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26 मार्च 2014

सीआईएफटी की तकनीक से महिलाएं आत्मनिर्भर

आर एस राणा : नई दिल्ली... | Mar 26, 2014, 01:33AM IS फिश मेड : केरल की सुनामी पीडि़त महिलाओं को मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान की तकनीक से हुआ काफी फायदा सुनामी से पीडि़त महिलाएं भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) के केंद्रीय मत्स्य प्रौद्योगिकी संस्थान (सीआईएफटी) की तकनीक से न सिर्फ आत्मनिर्भर हो रही हैं, बल्कि अच्छी-खासी आमदनी भी कर रही हैं। सीआईएफटी के वैज्ञानिक राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना (एनएआईपी) के तहत महिलाओं को फिश मेड नाम से मछली उत्पाद तैयार करने की तकनीक सिखा रहे हैं, साथ ही सी-फ्रेश स्टालों के तहत ताजा मछली उत्पादों की बिक्री भी की जा रही है। सीआईएफटी की प्रधान वैज्ञानिक एवं सूक्ष्म जीव विज्ञान की प्रमुख डॉ.के.वी. ललिता ने बिजनेस भास्कर को बताया कि महिलाओं को मछली उत्पाद तैयार करने की तकनीक सिखाई जा रही है। फिश मेड के नाम से संस्थान में महिलाओं को करीब 28 उत्पाद फिश कोफ्ता बाल्स, फिश कटलेट, बर्गर पेटीज, फिश मंचूरियन, मोमोज तथा फिश समोसा आदि बनाने की तकनीक सिखाई जाती है। एक बैच में 20 महिलाओं को ट्रेनिंग दी जाती है तथा ट्रेनिंग के बाद संस्थान के आउटलेट पर नौकरी भी दी जाती है। उन्होंने बताया कि सीआईएफटी ने उत्पादों के विपणन के लिए केरल स्टेट कोऑपरेटिव फेडरेशन से भी अनुबंध किया हुआ है तथा फिश उत्पादों की बिक्री के लिए केरल में करीब 30 आउटलेट खोले हैं। फिश मेड के उत्पादों की बाजार में भारी मांग है तथा आगामी दिनों में आउटलेटों की संख्या को बढ़ाकर 100 करने की योजना है। सीआईएफटी पिछले दो साल यह योजना चला रहा है। सीआईएफटी के प्रधान वैज्ञानिक डॉ नसीर ने बताया कि हमारा उद्देश्य महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना है। फिश प्रोसेसिंग केंद्र में एनएआईपी के तहत महिलाओं को सी-फ्रेश की तकनीक सिखाई जाती है। सुशीला नाम की सी-फ्रेश फिश विक्रेता ने बताया कि सुनामी से उनको भारी आर्थिक नुकसान हुआ था लेकिन अब सीआईएफटी से ट्रेनिंग लेने के बाद उनकी जिंदगी न सिर्फ पटरी पर लौट आई है बल्कि उन्हें हर महीने पांच हजार रुपये से ज्यादा की आमदनी भी हो रही है। नई तकनीक से बने प्रोपेलर ज्यादा सक्षम सीआईएफटी की तकनीक से ब्राइट मेटल कंपनी के मालिक एस राधाकृष्णन की कमाई पिछले दो साल में दोगुनी हो गई है। राष्ट्रीय कृषि नवोन्मेषी परियोजना (एनएआईपी) के सहयोग से मोटर बोट और मछली पकडऩे वाले जहाजों में प्रयोग होने वाले मरीन प्रोपेलर्स के उपयोग से औसतन 10 फीसदी डीजल की बचत हो रही है। इससे मोटर बोट और मछली पकडऩे वाले जहाज की स्पीड भी 10 से 15 फीसदी तक बढ़ जाती है। उन्होंने बताया कि यह कार्य उनका परिवार सदियों से कर रहा था लेकिन पिछले दो सालों से उन्होंने सीआईएफटी के वैज्ञानिकों की तकनीक को अपनाया है। नई तकनीक से उनकी कंपनी द्वारा निर्मित 5 हार्सपावर से लेकर 680 हार्सपावर तक के मरीन प्रोपेलर्स की मांग में भारी बढ़ोतरी हुई है। ब्राइट मेटल सालाना 400 मरीन प्रोपेलर की बिक्री देशभर में कर रही है। साइज के हिसाब से एक प्रोपेलर की कीमत 10 हजार रुपये से लेकर 1.50 लाख रुपये तक है। (Business Bhaskar.....R S Rana)

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