कुल पेज दृश्य

24 अप्रैल 2013

इस वर्ष 3.5% रहेगी कृषि विकास दर

अनुमान- पिछले साल की वृद्धि दर 2% से अधिक नहीं सशर्त विकास ऊंची विकास दर के लिए सामान्य मानसून की रखी शर्त मानसून खराब रहा तो इस दर को हासिल करना मुश्किल पीएमईएसी का मशविरा कृषि में तेज विकास के लिए मार्केटिंग और सप्लाई चेन दुरुस्त करें सब्जी, फल, अंडे, मांस, मछली के लिए आधुनिक हो सप्लाई चेन इससे कीमतें स्थिर रहेंगी जो किसानों और उपभोक्ताओं के हित में वर्ष 2013-14 के दौरान कृषि एवं संबंधित क्षेत्र में 3.5 फीसदी की रफ्तार से विकास होने की उम्मीद है। प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद ने यह अनुमान लगाया है। सी. रंगराजन की अध्यक्षता वाली इस परिषद का कहना है कि अगर मानसून सामान्य रहा तो खेती में यह विकास दर हासिल की जा सकती है। केंद्रीय सांख्यिकी संगठन (सीएसओ) ने वर्ष 2012-13 के लिए 1.8 फीसदी विकास का अनुमान लगाया था। हालांकि इसमें अभी संशोधन होना है, फिर भी अंतिम आंकड़ों को दो फीसदी से ऊपर जाने की उम्मीद नहीं है। '2012-13 की आर्थिक समीक्षा' में रंगराजन ने कहा है कि अगर मानसून की बारिश सामान्य से नीचे रहती है तो खेती में इस विकास को हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। गौरतलब है कि भारत की खेती में मानसून की बारिश का अहम योगदान है। देश के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में कृषि का योगदान 15 फीसदी है और खेती की सिर्फ 40 फीसदी जमीन में सिंचाई की सुविधाएं उपलब्ध हैं। पिछले हफ्ते कृषि मंत्री शरद पवार ने कहा था कि मौसम विभाग इस वर्ष सामान्य बारिश की उम्मीद कर रहा है। विभाग की तरफ से मानसून की पहली भविष्यवाणी 26 अप्रैल को जारी होगी। आर्थिक सलाहकार परिषद ने कृषि क्षेत्र में तेज विकास के लिए मार्केटिंग और सप्लाई चेन दुरुस्त करने के कई उपाय बताए हैं। इसका कहना है कि सब्जी, फल, अंडे, मांस और मछली जैसे जल्दी खराब होने वाले उत्पादों के लिए सप्लाई चेन को आधुनिक बनाने और नियामक संबंधी बाधाएं दूर करने की जरूरत है। इससे इन उत्पादों की कीमतें स्थिर रहेंगी जो किसानों और उपभोक्ताओं दोनों के हित में होगा। मौजूदा एपीएमसी एक्ट के तहत कई राज्यों में किसानों को सीधे अपने उत्पाद बेचने की इजाजत नहीं है। इससे सप्लाई चेन का आधुनिकीकरण नहीं हो पा रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक इससे किसानों को उनके उत्पादों की अच्छी कीमत नहीं मिल पाती है, लेकिन दूसरी तरफ वही चीजें शहरी उपभोक्ताओं को काफी महंगी मिलती हैं। पिछले साल खेती के प्रदर्शन का विश्लेषण करते हुए परिषद ने कहा है कि कम बारिश के कारण 2012-13 में कृषि विकास दर दो फीसदी से अधिक नहीं हो सकती। खासकर महाराष्ट्र और गुजरात में कम बारिश होने से मोटे अनाज समेत कई फसलों का उत्पादन प्रभावित हुआ। पिछले साल बागबानी फसलों के उत्पादन में भी गिरावट आई। (Business Bhaskar)

कोई टिप्पणी नहीं: