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25 दिसंबर 2012

महंगे गन्ने से सिकुड़ जाएगा चीनी उत्पादक कंपनियों का मुनाफा

गन्ने की ऊंची कीमतें और सरकारी हस्तक्षेप के कारण बढ़ती लागत का भार उपभोक्ताओं पर डालने में असमर्थ हो रहीं चीनी उत्पादक कंपनियों का मुनाफा इस पेराई सीजन में घट सकता है। अग्रणी क्रेडिट रेटिंग एजेंसी इक्रा की सहायक कंपनी आईएमएसीएस का अनुमान है कि कैरीओवर स्टॉक ज्यादा रहने से निकट भविष्य में चीनी की कीमतें निचले स्तर पर रहेगा। भारतीय चीनी उद्योग पर आईएमएसीएस की टिप्पणी में कहा गया है कि गन्ने की ऊंची कीमतों के अलावा वैश्विक बाजार में चीनी की घटती कीमतें और इस वजह से निर्यात से मिलने वाली रकम में कमी के चलते कंपनियों का मुनाफे में कमी बरकरार रहेगी। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि साल 2012-13 में निर्यात घटने की संभावना है क्योंकि देश में उत्पादन कम रहेगा और ऊर्जा की लागत बढ़ेगी जबकि कच्ची चीनी की रिफाइनिंग में ज्यादा मुनाफा मिलेगा। चीनी वर्ष 2013 में देश में चीनी का उत्पादन घटकर 24-26 लाख टन घटकर 240 लाख टन रह जाएगा। चीनी वर्ष 2012 के करीब 68 लाख टन चीनी के कैरीओवर स्टॉक को जोड़ लें तो चीनी की कुल उपलब्धता 307-310 लाख टन होगी। रिपोर्ट के अनुसार इस अवधि में खपत बढ़कर 227-230 लाख टन पहुंच जाएगी, ऐसे में देश में करीब 80 लाख टन चीनी सरप्लस होगी। चीनी का अंतिम स्टॉक 61 लाख टन मानें तो चीनी वर्ष 2013 में निर्यात घटकर 20-22 लाख टन पर आ जाएगा जबकि चीनी वर्ष 2012 में कुल निर्यात 35 लाख टन रहा है। साल 2012-13 में चीनी उत्पादन में अनुमानित गिरावट और सरकार के एथेनॉल की कम कीमत तय करने से एथेनॉल जैसे उपोत्पाद का परिदृश्य अनिश्चित है। चीनी उद्योग की विकास दर लगातार तीन साल ऊंची रही है, जबकि उत्पादन में सालाना 22 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई। लेकिन चीनी वर्ष 2013 में देश में चीनी का उत्पादन करीब 8-9 फीसदी घटकर 240 लाख टन रह सकता है क्योंकि गन्ने का उत्पादन घटा है। कीमतें ज्यादा होने से गुड़ उत्पादन में गन्ने का ज्यादा इस्तेमाल, उत्पाद की स्थिर कीमतें, गन्ने की बकाया राशि में बढ़ोतरी आदि से चीनी मिलों की वित्तीय सेहत कमजोर होगी। देश में चीनी का उत्पादन गन्ने के उत्पादन व इसकी उपलब्धता और गुड़, चीनी व खांडसारी में इसके इस्तेमाल पर निर्भर है। इस चीनी वर्ष में देश में गन्ने का उत्पादन 6.2 फीसदी घटने का अनुमान है क्योंकि मॉनसून सीजन की शुरुआत में कम बारिश के कारण इसके रकबे में 6.5 फीसदी की गिरावट आर्ई है। देश में चावल, गेहूं और वनस्पति तेल के साथ-साथ चीनी भी आम लोगों के जरूरत की चीज है और रोजाना की कैलोरी में इसका योगदान करीब 9 फीसदी है। देश में उत्पादन व कीमतों में उतारचढ़ाव के बावजूद चीनी की खपत 3 फीसदी सालाना की रफ्तार से बढ़ रही है। गुड़ की बजाय चीनी के इस्तेमाल में बढ़ोतरी, बढ़ती आय और आबादी में इजाफे से देश में चीनी की खपत 2.5-3 फीसदी सालाना की रफ्तार से बढऩे का अनुमान है। ग्रामीण इलाकों में हालांकि गुड़ व खांडसारी का इस्तेमाल अभी भी प्रमुखता से हो रहा है, लेकिन चीनी की कुल मांग व प्रति व्यक्ति मांग में इजाफा जारी रहने की संभावना है। खाद्य उद्योगों व अन्य गैर क्षेत्रों में चीनी की खपत में हो रही बढ़ोतरी का योगदान कुल खपत में करीब 60 फीसदी रहने का अनुमान है। ये चीजें दीर्घावधि में बाजार के विकास में अतिरिक्त योगदान कर सकती हैं। 2012-13 का परिदृश्य सकारात्मक रहने से वैश्विक बाजार में कीमतें घटने की संभावना है। वैश्विक स्तर पर लगातार तीसरे साल उत्पादन ज्यादा रहने से कीमतों पर दबाव रह सकता है। चीनी वर्ष 2013 में तीसरे साल अंतिम स्टॉक बढऩे का अनुमान है और स्टॉक में बढ़ोतरी से वैश्विक स्तर पर चीनी की कीमतों पर दबाव रहेगा। (BS Hindi)

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