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09 नवंबर 2012

जीएम फसल पर फिर सवाल

जीन-संशोधित यानी जीएम फसलें इंसान की सेहत और पर्यावरण दोनों के लिए खतरनाक हैं। यह बात एक बार फिर हमारे सामने निकलकर आई है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त एक तकनीकी विशेषज्ञ समिति यानी टीईसी ने अपनी अंतरिम रिपोर्ट में न सिर्फ जीएम फसलों को खतरनाक बतलाया, बल्कि सरकार से सिफारिश की है कि बीटी कपास समेत सभी जीन सवंद्धित फसलों के खेतों में परीक्षण पर, अगले दस साल तक पूरी तरह पाबंदी लगा दी जाए। तकनीकी विशेषज्ञ समिति ने अपनी रिपोर्ट में इस बात को भी रेखांकित किया कि हमारे यहां जीएम खाद्य फसलों के खेतों में परीक्षण के लिए मौजूदा नियामकीय प्रणाली व व्यवस्था संतोषजनक नहीं है। जब तक इसमें व्यापक बदलाव और इसका पुनर्गठन नहीं किया जाता, तब तक जीएम फसलों का खेतों में परीक्षण नहीं किया जाए। समिति ने जीएम फसलों के स्वास्थ और पर्यावरण पर दीर्घकालिक प्रभाव पर अलग से अध्ययन करने के साथ-साथ उच्चाधिकार प्राप्त एक नियामक तंत्र बनाने का सुझाव भी दिया। यह कोई पहली बार नहीं है, जब जीएम फसलों पर सवाल उठे हों, बल्कि इससे पहले भी इन फसलों को लेकर नकारात्मक राय सामने आई है। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते हैं, जब कृषि मंत्रालय की संसदीय समिति ने जीएम फसलों से संबंधित अपनी एक रिपोर्ट में जीएम फसलों को जीव जंतुओं पर खतरनाक और प्रतिकूल असर डालने वाला बतलाया था। गहन जांच और प्रयोगों से यह बात मालूम चली, कि जीएम फसलों के बीजों की वजह से मेमनों के जननांगों और दूसरे अंगों के वजन में कमी के साथ-साथ खून में कई तरह की गड़बड़ियां पाई गईं। इसके अलावा, यदि इस तरह की फसलें किसी दुधारू जानवर को खिलाई जाएं, तो उसका दूध पीने वाले इंसान को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। यानी जीएम फसलों का ना सिर्फ इंसान की सेहत पर बुरा असर पड़ेगा, बल्कि इससे हमारे पालतू जानवर और पर्यावरण भी नहीं बच पाएगा। ये फसलें इंसान की सेहत और पर्यावरण दोंनो के लिए मुफीद नहीं हैं। गौरतलब है कि जैव प्रौधोगिकी नियामक द्वारा बीटी बेंगन की व्यावसायिक खेती को मंजूरी देने के बाद से ही, पूरे मुल्क में ये बहस जारी है कि, जीन परिवर्धित खाद्यानों की खेती क्या हमारी जरुरत बन गए हैं? या हम इसे हड़बड़ी में बिना इसके खतरों को जाने-पहचानें अपने यहां लागू कर रहे हैं। मसलन बीटी बेंगन के सीमित प्रयोग के लिए कम से कम 30 परीक्षण चाहिए होते हैं, लेकिन हमारे यहां 10 से कम परीक्षण किए गए। यही नहीं टैस्ट भी एक ही कम्पनी ने किए, जिसमें भी मूल्यांकन के वाजिब बंदोबस्त नहीं थे। जाहिर है कि, इन प्रयोगों में कई खामियां थीं। सच बात तो यह है कि जीएम फसलों के टेस्ट के लिए वैज्ञानिक दृष्टि से जितने गहन और लंबे परीक्षण की जरुरत होती है, वह वास्तव में हमारे देश में कहीं हुए ही नहीं। जबकि म्यूटेशन का नतीजा मालूम चलने में दसियों और कुछ मामलों में सैंकड़ों साल लग जाते हैं। मोंसेंटो और मायको ने हमारे यहां जो भी परीक्षण किए, वे जल्दबाजी में किए गए थे। खरगोश, चूहों पर महज 90 दिनों के परीक्षण के नतीजे, इंसानों के मामले में मुफीद नहीं। खासकर, जैनेटिक म्यूटेशन के मामलों में। बहुराष्ट्रीय कंपनियां अरसे से यह भ्रामक प्रचार कर रही हैं कि खाद्य संकट का समाधान जीएम बीजों से ही मुमकिन है। पर इन सब हवाई बातों से अलग, देश में बीटी काटन का तजुर्बा हमारे सामने है। बीटी काटन के मुताल्लिक भी हमें कई फायदे गिनाए गए, लेकिन उनका क्या हश्र हुआ? ये बात अब सबके सामने है। आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश जैसे सूबों में बीटी काटन की वजह से न सिर्फ फसलें तबाह हो गईं, बल्कि किसान भी बर्बाद हो गए। बीटी बीज की खरीदी व उसकी फसल पर दवा छिड़कने को लिए गए कर्ज से किसान उबर नहीं पाए और हजारों किसानों ने आत्महत्याएं कर लीं। जीई फसलों का सबसे ज्यादा प्रचार-प्रसार अमेरिका में है, लेकिन यहां भी किए गए एक शोध के मुताबिक जीएम फसलों से उत्पादकता बढ़ाने में कोई कामयाबी नहीं मिली। एक बात और, फूड क्राप्स के तौर पर जीई फसल का दुनिया भर में कहीं भी उत्पादन नहीं हो रहा। अमेरिका में भी जिसकी बहुराष्ट्रीय कंपनियां, हिंदुस्तान के बीज बाजार पर अपना कब्जा करना चाहती हैं, वहां सिर्फ जीएम सोयाबीन और मक्का पैदा किया जा रहा है। और इसका इस्तेमाल भी फूड क्राप्स के तौर पर नहीं किया जाता। यूरोपीय देशों ने साफ तौर पर अपने यहां बीटी बेंगन जैसे जैनेटिक माडिफिकेशन से विकसित फसलों की खेती पर पाबंदी लगा रखी है। जीएम फसलों के खतरनाक प्रभावों को देखते हुए, जहां यूरोपीय देश एक-एक कर अपने यहां इन फसलों की खेती पर पाबंदी लगा रहे हैं, तो दूसरी तरफ हमारे देश में इन फसलों के लिए एक तरह का उतावलापन बना हुआ है। जीएम बीज के कारोबार से जुड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों और उनसे जुड़े संस्थानों का स्वार्थ तो समझ में आता है, लेकिन इस पूरे मामले में हमारी सरकार के कुछ मंत्रियों ने जिस तरह का रुख दिखलाया है, वह समझ से परे है? जीएम फसलों की जांच के नकारात्मक नतीजे सामने आने के बाद भी, वे क्यों इन फसलों की पैरवी कर रहे हैं? सर्वोच्च न्यायालय की पहल पर गठित विशेषज्ञ समिति की सिफारिशें सामने आने के बाद, उम्मीद है अब उनका भी नजरिया बदलेगा और वे इन फसलों की पैरवी करने से बाज आएंगे। (Khrinews.com)

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