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19 फ़रवरी 2013

लेवी चीनी खत्म करने पर मंत्रालयों में बनी सहमति

फायदा - चीनी उद्योग को हर साल 3,000 करोड़ रुपये का लाभ मिलेगा बेचारा उपभोक्ता आम उपभोक्ता पर आर्थिक बोझ डालने पर बनी सहमति चीनी पर फिलहाल 71 पैसे प्रति किलो लगती है ड्यूटी ड्यूटी बढ़ाकर 1.50 रुपये प्रति किलो करने का प्रस्ताव उपभोक्ताओं के लिए खुले बाजार में चीनी महंगी होगी लेवी चीनी हटाकर उत्पादन शुल्क बढ़ाने के खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव पर कृषि मंत्रालय राजी : पवार शुगर उद्योग के डिकंट्रोल की तरफ एक कदम और आगे बढ़ाते हुए केंद्रीय खाद्य मंत्रालय ने लेवी चीनी की बाध्यता समाप्त करने का फैसला किया है। लेवी चीनी समाप्त होने से पडऩे वाले आर्थिक बोझ की भरपाई एक्साइज डयूटी बढ़ाकर करने का प्रस्ताव है जिसका कृषि मंत्रालय भी समर्थन कर रहा है। लेकिन इससे खुले बाजार में चीनी की कीमत बढ़ेगी। दूसरे शब्दों में कहें तो सरकार ने लेवी चीनी से उद्योग को राहत देने के लिए आम उपभोक्ता पर बोझ डालने की तैयारी की है। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) की 84वीं सालाना आम बैठक के मौके पर केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार ने संवाददाताओं से कहा कि उद्योग से लेवी चीनी की बाध्यता समाप्त करने के खाद्य मंत्रालय के प्रस्ताव का हम समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि लेवी चीनी की भरपाई के लिए एक्साइज डयूटी को 0.71 रुपये प्रति किलो से बढ़ाकर 1.50 रुपये प्रति किलो करने का प्रस्ताव है। लेवी चीनी की खरीद भाव 19.04 रुपये प्रति किलो है जबकि पीडीएस में इसका आवंटन 13.50 रुपये प्रति किलो की दर से किया जाता है। चीनी मिलों को कुल उत्पादन का 10 फीसदी लेवी में देना अनिवार्य है। हर साल करीब 27 लाख टन चीनी की आवश्यकता लेवी में होती है। इसके समाप्त होने से उद्योग को करीब 3,000 करोड़ रुपये का फायदा होगा। लेकिन इतना ही वित्तीय भार आम उपभोक्ताओं पर पड़ेगा क्योंकि उन्हें चीनी के लिए ज्यादा कीमत चुकानी होगी। आगामी बजट में किसानों के ऋण माफी पर उन्होंने कहा कि इस बारे में उनकी वित्त मंत्री से कोई बात नहीं हुई है। महाराष्ट्र में सूखे पर उन्होंने कहा कि महाराष्ट्र में सूखे की स्थिति गंभीर है तथा पीने के पानी की भी समस्या है। इसके लिए केंद्र सरकार ने एक कमेटी का गठन किया है जिसकी रिपोर्ट आने के बाद ही सहायता राशि की घोषणा की जाएगी। प्राकृतिक संसाधनों में आ रही कमी के बीच कृषि मंत्री ने एक बार फिर जेनेटिकली मॉडीफाइड (जीएम) फसलों के परीक्षण का समर्थन किया और कहा कि वैज्ञानिकों को इस अधिकार से वंचित नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने बताया कि इस संबंध में सभी राज्यों के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिखा गया है और विचार के लिए वैज्ञानिकों का एक दल भेजने के लिए कहा है। कुछ राज्यों ने उनके सुझाव पर सकारात्मक प्रतिक्रिया जाहिर की है लेकिन बिहार ने इसका विरोध किया है। पवार ने कहा कि कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा में निवेश का स्तर बढ़ाने के लिए निजी क्षेत्र की भागीदारी अत्यंत महत्वपूर्ण है। शहरीकरण से कृषि भूमि में कमी और जलस्तर में गिरावट की चुनौतियों के बावजूद देश की 1.2 अरब से ज्यादा आबादी के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि कृषि वैज्ञानिकों की असली प्रयोगशाला किसान के खेत हैं। दलहनी और तिलहनी फसलों का उत्पादन मांग के मुकाबले कम है इस पर और अधिक बल देने की जरूरत है (Business Bhaskar)

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