून सामान्य से 22 फीसदी कम रहा है। अधिकारियों ने बताया कि सूखे से प्रभावित राज्यों के लिए कृषि पैकेज की घोषणा की जा सकती है जिसमें जल्दी फ सल देने वाले बीजों की किस्में, नहर के पानी का बेहतर इस्तेमाल, उर्वरकों का कम उपयोग शामिल है। इसके साथ ही बैंक भी किसानों के छोटी अवधि के फसल ऋणों के पुनर्गठन पर विचार कर सकते हैं। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक सरकारी अधिकारी ने बताया, 'देश के कुछ हिस्सों में कम बारिश के कारण सूखा पड़ सकता है। मुमकिन है कि ऋण भुगतान की अवधि बढ़ाने के लिए प्रभावित किसानों के छोटी अवधि के ऋणों का पुनर्गठन किया जाए।' छोटी अवधि के फसल ऋणों के पुनर्गठन के तहत भुगतान टालना, गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए)का दोबारा वर्गीकरण, ब्याज में अतिरिक्त रियायत और जरूरत हो तो पूरा ऋण माफ कर दिया जाता है। मुमकिन है कि जिन किसानों ने एक साल की अवधि के लिए ऋण लिया है उनके ऋण को एनपीए में डालने के बजाय, इसे चुकाने के लिए उन्हें तीन से पांच साल का समय दिया जाए। केयर रेटिंग्स के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'मेरा मानना है कि किसानों की मदद करने का सबसे सही तरीका है उनके ऋण का पुनर्गठन करना क्योंकि पानी की कमी के हालात में सिंचाई मुहैया कराने की बात करना सही नहीं है।' सरकार किसानों को ब्याज में अतिरिक्त रियायत देने पर भी विचार कर सकती है। फिलहाल एक साल के लिए ऋण लेने वाले किसान अगर समय पर इसे चुका देते हैं, तो उनसे महज 4 फीसदी ब्याज लिया जाता है। जबकि 3 लाख रुपये तक के ऋण पर औसतन 7 फीसदी ब्याज लगता है। सूखे के कारण फसल खराब होने से किसानों के लिए समय पर भुगतान करना मुमकिन नहीं होगा। ब्याज में रियायत देने के मद में इस साल 11,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। हालांकि 2008 की तरह ऋण माफी की संभावना इस साल फिलहाल नहीं है। 2008 में सरकार ने किसानों के 52,000 करोड़ रुपये के ऋण माफ किए थे, इससे 3 करोड़ छोटे किसानों को राहत मिली थी। इसके साथ ही बकाये का एकमुश्त भुगतान करने वाले किसानों को 25 फीसदी रियायत दी गई थी। कृषि अर्थशास्त्री और कृषि लागत एवं मूल्य आयोग के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा कि प्रभावित इलाकों में सूखा राहत पैकेज के एक हिस्से को सीधे किसानों तक पहुंचाना चाहिए, चाहे वह मुआवजे के रूप में हो या फिर मुफ्त चारा, डीजल या बिजली सब्सिडी के रूप में। बैंकिंग तंत्र के दायरे में देश के 50 फीसदी किसान आते हैं। वित्त वर्ष 2011-12 में कृषि क्षेत्र को कुल 5,09,040 करोड़ रुपये का ऋण दिया गया था। कुल 6.3 करोड़ कृषि ऋण खातों में से छोटे और सीमांत किसानों के ऋण खातों की संख्या 4 लाख थी। चालू वित्त वर्ष के दौरान कृषि ऋण के तौर पर 5,75,000 करोड़ रुपये के आवंटन का लक्ष्य रखा गया है। एमएफआई को भी लगेगा झटका! आंध्र प्रदेश की घटना के बाद कारोबार व्यवस्थित करने में जुटी माइक्रो फाइनैंस कंपनियों (एमएफआई) को एक और झटका लग सकता है। मॉनसून के दौरान बारिश कम होने से ग्रामीण इलाकों में लोगों के कर्ज भुगतान क्षमता पर असर पड़ सकता है, जिससे कर्जदाता कंपनियां भी प्रभावित हो सकती हैं। माइक्रो फाइनैंस इंस्टीट्यूशन नेटवर्क के मुख्य कार्यकारी आलोक प्रसाद ने कहा कि इन इलाकों में कर्ज भुगतान पर दबाव देखा जा सकता है। एमएफआई ऐसी स्थिति में कर्ज अवधि का विस्तार कर कर्जदारों को राहत दे सकते हैं। एमएफआई के करीब 80 फीसदी ग्राहक ग्रामीण इलाकों के ही हैं। ऐसे में सूखे की स्थिति से इन कंपनियों पर भी असर पडऩा लाजिमी है। सरकार उठाएगी जरूरी कदम दक्षिण पश्चिमी मॉनसून में किसी तरह का सुधार नहीं होते देख कृषि मामलों पर अधिकार प्राप्त मंत्रिसमूह अगले मंगलवार को बैठक करेगा। दरअसल उम्मीद के अनुसार मॉनसून नहीं रहने के कारण देश के कई हिस्सों में सूखे जैसे हालात बन गए हैं। मंत्रिसमूह की प्रस्तावित बैठक में सूखे के हालात से निपटने की रणनीति बनाई जाएगी। वायदा बाजार आयोग ने भी सतर्कता बरतते हुए कारोबारियों को चेताया है कि कृषि जिंसों के वायदा भाव में गड़बड़ी पर सख्ती से पेश आएगा और जरूरत पड़ी तो वह इसकी ट्रेडिंग पर पाबंदी भी लगाई जा सकती है। (BS Hindi)

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