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02 फ़रवरी 2017

चीनी पर सब्सिडी नहीं



केंद्र सरकार ने 4,500 करोड़ रुपये सब्सिडी वापस ले ली, जो राज्यों को सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के माध्यम से बिकने वाली सब्सिडीयुक्त चीनी पर दी जाती थी। अब माना जा रहा है कि यह राज्यों का दायित्व होगा। 2017-18 के लिए इस मद में आवंटन घटाकर 200 करोड़ रुपये कर दिया गया है, इसी से राज्यों को बकाये का भुगतान करना है।
वित्त मंत्री के भाषण में सब्सिडी शब्द दरअसल सिर्फ एक बार आया, जब उन्होंने मिट्टी के नमूनों के परीक्षण और उनमें पोषक तत्वों की जांच के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के तहत शिक्षित स्थानीय कारोबारियों द्वारा 1,000 छोटी प्रयोगशालाओं के लिए कर्ज से जुड़ी सब्सिडी का हवाला दिया। सरकार पर कुल सब्सिडी बोझ 2017-18 में मामूली रूप से 5 प्रतिशत बढ़ेगा।
खाद्य सब्सिडी अगले साल करीब 8 प्रतिशत बढ़कर 145,338.60 करोड़ रुपये रहने का अनुमान है। वहीं उर्वरक सब्सिडी पिछले साल के 70,000 करोड़ रुपये के स्तर पर, पेट्रोलियम सब्सिडी कम होकर 2,532 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है, जिससे पता चलता है कि सरकार ने पेट्रोलियम के वैश्विक दाम में संभावित बढ़ोतरी को इसमें शामिल नहीं किया है। सही मायने में यह पेट्रोलियम क्षेत्र में कीमतों में सुधार के लाभ की वजह से है। वहीं 2017-18 में एलपीजी सब्सिडी में 14 प्रतिशत गिरावट आने का अनुमान है। चालू वर्ष के दौरान उज्ज्वला योजना के तहत सरकार ने गरीबों को एलपीजी कनेक् शन देने के लिए पुनरीक्षित अनुमान में बजट 500 करोड़ रुपये बढ़ा दिया, जिसके लिए बजट में 2,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था। 

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