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15 सितंबर 2012

एफ़डीआई: ममता का अल्टीमेटम माया की धमकी

ख़ुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के मामले पर तृणमुल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी और मनमोहन सिंह सरकार में फिर ठन गई है और ममता बनर्जी ने फैसले को वापस लेने के लिए 72 घंटे का समय दिया है. इसी तरह बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो मायावती ने भी कहा है कि वो सरकार के भविष्य पर 9 अक्टूबर को फैसला लेंगी. ममता बनर्जी डीज़ल के दामों में बढ़ोतरी और रसोई गैस के सिलेंडरों पर लगाई सीमा को लेकर भी नाराज़ हैं. समाचार एजेंसियों के मुताबिक़ तृणमुल कांग्रेस ने आगे का फैसला लेने के लिए पार्टी की संसदीय दल की बैठक 18 सितंबर को बुलाई है. पार्टी के महासचिव मुकुल राय के हवाले से कहा गया है कि अगर सरकार ने उनकी बात नहीं सुनी तो तृणमुल इस मामले पर कड़ा रूख़ अपनाएगी. माया की मुहिम मायावती ने लखनऊ में पत्रकारों से बात करते हुए यूपीए सरकार के फैसलों को जनविरोधी करार दिया. उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री ने इस मौके पर यह कहा कि 9 अक्टूबर को रैली के बाद वो राष्ट्रिय कार्यकारिणी की एक बैठक के बाद वो तय करेंगी की यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन जारी रखा जाए या नहीं. मायावती ने कहा कि यूपीए सरकार के दौर में प्रमोशन में आरक्षण का कानून लंबित पड़ा है. बसपा अध्यक्ष ने कहा कि उनकी पार्टी केवल मुद्दों के आधार पर यू पी ए को समर्थन दे रही है ताकी सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता से बाहर रखा जा सके. '.. फैसले की घड़ी' भारतीय समाचारपत्रों ने भी मनमोहन सिंह सरकार पर आए ताज़ा राजनीतिक संकट को काफी प्रमुखता दी है और इसे सरकार को दिए गए 'अल्टीमेटम' से लेकर 'ममता-मनमोहन में फैसले की घड़ी', क़रार दिया है. वामपंथी दल ने कहा है कि वो फैसले के विरोध में सड़कों पर उतरेगी, तो भारतीय जनता पार्टी ने इसे विदेशी तत्वों के दबाव में देश-विरोधी फैसला कहा है. अख़बारों में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के उस बयान को भी काफ़ी तवज्जो दी गई है जिसमें उन्होंने कहा है कि वो लड़ते हुए जाएंगे. आर्थिक क्षेत्र के समाचारपत्र फाइनेनशियल एक्सप्रेस के संपादक एमके वेणु का कहना है कि सरकार इस फैसले से उस आरोप को ग़लत साबित करना चाहती है कि वो नीतियों को लेकर किसी तरह की गतिहीनता का शिकार है. सरकार की रणनीति आर्थिक जगत के समाचारपत्र और उद्योग और व्यापार समूह बार-बार इस बात को दुहराते रहे हैं कि सरकार नीतियों को लेकर बड़े फैसले नहीं ले रही है जिससे आर्थिक उदारीकरण का काम ठप्प सा पड़ गया है. विदेशी समाचारपत्रों में भी इस बात को लेकर प्रधानमंत्री को निशाना बनाया गया था और उन्हें 'अन्डरअचीवर' यानी आशा से कम सफलता पाने वाला प्रधानमंत्री बताया गया था. एमके वेणु ये भी कहते हैं कि सरकार बड़े नीतिगत फैसले लेकर लोगों का ध्यान उन मुद्दों से हटाना चाहती है जिसमें वो दिन-ब-दिन ज्यादा से ज्यादा घिरती नज़र आ रही है. संसद का मानसून सत्र कोयला खदान आवंटन पर सरकार और विपक्ष के बीच जारी रस्साकशी के कारण चल ही नहीं सका. साथ ही इन मामलों में मनमोहन सिंह सरकार के मंत्रियों और कांग्रेस नेताओं के नाम भी सामने आ रहे हैं जिससे सरकार को नित नई मुसीबतों का सामना करना पड़ रहा है. लेकिन जानकारों का मानना है कि मनमोहन सिंह सरकार के फै़सलों से कहीं उसकी पुरानी दिक्कतें समाप्त होने की जगह नई न शुरू हो जाएं. (BBC Hindi)

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