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28 अगस्त 2012

सीएसीपी ने की लेवी चीनी दायित्व समाप्त करने की वकालत

कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने लेवी चीनी के दायित्व को समाप्त करने की मांग की है और सलाह दी है कि सरकार इसके बजाय पीडीएस के लिए मिलों से बाजार कीमत पर चीनी की खरीदारी करे। सीएसीपी ने अक्टूबर से शुरू होने वाले साल 2012-13 के विपणन सीजन के लिए गन्ने के उचित व लाभकारी मूल्य में 17 फीसदी से ज्यादा की बढ़ोतरी की सिफारिश करते हुए इस तरह की सलाह दी है। पिछले महीने केंद्रीय कैबिनेट ने इस सिफारिश को स्वीकार कर लिया और साल 2012-13 के लिए गन्ने की एफआरपी अब 170 रुपये प्रति क्विंटल होगी। अपनी सिफारिशों के साथ सरकार को सौंपी विस्तृत रिपोर्ट में सीएसीपी अध्यक्ष अशोक गुलाटी ने कहा है कि जब चीनी मिलें लेवी का दायित्व पूरा करने के लिए बाजार कीमत से कम पर इसकी आपूर्ति करती हैं तो किसानों को गन्ने का उचित भुगतान करने की उसकी क्षमता प्रभावित होती है। नैशनल फेडरेशन ऑफ कोऑपरेटिव शुगर फैक्ट्रीज के प्रबंध निदेशक विनय कुमार ने कहा - 'हमने हमेशा सुझाव दिया है कि लेवी के दायित्व को समाप्त कर दिया जाए।' भारत में सरकार करीब 28 लाख टन चीनी की आपूर्ति गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले परिवारों और सेना के जवानों को बाजार से कम कीमत पर करती है। इसकी आपूर्ति के लिए सरकार मिलों से बाजार कीमत से कम पर चीनी की खरीदारी करती है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इस पर सब्सिडी का खर्च करीब 7,000 रुपये प्रति टन बैठता है और पीडीएस के जरिए 27 लाख टन चीनी के वितरण (सेना के खरीद संगठन को होने वाली आपूर्ति को छोड़कर) पर कुल 1900 करोड़ रुपये खर्च होता है। इसका भार सबसे पहले चीनी उद्योग उठाता है और फिर किसानों को उठाना पड़ता है क्योंकि लेवी चीनी के दायित्व पूरा करने के चलते मिलें किसानों को ऊंची कीमतें नहीं दे सकतीं। आयोग ने कहा, अगर केंद्र सरकार के लिए यह संभव न हो तो इसका वैकल्पिक रास्ता है, पीडीएस के लिए वितरण के लिए चीनी की खरीदारी करने का अधिकार राज्य सरकारों को दे दिया जाए और फिर उन्हें उत्पादक राज्य से उपभोक्ता राज्य तक दूरी के हिसाब से तय सब्सिडी दी जाए। आयोग का यह भी कहना है कि एफसीआई मुश्किल वाले इलाकों में सेवा जारी रख सकता है, अगर संबंधित राज्य सरकारें ऐसी इच्छा व्यक्त करे और दूसरी जिंसों की खरीद की तरह सेना के जवान चीनी की खरीदारी बाजार से कर सकते हैं। आयोग ने चेताया है कि अगर खुले बाजार और पीडीएस में चीनी की कीमतों का अंतर 5-7 रुपये से ज्यादा होगा तो इसमें गड़बड़ी का खतरा है। आयोग ने इसके अलावा 20 लाख टन चीनी का बफर स्टॉक बनाने की वकालत की है और निर्यात व आयात कर का इस्तेमाल चीनी की कीमतों में हो रहे उतारचढ़ाव पर लगाम कसने के लिए करने की बात कही है। (BS Hindi)

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