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11 फ़रवरी 2013

वैश्विक अर्थव्यवस्था में सुधार के संकेत से फीकी पड़ी सोने की चमक

सोने की कीमतों में गिरावट का रुझान नजर आ रहा है। कुछ ही महीने पहले तक सभी को लग रहा था कि इस बहुमूल्य धातु की कीमतों में उछाल जारी रहेगी, लेकिन अब निकट एवं मध्यावधि में इसकी कीमतों में तेजी जारी रहने को लेकर संदेह गहराता जा रहा है। अमेरिका में तीसरे राहत पैकेज के बावजूद पिछले 10 सप्ताह के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने की कीमत 1,753 डॉलर से तकरीबन 5 फीसदी गिरकर 1,667 डॉलर प्रति औंस रह गई। वहीं मुंबई के हाजिर बाजार में इस पीली धातु की कीमत 30,485 रुपये प्रति 10 ग्राम पर आ गई, जबकि 26 नवंबर, 2012 को यह अब तक के सर्वोच्च स्तर 32,500 रुपये प्रति 10 ग्राम थी। भारत में रुपये के मजबूत होने से सोने की कीमतों में ज्यादा गिरावट आई। डॉलर के मुकाबले रुपया मजबूत होने के चलते आयात लागत कम हुई, लिहाजा स्थानीय बाजारों में सोने के दाम भी गिरे। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोने की कीमतों में गिरावट की प्रमुख वजह यह रही कि निवेशकों के लिए इक्विटी में पैसा लगाना ज्यादा फायदेमंद साबित हो रहा है। कई उभरते हुए एवं विकसित बाजारों के सूचकांक कई वर्षों के ऊंचे स्तर पर बने हुए हैं। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था एक बार फिर पटरी पर लौटती नजर आ रही है। यहां तक कि फंड प्रबंधकों ने भी इक्विटी में बड़े पैमाने पर निवेश करना शुरू कर दिया है। एक बड़े कमोडिटी ब्रोकिंग हाउस के प्रमुख ने पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कहा, 'हमारे कुछ ग्राहक सोने में निवेश को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं हैं और उन्हें लगता है कि इसकी कीमत 1,520 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर आ सकती है। उन्हें लगता है कि वैश्विक स्तर पर इक्विटी की बेहतर स्थिति की वजह से निकट अवधि में सोने की चमक फीकी पड़ती जाएगी।' मई 2012 में सोने की कीमत गिरकर 1,538 डॉलर प्रति औंस रह गई थी, जबकि सितंबर 2011 में इसका भाव 1,900 डॉलर प्रति औंस के सर्वोच्च स्तर पर चला गया था। अंतरराष्ट्रीय बाजारों में सोने की कीमतें फिलहाल 1,665-1,695 डॉलर प्रति औंस के दायरे में हैं। वैश्विक पैमाने पर भी इस बहुमूल्य धातु के रुझान को लेकर अगल-अलग राय हैं। थॉमसन रॉयटर्स जीएफएमएस में धातु विश्लेषकी के वैश्विक प्रमुख फिलिप क्लैपविक ने अपनी नवीनतम सोना सर्वेक्षण रिपोर्ट में कहा है, 'बाजार में इस बात को लेकर अटकलें तेज हैं कि सोने की कीमतों में एक दशक की तेजी का दौर खत्म हो सकता है। बावजूद इसके सोने की कीमतों को लेकर विश्लेषकों की सलाह सकारात्मक है। उनका अनुमान है कि वर्ष 2013 की पहली छमाही के दौरान सोने की कीमतें औसतन सर्वोच्च स्तर पर रहेंगी और यह 1,800 डॉलर प्रति औंस के स्तर पर वापसी करेगी।' लेकिन यदि उनकी इस राय से इत्तेफाक रखने वाले निवेशकों का अभाव रहा तो सोने की कीमतों में गिरावट का रुझान जारी रह सकता है। सोने के इस्तेमाल को प्रोत्साहित करने के लिए इसकी खनन कंपनियों की तरफ से बनाई गई संस्था विश्व स्वर्ण परिषद (डब्ल्यूजीसी) ने अपनी हालिया रिपोर्ट 'गोल्ड इन्वेस्टर' में कहा है कि निकट अवधि में सोने की मांग का परिदृश्य नाजुक लग रहा है। यदि मांग सुस्त रहती है तो कीमतें नहीं बढ़ सकतीं। 'वैश्विक वृद्घि उज्ज्वल, लेकिन नाजुक' नाम की रिपोर्ट में डब्ल्यूजीसी ने कहा है, 'हालांकि आर्थिक सुधार के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन आर्थिक कठिनाइयों की मौजूदगी अब भी हैं जिनकी वजह से बाजार का जोखिम बढ़ रहा है। लेकिन रुझानों की भूमिका को कमतर नहीं आंकना चाहिए क्योंकि वर्ष 2013 में यह आर्थिक गतिविधियों में अतिरिक्त तेजी ला सकती है।' इस रिपोर्ट में विकास उन्मुख रुझान की संभावनाओं पर बात की गई है जिनकी वजह से सोने की मांग सुस्त पड़ सकती है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कुछ अन्य घटक भी हैं, जो सोने की कीमतों में इजाफे की वजह बन रहे थे, लेकिन फिलहाल वे विपरीत असर डाल रहे हैं। लंदन के कमोडिटी अनुसंधन हाउस नैटिक्सिस कमोडिटी मार्केट्स के जिंस अनुसंधान प्रमुख निक ब्राउन ने कहा, 'बाजार से सोना खरीदने वाले कई केंद्रीय बैंकों के पास सोने का भंडार उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। वर्ष 2013 में सोने की खानों का उत्पादन भी 2 फीसदी बढ़कर 2,915 टन के स्तर पर पहुंचने की संभावना है। इसके अलावा सोने की खुदरा मांग का संकेतक अमेरिका में सोने के सिक्कों की बिक्री में भी गिरावट आई है। इन तमाम वजहों से इस साल सोने की कीमतों में गिरावट आने की आशंका बढ़ गई है, जो औसतन तकरीबन 1,625 डॉलर प्रति औंस रह सकती है।' उनका यह भी मानना है कि यदि भारत सरकार के आर्थिक सुधारों की वजह से रुपया मजबूत होता है तो वर्ष 2013 में सोने की मांग बढ़ सकती है, बावजूद इसके कि सोने के आयात को नियंत्रित करने के उपाय किए जा रहे हैं। (BS Hindi)

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