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13 दिसंबर 2012

अब गीला नहीं होगा मिलों का आटा

केंद्र सरकार ने गेहूं के भाव को खुले बाजार की बिक्री योजना के तहत लाने के अपने निर्णय पर दोबारा गौर किया है। इससे उत्तरी राज्यों की रोलर आटा मिलें उत्पादन क्षमता का इस्तेमाल बढ़ाने की तैयारी में हैं। सरकार ने यह कदम आटा मिलों के हक में देश के तमाम हिस्सों में प्रतिस्पर्धा का संतुलित माहौल मुहैया कराने के लिए उठाया है। उत्तरी राज्यों, खास तौर पर पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की आटा मिलें अपनी-अपनी उत्पादन क्षमता का भरपूर इस्तेमाल नहीं कर पा रही थीं क्योंकि जिन राज्यों में गेहूं का उत्पादन होता है वहां के भाव उपभोग करने वाले राज्यों की तुलना में ज्यादा थे। इस वजह से आटा मिलों का कारोबार गैर-व्यवहारिक हो गया था। सरकार के नवीनतम दिशानिर्देशों के तहत गेहूं उत्पादक राज्यों, मसलन उत्तर प्रदेश में गेहूं का भाव 1,403 रुपये प्रति क्विंटल, मध्य प्रदेश में 1,417 रुपये प्रति क्विंटल, हरियाणा में 1,446 रुपये प्रति क्विंटल और पंजाब में 1,484 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। जिन राज्यों में गेहूं और आटे की खपत होती है, वहां भी गेहूं का भाव उतना ही होगा, जितना उस राज्य में है जहां से गेहूं मंगवाया जाता है, लेकिन इसमें ढुलाई की लागत जोड़ दी जाएगी। इससे पहले गेहूं की खपत वाले राज्यों में ढुलाई और राज्य स्तरीय करों पर सब्सिडी (रियायत) दी जाती थी। इस वजह से उत्पादक राज्यों में गेहूं का भाव ज्यादा होता था। 'मध्य प्रदेश रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन' के अध्यक्ष सुनील अग्रवाल ने कहा, 'देश की तकरीबन आधी आटा मिलें गेहूं उत्पादक राज्यों में हैं, क्योंकि कारोबार के लिहाज से ऐसा करना वाजिब है। प्रदेश में लगभग 50 आटा मिलें हैं, जिनकी स्थापित उत्पादन क्षमता प्रति मिल 200 टन प्रति महीना है। इनमें से सभी का परिचालन 30-40 फीसदी उत्पादन क्षमता पर हो रहा है। अब इसमें तगड़ी वृद्घि होगी।' उत्तर प्रदेश के रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन के आदि नारायण गुप्ता ने कहा कि दिल्ली में गेहूं 1,328 रुपये प्रति क्विंटल भाव पर उपलब्ध है, जबकि उत्तर प्रदेश में यह भाव 1,403 रुपये प्रति क्विंटल है। प्रदेश में करीब 140 आटा मिलें हैं, जिनमें से लगभग सभी अपने वजूद के लिए लिए संघर्ष कर रही हैं। सरकार की नई नीति से प्रदेश की आटा मिलों के लिए अनुकूल माहौल बना है, और वे अब दिल्ली में आटे की बिक्री कर सकेंगी। पंजाब और हरियाणा में करों की दरें सबसे अधिक हैं। ये कर वैट (मूल्य वर्धित कर), मंडी शुल्क, आढ़तिया कमीशन, मजदूरी, हैंडलिंग खर्च और ग्रामीण विकास फंड के रूप में लगाए जाते हैं। पंजाब में कुल मिलाकर इन करों की दर 15.5 फीसदी और हरियाणा में 13.5 फीसदी बैठती है। उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में इन करों की दरें हरियाणा की दरों के मुकाबले थोड़ा कम हैं, लेकिन छोटी आटा मिलों को दूसरे राज्यों की मिलों के साथ प्रतिस्पद्र्घा करने में कठिनाई होती है क्योंकि वहां गेहूं का भाव कम होता है। भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) राज्य में न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) से अधिक भाव पर गेहूं की खरीद पर इन करों का भुगतान करता है, जो 1,285 रुपये प्रति क्विंटल है। पंजाब के रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष नरेश घई ने कहा कि गेहूं से तैयार होने वाले उत्पादों (आटा, रिफाइन्ड आटा या मैदा) की आवक अन्य राज्यों (राजस्थान, दिल्ली, चंडीगढ़) से हो रही थी, लेकिन अब यह गतिविधि हतोत्साहित होगी। मिल मालिकों को गेहूं की आपूर्ति खुले बाजार की बिक्री योजना के तहत की जाती है। लेकिन पंजाब की मिलें इस योजना के तहत जारी निविदा में हिस्सा नहीं लेतीं क्योंकि उनके लिए इसका भाव व्यावहारिक नहीं होता (पड़ोसी राज्यों की मिलों को कम भाव पर गेहूं की पेशकश की जाती है)। घई का कहना है, 'लेकिन अब उन्हें वाजिब भाव पर पर्याप्त मात्रा में गेहूं मिल सकेगा।' हरियाणा की आटा मिलों को उम्मीद है कि उनकी बिक्री दोगुनी हो जाएगी। हरियाणा की रोलर फ्लोर मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष सी पी गुप्ता ने कहा कि केंद्र सरकार की प्रतिकूल नीतियों की वजह से पिछले कुछ महीनों के दौरान करीब दो दर्जन मिलें बंद हो गईं। उन्होंने कहा, '65 में से केवल 40 मिलें चालू हैं, जिनका परिचालन 15 से 20 फीसदी क्षमता पर हो रहा है। अब नीति में संशोधन होने से कारोबार पटरी पर लाने में मदद मिलेगी।' देश में गेहूं का बफर स्टॉक है और आपूर्ति में कोई दिक्कत नहीं है। मिल मालिकों का कहना है कि छोटी और मझोली आटा मिलों के लिए सरकार की नीति में निरंतरता बहुत अहम होती है। (BS Hindi)

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