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03 जनवरी 2013

चीनी को गम, कीमत हुई लागत से कम

आपने शायद ही ऐसा सुना हो कि कोई चीज अपनी लागत से कम दाम पर बाजार में बिक रही हो। मगर चीनी के मामले में ऐसा ही हो रहा है। इससे ग्राहकों की तो चांदी हो रही है लेकिन मिल मालिकों के लिए यह कड़वाहट का सबब बनती जा रही है। देश के कई इलाकों खासतौर से उत्तर भारत में चीनी 33 रुपये प्रति किलोग्राम के हिसाब से बिक रही है जबकि उसकी लागत 34 से 36 रुपये प्रति किलोग्राम आ रही है। इसके लिए बाजार में जरूरत से ज्यादा आपूर्ति को जिम्मेदार माना जा रहा है। जानकारों के अनुसार उत्तर भारत में 1 किलो चीनी तैयार करने में 34 से 36 रुपये खर्च हो रहे हैं। लेकिन इसकी बिक्री 33 रुपये प्रति किलो के भाव से हो रही है। दूसरी ओर महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी चीनी 31 रुपये किलो बिक रही है जबकि वहां इसकी लागत 30 प्रति किलो तक आ रही है। जाहिर है ऐसे हालात मिल मालिकों की पेशानी पर सर्दी में भी पसीना लाने के लिए काफी हैं, इसलिए वे सरकार से गुहार लगा रहे हैं कि वह खुले बाजार में चीनी का उनका कोटा बेचने की मियाद बढ़ा दे। फिलहाल उन्हें इस साल मार्च तक इस कोटे की चीनी बेचनी है लेकिन वे इसके लिए मई तक की मोहलत मांग रहे हैं। खाद्य मंत्री के वी थॉमस को लिखे एक पत्र में भारतीय चीनी मिल संघ (इस्मा) ने गुजारिश की है कि जिस तरह सरकार ने अक्टूबर-नवंबर की गैर लेवी कोटे की चीनी बेचने की मियाद बढ़ाकर दिसंबर तक कर दी कुछ वैसी ही ढील दिसंबर, 2012 से मार्च 2013 के दरमियान बिक्री के लिए आवंटित चीनी के लिए भी दिए जाने की जरूरत है। इस्मा ने कहा, 'पिछले तीन साल में सरकार ने अक्टूबर में शुरू होने वाले चीनी वर्ष के पहले छह महीनों के लिए औसतन 90.4 लाख टन चीनी जारी की। जबकि वर्ष 2011-12 में सरकार ने पहले छह महीनों में लगभग 1.08 करोड़ टन चीनी जारी कर दी जो पिछले तीन साल में जारी किए जाने वाले आंकड़े से लगभग 20 फीसदी अधिक है जिससे कीमतों में गिरावट आ गई।' भारत में कोई मिल खुले बाजार में कितनी चीनी बेच सकती है, इसकी सीमा सरकार तय करती है। यह मासिक, तिमाही और छमाही आधार पर तय होती रही है। इसके साथ ही मिल मालिकों ने सरकार के समक्ष इस बात की अर्जी भी लगाई है कि वह बिना बिकी लेवी चीनी (राशन की दुकानों पर बिकने वाली चीनी) बेचने के लिए दो साल के बजाय महज छह महीने की ही मियाद रखे। मौजूदा चलन के मुताबिक सरकार राशन की दुकानों के जरिये बिकने वाली जो चीनी नहीं खरीदती, उसे मिल मालिकों को दो साल तक अपने पास रखना होता है। हालांकि मिल मालिकों की ओर से यह मांग लगातार मजबूत होती गई कि अगर सरकार तय कोटे के मुताबिक चीनी नहीं खरीद पाती तो उन्हें छह महीनों के भीतर उस चीनी को बेचने की अनुमति दी जाए। मिल मालिक यह मांग भी कर रहे हैं कि सरकार जिस दर पर उनसे चीनी खरीदती है, उस दर में भी इजाफा किया जाए। फिलहाल सरकार राशन की दुकानों के जरिये बिकने वाली चीनी 19 रुपये प्रति किलोग्राम की दर से खरीदती है, जिसके लिए मिल मालिक 15 से 20 फीसदी बढ़ोतरी की मांग कर रहे हैं। मिल मालिकों का कहना है, 'ये कदम चीनी उद्योग को कुछ राहत देंगे और इससे लंबी अवधि के खरीदार ढूंढने में भी मदद मिलेगी।' (BS Hindi)

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