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24 दिसंबर 2012

संप्रग के खाद्य सुरक्षा विधेयक की बुनियाद में ही खामियां हैं : अशोक गुलाटी

मनरेगा के बाद संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन का सबसे बड़ा सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रम शायद राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा विधेयक है। सरकार को इस पर संसद की स्थायी समिति की रिपोर्ट की प्रतीक्षा है। लेकिन पूर्व खाद्य व कृषि सचिव टी नंदकुमार, कृषि लागत व मूल्य आयोग के चेयरमैन अशोक गुलाटी समेत विभिन्न विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक निरर्थक है और इससे खाद्य सब्सिडी में इजाफा होगा। अनाज बाजार के सामान्य कामकाज में अवरोध पैदा होगा। संजीव मुखर्जी को दिए साक्षात्कार में सीएसीपी के चेयरमैन अशोक गुलाटी ने कहा कि इसके बजाय सरकार को अगले दो साल के दौरान देश में नकद खाद्य सब्सिडी के वितरण पर ध्यान देना चाहिए। उनसे बातचीत: खाद्य सुरक्षा विधेयक में किस तरह की गड़बडिय़ां दिखती हैं और इसे लागू करना मुश्किल क्यों है? खाद्य विधेयक में बुनियादी गड़बड़ी यह है कि इसमें कीमत नीति के जरिए बराबरी लाने की कोशिश हो रही है। यह अनाज बाजार के कामकाज में हस्तक्षेप करेगा, गड़बडिय़ां होंगी (हमारे अनुमान के मुताबिक पीडीएस का करीब 40 फीसदी अनाज गलत हाथों में चला जाता है) और कार्यक्षमता का भी नुकसान होगा, जो उभरते हुए कृषि विशाखन के विपरीत है। ध्यान रखा जाना चाहिए कि कीमत व कारोबारी नीतियों की भूमिका संसाधनों का आवंटन सक्षमता के साथ करने पर होना चाहिए और इस तरह से विकास को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। विधेयक के मौजूदा स्वरूप में ये चीजें उसकी भेंट चढ़ जाएंगी। समानता का लक्ष्य हासिल करने का बेहतर तरीका आय की नीति है। इसीलिए हम अपने पत्र में सशर्त नकद हस्तांतरण का समर्थन कर रहे हैं, जो वैश्विक स्तर पर गरीबों व जरूरतमंदों की मदद का बेहतर तरीका है। सीएसीपी अपनी रिपोर्ट में ऐसी सिफारिशें पहले ही कर चुका है। कानून लागू हुआ तो सरकार पर कितना वित्तीय बोझ बढ़ेगा? सबसे पहले खाद्य सब्सिडी का खर्च बढ़ेगा और मौजूदा सरकारी आकलन के मुताबिक पहले साल में यह 1.2 लाख करोड़ रुपये होगा, जो तीसरे साल 1.5 लाख करोड़ रुपये पर पहुंच सकता है अगर एमएसपी में बढ़ोतरी होती रहे और इसे जारी करने की कीमत स्थिर रहे। अगर हम इस विधेयक में कुपोषण समाप्त करने, भंडारण व अनाज की ढुलाई के लिए बुनियादी ढांचे पर होने वाले खर्च को जोड़ें तो यह आसानी से सालाना 2 लाख करोड़ रुपये को पार कर जाएगा। हमें खाद्यान्न उत्पादन को भी स्थिर रखने की दरकार होगी। यह विधेयक अभी संसदीय समिति के पास है और सरकार ने दूसरी योजनाओं के साथ नकद खाद्य सब्सिडी देने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी है। क्या दोनों ही मसलों के हल के लिए विधेयक में बदलाव किया जा सकता है? अगर हां तो कैसे? हां, हमें लगता है कि सशर्त नकद हस्तांतरण का नजरिया अभी भी विधेयक में शामिल किया जा सकता है। इसमें नवीनता लाने के लिए राज्य स्तर पर और यहां तक कि जिला स्तर पर विचार हो सकता है। लचीलेपन से काफी फायदा होगा, जो कि स्थानीय परिस्थितियों पर निर्भर करेंगी। हमें लगता है कि नकद हस्तांतरण का काम 10 लाख से ज्यादा की आबादी वाले शहरों में चालू किया जा सकता है, जहां आईटी व वित्तीय ढांचा और आधार संख्या है। इसका विस्तार धीरे-धीरे अनाज के आधिक्य वाले राज्यों में किया जा सकता है और अंत में अनाज की कमी वाले इलाकों में। दूरदराज के इलाकों में भी अनाज की डिलिवरी किए जाने की दरकार है। पूरा काम दो साल में हो सकता है। विधेयक के मसौदे में नकदी वितरण तभी अपनाने का विकल्प है जब अनाज आपूर्ति की किल्लत हो। क्या यह तरीका सही है? अगर आपने वित्तीय ढांचा के विकास नहीं किया हो तो आप नकदी का वितरण कैसे करेंगे। यह उसी तरह का मसला है, जैसे सूखे के समय कुआं खोदने की बात हो रही हो। यह काम नहीं करेगा। हमारा मानना है कि अनाज या नकद में से एक चुनने का विकल्प शुरू में ही दिया जाना चाहिए और वास्तव में गरीबों की मदद करने की योजना धीरे-धीरे नकद हस्तांतरण की ओर बढ़ानी चाहिए। सरकार ने खाद्य विधेयक के लिए योजना-बी की रूपरेखा तैयार की है, जिसमें लाभार्थियों की संख्या 64 से 68 फीसदी करते हुए हर महीने 35 किलो की बजाय 25 किलो अनाज दने की बात है। क्या यह मौजूदा मसौदे से बेहतर होगा या फिर समस्या जस की तस रहेगी? हमारे लिए मूल प्रश्न 35 या 25 किलो नहीं है बल्कि इसे कीमत नीति से आय नीति की ओर बढ़ाने का है। इसका मतलब यह हुआ कि भारी सब्सिडी वाले अनाज की बजाय उन्हें कुछ शर्तों के साथ नकदी दें या उनके बच्चों को स्कूल भेजें, उन्हें दक्ष बनाएं आदि। इससे यह ज्यादा सक्षमता के साथ काम करेगा, जैसा कि ब्राजील, मैक्सिको और फिलीपींस आदि में पाया गया है। परेशानियां आएंगी, जैसी बड़ी योजनाओं में होती हैं, लेकिन 650 लाख टन अनाज वितरण की बजाय इसका प्रबंधन ज्यादा आसान होगा क्योंकि इस अनाज का आधा हिस्सा कभी भी लाभार्थियों के पास नहीं पहुंचता। ऐसे में नकदी हस्तांतरण में हमें ज्यादा बचत नजर आ रही है। (BS Hindi)

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