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31 दिसंबर 2015

जिंसों के कम दामों से घटा निर्यात


भारत से कृषि जिंसों के निर्यात में गिरावट की वजह वैश्विक बाजारों में इनकी कीमतों में भारी गिरावट है। यह बात इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च ने अपनी ताजा रिपोर्ट में कही है। इंडिया रेटिंग्स के विश्लेषक (कॉरपोरेट्स) वरुण अटवानी ने कहा, 'नवंबर 2015 में समाप्त पिछले 12 महीनों के दौरान भारत का वस्तु निर्यात अमेरिकी डॉलर में 16.1 फीसदी गिरा है। हालांकि निर्यात में कमी (डॉलर में) मात्रा के लिहाज से निर्यात में कमजोरी को परिलक्षित नहीं करती है। निर्यात मेंं गिरावट मुख्य रूप से वैश्विक जिंसों की कीमतों में कमी और यूरो में भारी कमजोरी (सालाना आधार पर 16.6 फीसदी नीचे) की वजह से आई है।
करीब तीन-चौथाई गिरावट कच्चे तेल एïवं इसके उत्पादों और कृषि जिंसों के निर्यात में गिरावट से आई है। जिंसों की कीमतों में भारी गिरावट से बहुत सी मध्यवर्ती और विनिर्मित वस्तुओं की कीमतें भी कम हुई हैं, जिससे निर्यातित वस्तुओं की कीमतों में गिरावट आई है। हालांकि वैश्विक मांग की स्थितियां सुस्त बनी हुई हैं, लेकिन निर्यातित मात्रा में ज्यादा गिरावट आने के आसार नहीं हैं। जिंसों की कीमतों में गिरावट से एशिया, पेट्रोलियम निर्यातक देशों के समूह (ओपेक) और अफ्रीका में मांग कम हुई है। हालांकि यूरोप और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों से मांग को सहारा मिल रहा है।
वाणिज्य मंत्रालय ने हाल में कहा था कि पेट्रोलियम उत्पाद और रत्न एवं आभूषणों को छोड़कर भारत के निर्यात में भारी गिरावट नहीं आई है। हालांकि बहुत से क्षेत्रों ने गिरावट दर्शाई है, लेकिन तैयार परिधान और फार्मास्युटिकल्स जैसे क्षेत्रों से निर्यात बढ़ा है। वाहन निर्यात में भी बढ़त (अप्रैल से नवंबर 2015- 2.2 फीसदी, वित्त वर्ष 2015- 14.9 फीसदी, वित्त वर्ष 2013-7.3 फीसदी) जारी है।
निर्यातित मात्रा पर सीमित असर का पता अप्रैल-अक्टूबर 2015 की अवधि में औद्योगिक उत्पादन के सूचकांक से भी चलता है। यह सूचकांक आलोच्य अवधि में 4.8 फीसदी बढ़ा है, जो पिछले साल की इसी अवधि में 2.2 फीसदी था। यह इस बात का संकेत है कि विनिर्माण गतिविधियों में बढ़ोतरी जारी है। रिपोर्ट में अनुमान जताया गयाा है कि आगे भी निर्यात करने वाले क्षेत्रों का मिलाजुला प्रदर्शन जारी रहेगा, कुछ क्षेत्र अन्य की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करेंगे। जिंसों की गिरती कीमतों के अफस्फीति प्रभाव के कारण ज्यादातर निर्यातक देशों में कंपनियों की आमदनी मे वृद्धि सुस्त रहेगी (BS Hindi)

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